कर्नाटक विधानसभा चुनाव-2023
-500 से ज्यादा गांवों में बहिष्कार की धमकी
-जिला प्रशासन और पार्टियों के लिए बना सिरदर्द
हुब्बल्ली.
मतदान प्रतिशत बढ़ाना चाहिए। चुनाव को लोकतंत्र का पर्व बनाने के लिए चुनाव आयोग काफी प्रयास कर रहा है परन्तु राज्य के 500 से ज्यादा गांवों में लोगों ने चुनाव बहिष्कार की धमकी दी है।
जिला प्रशासन के लिए यह बड़ा सिरदर्द है। क्षेत्र के विधायकों के लिए तो यह संकट की स्थिति जीत में बड़ी बाधा बनी हुई है। शर्मसार भी कर रही है।
लोगों ने फुटब्रिज, सस्पेंशन ब्रिज, बिजली, सीवरेज, पेयजल, स्कूल के लिए फुटपाथ जैसी छोटी-मोटी मांगों से लेकर आंतरिक आरक्षण को लेकर चुनाव का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। कई गांवों और टांडाओं में उनकी मांगें पूरी नहीं होने पर मतदान का बहिष्कार करने की चेतावनी देने वाले बैनर गांव के मुख्य द्वार पर लगा दिए हैं। इससे अधिकारियों पर दबाव बढ़ रहा है।
कई गांवों में छोटी-छोटी मांगों को पूरा नहीं करने से पीडि़त ग्रामीणों ने बैनर लगाए हैं। वोट मांगने के लिए आने वालों, राजनीतिक दलों के नेताओं से कहा है कि चुनाव से पहले उनकी मांगों को पूरा करना चाहिए। वरना वे चुनाव से दूर रहेंगे।

प्रशासनिक लाचारी की स्थिति व्यक्त की
पहले ही कई जगहों पर अधिकारी अपने स्तर पर वादे पूरे कर चुके हैं। उन्होंने पानी के कनेक्शन और स्ट्रीट लाइटिंग जैसी समस्याओं का समाधान किया है। अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी शिकायतों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं परन्तु कुछ मांगों के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण कुछ कार्य नहीं हो पाने की स्थिति में अधिकारियों ने प्रशासनिक लाचारी की स्थिति व्यक्त की है।

बेबस होने के उदाहरण हैं
चुनाव अधिकारियों और संबंधित विभाग के अधिकारियों ने व्यक्तिगत रूप से बहिष्कार की धमकी वाले गांवों का दौरा किया है। मांगों को सुना है। वे जनता की फरियाद के लिए आवाज बने हुए हैं परन्तु अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम नहीं कर पाने से बेबस होने के उदाहरण भी हैं।

अधिकारियों ने व्यक्त की लाचारी
चुनाव अधिकारियों ने बहिष्कृत कुछ गांवों का दौरा कर ग्रामीणों को मनाने की कोशिश करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ है। बजट में स्वीकृति नहीं होने और सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता वाले कनेक्शन रोड, भवन, कम्युनिटी हॉल सहित अन्य कार्यों की मांग पूरी नहीं कर पाने के कारण अधिकारियों ने अपनी लाचारी व्यक्त की है।

परेशानी का सबब बना हुआ
इस प्रकार, लोगों ने मामूली मुद्दों से लेकर सरकारी स्तर पर या फिर एक निर्वाचित सरकार के अस्तित्व के दौरान ही पूरी की जा सकने वाली मांगों को सामने रखकर राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनाव का बहिष्कार करने की चेतावनी दी है। यह अधिकारियों, चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

सीधी तौर पर चेतावनी दी
गांव के गांवों का ही चुनाव का बहिष्कार करना, अधिकारियों के स्तर पर पूरी नहीं की जाने वाली मांगों की जिद पर अडे रहना जिला प्रशासन के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। सरकार की ओर से आंतरिक आरक्षण की घोषणा करने के कारण बंजारा समाज ने टांडा में मतदान का बहिष्कार किया है। इसे लेकर कई जगहों पर बैनर लगाए गए हैं। कहीं-कहीं तो देखने में आया है कि हमारे गांव में वोट मांगने मत आना के बैनर लगाकर सीधी तौर पर चेतावनी दी गई है।

बोर्ड लगाकर व्यक्त किया गुस्सा
किसी भी राजनेता को हमारे घर के गेट के अंदर जाने की अनुमति नहीं है लिखा बड़ा बोर्ड लगााने की घटना दक्षिण कन्नड़ जिला सुल्या के अज्जावर में सामने आई है। उनके खेतों में नाली का पानी बह रहा है। इसे ठीक करने की मांग कर रहे हैं। इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के कारण उन्होंने उनके गेट के अंदर किसी को भी प्रवेश नहीं है का बोर्ड लगाकर अपना गुस्सा व्यक्त किया है।

कोई दिशानिर्देश नहीं
मतदाता बहिष्कार को रोकने के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं है परन्तु अधिकारी अपने स्तर पर लोगों की मांग पूरी कर, उन्हें वोट देने के लिए राजी कराने की कार्रवाई करते हैं। ज्यादातर मामलों में चुनाव अधिकारी समझाने-बुझाने में सफल हो जाते हैं। कुछ मामलों में अधिकारी कुछ नहीं कर पाते हैं।
वेंकटेश कुमार, अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी

लोगों ने हमारी बात मान ली है
हमने बहिष्कार के कई मामलों को समझा-बुझाकर सुलझाया है। हमने मतदान के महत्व को समझाया है। हम बहिष्कार के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं की जानकारी देकर समस्या का समाधान कर रहे हैं। हमारी ओर से किए गए सभी प्रयासों का फल मिला है। लोगों ने हमारी बात मान ली है।

  • प्रभुलिंग कवलिकट्टी, जिलाधिकारी, उत्तर कन्नड़
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