कप्पतगुड्डा अभयारण्य : दो साल पहले भी खनन के प्रस्ताव को शीर्ष अधिकारियों की सिफारिश पर किया था खारिज
हुब्बल्ली. कप्पाटागुड्डा अभयारण्य में सोने का खनन शुरू करने के लिए रामगढ़ मिनरल्स एंड माइंस लिमिटेड की ओर से प्रस्तुत प्रस्ताव को अस्वीकार करने की सिफारिश करने वाले वन संरक्षण अधिकारी ने एक रिपोर्ट पेश की थी। वन संरक्षण अधिकारी ने अपने शीर्ष अधिकारियों से सिफारिश की थी कि इस प्रस्ताव को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करना चाहिए परन्तु अब कंपनी ने फिर से ऐसा प्रस्ताव सरकार को सौंपा है। विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने एक सप्ताह पहले वन संरक्षण अधिकारी को उसी प्रस्ताव पर पुनर्विचार कर रिपोर्ट पेश करने को लेकर पत्र लिखा है।
2020 में भी पेश किया था प्रस्ताव
रामगढ़ मिनरल्स एंड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने 26 जून, 2020 को कप्पतगुड्डा अभयारण्य क्षेत्र के तहत आने वाले शिरहट्टी तालुक के जत्लिगेरी गांव के सर्वेक्षण संख्या 45, 49 और 50 की भूमि को कुल 39.90 एकड़ क्षेत्रफल में स्वर्ण खनन करने के लिए परिवर्तित करने का प्रस्ताव पेश किया था। 5 मई, 2021 को प्रधान मुख्य संरक्षण अधिकारी ने प्रस्ताव को खारिज करने के लिए राज्य के वन, पर्यावरण और जीव विज्ञान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपी थी।
जुलाई 2022 में फिर भेजा प्रस्ताव
इससे अभयारण्य में सोने का खनन शुरू नहीं होगा जानकर ही कप्पतगुड्डा की सुरक्षा के लिए लडऩे वाले कार्यकर्ताओं और संगठनों ने जश्न मनाया था परन्तु 26 जुलाई, 2022 को रामगढ़ मिनरल्स एंड माइंस कंपनी ने फिर से सोने के खनन के लिए भूमि को उसी स्थान पर परिवर्तित करने का प्रस्ताव सौंपा है। राज्य वन, पर्यावरण एवं जीव विज्ञान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने प्रधान मुख्य वन संरक्षण अधिकारी को पत्र लिखकर प्रस्ताव की जांच कर अपने विचार सहित रिपोर्ट तत्काल प्रस्तुत करने को कहा है। यह पत्र 20 जनवरी को लिखा गया है। रामगढ़ माइंस कंपनी के प्रस्ताव को पहले खारिज करने की सिफारिश की गई थी। प्रासंगिक दस्तावेज और कंपनी की ओर से पुन: प्रस्तुत प्रस्ताव इस पत्र के साथ संलग्न है। पत्र में प्रस्ताव पर पुनर्विचार कर अपनी उचित, स्पष्ट राय, रिपोर्ट तत्काल सौंपने का निर्देश दिया गया है।
संरक्षणवादियों ने जताई आपत्ति
धारवाड़ सर्कल के मुखय वन संरक्षण अधिकारी ने 5 मई, 2021 को सौंपी गई रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा था कि कर्नाटक सरकार को इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करना चाहिए। कप्पतगुड्डा अभयारण्य क्षेत्र में किसी भी कारण से सोने के खनन की अनुमति नहीं देनी चाहिए। इसके बाद भी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से इसी प्रस्ताव पर फिर से असमंजस्य, स्पष्ट मत, रिपोर्ट सैंपने का निर्देश जारी किया गया है। कप्पतगुड्डा संरक्षणवादियों ने प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने के सुझाव पर आपत्ति जताई है।

पर्यावरण और वन्य जीवों को भारी नुकसान होगा
गदग जिला डोणी के श्री नंदिवेरी संस्थान मठ के शिवकुमार स्वामी का कहना है कि कप्पतगुड्डा अभयारण्य में किसी तरह सोने का खनन शुरू करने की रामगढ़ मिनरल्स एंड माइंस की कोशिश कोई नई नहीं है। वर्ष 2009 से वह लगातार प्रयास कर रही है। खनन से पर्यावरण और वन्य जीवन को भारी नुकसान होता है इस कारण हम हर बार आंदोलन कर उनके प्रयासों को विफल किया है। इसके बाद भी वे हार नहीं मान रहे हैं और अधिकारियों के साथ मिलकर बार-बार आवेदन सौंपने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी कारण से खनन की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आरएफओ और डीएफओ की ओर से स्पष्ट रिपोर्ट पेश करने के बाद भी अपील प्रस्तुत की जा रही है। जैसे-जैसे सरकारें और प्राधिकरण बदलते हैं, वैसे-वैसे नए आवेदन दाखिल करने की प्रवृत्ति को आत्मसात कर लिया है। उनका मुख्य उद्देश्य किसी तरह खनन की अनुमति हासिल करना है।
मुख्यमंत्री को लोगों से लेनी चाहिए राय
खनन के कारण बल्लारी और संडूर की पहाडिय़ों को खोने के बाद अब हम कप्पतगुड्डा को खोने के लिए तैयार नहीं हैं। गदग के आसपास के जिले के लोगों को ऑक्सीजन देने वाली हरी भरी पहाड़ी को खनन के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता। जीवन और जल का सहारा बने कप्पतगुड्डा में सोने के खनन के लिए किसी भी सरकार को मौका नहीं देना चाहिए। मुख्यमंत्री को कप्पतगुड्डा क्षेत्र के सभी जिलों के लोगों की राय लेनी चाहिए।
–शिवकुमार स्वामी, कप्पतगुड्डा श्री नंदिवेरी संस्थान मठ, डोणी-गदग
फिर से समीक्षा करने का निर्देश क्यों दिया
वन विभाग ने पूर्व में ही राज्य सरकार से खनन प्रस्ताव को खारिज करने की सिफारिश की थी। यह पता नहीं चल पाया है कि प्रस्ताव पर वन विभाग को दोबारा राय देने का निर्देश क्यों दिया गया परन्तु एक बात साफ है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से जून 2022 में दिए गए फैसले के मुताबिक अभ्यारण्य के भीतर खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
–गिरिधर कुलकर्णी, वन्यजीव संरक्षणवादी
इसलिए खारिज होना चाहिए प्रस्ताव
प्रस्ताव की जांच करने वाले गदग प्रमंडल उप वन संरक्षण अधिकारीऔर धारवाड़ सर्कल के मुख्य वन संरक्षण अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में प्रस्ताव को क्यों खारिज करना चाहिए इस बारे में बताया था। उस रिपोर्ट के मुख्य बिंदू इस प्रकार हैं-
परिवर्तन के लिए मांगा गया वन क्षेत्र मिट्टी के कटाव के जोखिम वाला क्षेत्र है। खनन से यहां की भू-सतह लक्षणों को नुकसान पहुंचेगा। यह एक बहुत ही संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र है। यहां के पारिस्थितिकी व्यवस्था को क्षति पहुंचने पर इसे पुनर्स्थापित करना संभव ही नहीं है।
खनन को केवल अयस्क निष्कर्षण गतिविधि के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। खदानों में विस्फोट, सड़क निर्माण, वाहनों के आवागमन के कारण ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण होता है। खनन से नदियों, नहरों, जल स्रोतों का स्वरूप भी बदलेगा। यहां के इकोसिस्टम को भारी नुकसान होगा।
अभयारण्य गदग जिले के इस क्षेत्र के लिए ही सीमित, अद्वितीय वातावरण और पारिस्थितिकी तंत्र है जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है। यहां खनन से अद्वितीय पर्यावरण को खतरा होगा।
अभयारण्य के सभी क्षेत्रों में वन्यजीवों का संतुलित वितरण है। कुछ जानवर पहाड़ों की चोटियों पर रहते हैं, कुछ पहाडिय़ों की ढलानों पर रहते हैं और कुछ वन्य जीव तलहटी में रहते हैं। वहीं कुछ जीवों ने अभयारण्य के घास के मैदानों में शरण ली है।
यहां अगर सतह का एक रूप क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो भी पूरी व्यवस्था प्रभावित होगी। पशुओं की खाद्य श्रृंखला प्रभावित होगी। इस बात का खतरा है कि शिकार करने वाले जानवर जैसे तेंदुआ, बाघ और भेड़िए भोजन की तलाश में आसपास के गांवों में आ जाएंगे। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष हो सकता है।