मेंगलूरु दक्षिण विधानसभा चुनाव-2023
मेंगलूरु.
वामपंथी विचारधारा के प्रत्याशियों से कड़ी टक्कर के बीच मजबूती से जमी कांग्रेस पार्टी के गढ़ को गिराने वाली भाजपा चार दशक से मेंगलूरु दक्षिण (पूर्व में मेंगलूरु-1) निर्वाचन क्षेत्र में चमक रही है। देश में पैर जमाने के बाद इस क्षेत्र में भी भाजपा का दबदबा हो गया है।
मेंगलूरु शहर के हृदय भाग वाले निर्वाचन क्षेत्र को पूर्व में मेंगलूरु, मेंगलूरु-1 के नाम से जाना जाता था। क्षेत्र परिसीमन के बाद इसका नाम मेंगलूरु दक्षिण हुआ। यहां गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (जीएसबी), ईसाई और बिल्लाव समुदायों का वर्चस्व है। पार्टी से इतर गौड़ सारस्वत और ईसाई समुदाय ने यहां से ज्यादा बार चुनाव जीता है परन्तु जैन समुदाय से वी. धनंजय कुमार को विधायक बनाने की उपलब्धि भाजपा की है। यह वह निर्वाचन क्षेत्र भी है जहां भाजपा के योगेश भट्ट ने हैट्रिक जीत हासिल की थी।
शुरुआती दिनों में दक्षिणी क्षेत्र में कांग्रेस और वामदलों का आमना-सामना हुआ करता था। 1957 से अब तक के उपलब्ध आंकड़ों पर नजर डालें तो पहले दो चुनावों में कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने वाली सीपीएम को उसके बाद में थोड़ा झटका लगा। चुनावी राजनीति की तस्वीर बदलते ही निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में खड़े होने लगे। इस बीच जाति और धर्म के समीकरण भी बदलने लगे। प्रारंभ में जीएसबी समुदाय कांग्रेस से जीत रहा था। वैकुण्ठ बालिगा, श्रीनिवास नायक आदि को दरकिनार कर ईसाई कांग्रेस से विधायक बनने लगे। इस बीच जनसंघ की गतिविधियां बढऩे लगीं। 70 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस के ईसाई उम्मीदवारों को जनसंघ से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था।
इस बीच, महिला उम्मीदवारों ने भी निर्वाचन क्षेत्र में अपनी छाप छोडऩी शुरू कर दी। 1978 के चुनावों में, पीएफ रोड्रिग्स कांग्रेस से जीते परन्तु जेएनपी की शारदा अचार से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा था।

1983 के चुनाव ने बदली दिशा

मेंगलूरु दक्षिण में भाजपा के लिए 1983 का चुनाव महत्वपूर्ण था। देश में भाजपा ताकत मजबूत होने के उस समय तटीय वाणिज्यिक शहर में जीत हासिल करने के लिए पार्टी को संभव हो पाया परन्तु राज्य की राजनीति में अप्रत्याशित घटनाक्रम के चलते दो ही वर्षों में धनंजय कुमार की विधायक सीट और भाजपा को सीट का नुकसान हुआ। 1985 में हुए चुनाव में कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे ब्लेसियस ने अगला चुनाव भी जीता और विधायक का खिताब बरकरार रखा।
इस हार से उबरी भाजपा 1994 से कांग्रेस के सपने को चूर-चूर कर दिया। योगेश भट्ट ने लगातार चार बार पार्टी विधायक के रूप में जीत हासिल कर एक रिकॉर्ड बनाया। दो दशकों तक निर्वाचन क्षेत्र में गढ़ बनाने वाली भाजपा को एक बार हार का सामना करने के बाद फिर से प्रभुत्व हासिल कर लिया। 2018 में अपने सामने खड़े 10 उम्मीदवारों को हराने वाले वेदव्यास कामत ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 15 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हराया था।
पूरे शहर क्षेत्र में ही फैले दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र में महनगर निगम के 38 वार्ड हैं। राजनीतिक दलों ने अब तक इस सिद्धांत का पालन किया है कि इस क्षेत्र में उम्मीदवारों को मैदान में उतारते समय पार्टी की वफादारी के साथ-साथ जाति और धर्म भी महत्वपूर्ण कारक हैं।

बहुदलीय अखाड़ा

यहां के वोटरों ने कांग्रेस और भाजपा के अलावा अब तक किसी और पार्टी का हाथ नहीं पकड़ा है परन्तु कई दलों ने इस निर्वाचन क्षेत्र को राजनीतिक प्रयोग का अखाड़ा बना लिया है।
1983 में यहां जेएनपी के साथ एमयूएल भी सामने आईं थी। 1989 से, जनता दल ने भी में प्रवेश किया। 1994 के चुनाव में जहां पांच निर्दलीय उम्मीदवार थे वहां ईसाई समुदाय के तीन उम्मीदवार ब्लेसियस का वोट बैंक तोडऩे में कामयाब रहे। दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र के रूप में मेंगलूरु के पुनर्गठन के बाद पहले चुनाव में सीपीएम ने सुधार देखा। बसपा और संयुक्त जनता दल भी मैदान में नजर आए।
2013 के चुनाव में दो निर्दलीय भी योगीश थे जहां योगेश भट्ट हार गए थे। न केवल पांच निर्दलीय उम्मीदवार बल्कि जनता दल, एसडीपीआई और पिरामिड पार्टी भी मैदान में थे। अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों को विभाजित करने के लिए चार उम्मीदवार थे। पिछली बार अखिल भारतीय हिंदू महासभा, अखिल भारतीय महिला अधिकारिता पार्टी और हिंदुस्तान जनता पार्टी ने भी यहां प्रत्याशी उतारे थे।
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मेंगलूरु दक्षिण क्षेत्र के मतदाता

पुरुष – महिला – कुल
1,15,920 – 1,26,441 – 2,42,361

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