
चुनाव जीतने वाले बेंगलूरु में जुटे, हारने वाले गोवा में घूमने-फिरने निकले
हुब्बल्ली. हमारे साहब को कितने वोट मिले? दूसरे राउंड में हमोरी ही लीड, हमारा साहब जीत जाए तो जय हो, हे भगवान इस बार हमारी हार पक्की, चलो भाई अब यहां क्या काम है गोवा चलते हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि विधानसभा चुनाव ने राज्य के अन्य जिलों में कांग्रेस-भाजपा पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच दुश्मनी पैदा कर दी है। कई जगहों पर तो हत्या, चाकूबाजी, पटाखे फोड़ना, नारेबाजी करना और चौंकाने वाली घटनाएं हुई हैं परन्तु धारवाड़ जिले में ऐसी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है, केवल हारने वाली पार्टी के कार्यकर्ता गोवा यात्रा पर निकल गए हैं। लगातार दो-तीन महीने तक दिन-रात अपने-अपने पार्टियों के नेताओं के साथ संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के उम्मीदवारों के समर्थन में काम करने वाले कार्यकर्ता अब गोवा के खूबसूरत समुद्र तटों में मस्ती के मूड में घूम रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के कुछ निष्ठावान कार्यकर्ता, जो अपने नेताओं की हार से बहुत निराश थे, वे भी गांवों को छोड़कर कुछ आराम पाने के लिए गोवा में डेरा डाले हुए हैं।
खेत को ही लगाया था दांव पर
कुछ मन की शांति पाने के लिए दोस्तों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गोवा गए हैं। दांडेली के रिसॉर्ट्स में कुछ और लोगों ने डेरा डाला है। चुनाव के नतीजे आए पांच दिन बीत चुके हैं, परन्तु वे गांवों में नहीं लौटे हैं। जिले में चुनाव परिणाम को लेकर सट्टा लगाने का भी रैकेट चला है। इनमें से धारवाड़ ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के उप्पिनबेटगेरी के पास एक गांव के दो किसानों ने एक-दूसरे को चुनौती दी कि कांग्रेस उम्मीदवार विनय कुलकर्णी और भाजपा उम्मीदवार अमृत देसाई के बीच कौन जीतेगा। इसके लिए दो एकड़ जमीन को दांव पर लगाने का मामला भी चला है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के गांवों में युवाओं की ओर से हजारों रुपए का सट्टा सगाने के बारे में चुनाव के अगले दिन पता चला है। इस बारे में पुलिस को इनमें से कुछ मामलों के बारे में पता चलने के बावजूद उन्होंने पार्टी नेताओं को स्थानीय स्तर पर हल करने का निर्देश देकर पल्ला झाड़ लिया है।
इंटरनेट पर वायरल रणनीति
जिले में विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, हार-जीत का फैसला भी हो चुका है परन्तु कांग्रेस तथा भाजपा पार्टी के कार्यकर्ता मात्र इंटरनेट पर वार्डवार चुनाव परिणाम में अपनी उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे अपने-अपने वार्डों में मिले वोटों, लीड और बैक के आंकड़ों को बटोर कर अपने-अपने गांवों के वाट्सएप ग्रुप में पोस्ट कर अपनी उपलब्धियों के लिए अपनी पीठ भी खुद थपथपा रहे हैं। जिन्हें ज्यादा वोट मिले वे हारने वालों का मजाक उड़ा रहे हैं।
रंजिश की भावना बढ़ी
यह सच है कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में हारने वाले उम्मीदवारों के समर्थकों को गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात का सामना करना पड़ा है। विजेता डीजे और लाइट वाले रथ मंगवाकर प्रत्याशियों को बिठाकर अपने गांवों में जुलूस निकाल रहे हैं। इससे जहां कुछ लोगों में आक्रोश पैदा हुआ है, वहीं इसने गांवों में युवाओं में रंजिश की भावना भी बढ़ा दी है।
कार्यकर्ताओं में जिला पंचायत का समीकरण
हर कोई सोशल मीडिया पर इस बात का ब्योरा भी पोस्ट कर रहा है कि उन्हें अपने गांव और वार्ड में अपनी पार्टी को कितने वोट मिले हैं। आगामी जिला एवं तालुक पंचायत चुनाव में अपने स्टेटस पर पोस्ट लगा रहे हैं कि जीत हमारी पार्टी की ही होगी। विशेष रूप से उनकी पार्टी को जिला पंचायत क्षेत्र में मिले वोटों के आधार पर वे अगले जिला पंचायत चुनावों के लिए तैयार होने की चुनौती दे रहे हैं।
शत्रुता विकसित नहीं करें युवा
चुनाव में जीत हार सामान्य है परंतु युवाओं को इसे समान रूप से स्वीकार करना चाहिए। पार्टियों के वरिष्ठों और प्रमुखों की आपस में अच्छी बनती है। इसके चलते युवाओं को शत्रुता विकसित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- पी.एच. नीरलकेरी, कांग्रेस नेता
एक-दूसरे के प्रति अपनाएं दयालुता
विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दों पर असहमति हर जगह होती है परंतु चुनाव से पहले और बाद में सभी को एक-दूसरे के प्रति दयालु होने की जरूरत है। किसी भी मामले में राजनीति को व्यक्तिगत आधार पर नहीं लाना चाहिए।
- नागेंद्र मट्टी, वरिष्ठ अधिवक्ता, धारवाड़