
उम्मचगी झील में एक व्यक्ति के डूबने के तीन-चार दिन बाद मिला था सड़ा-गला शव
टैंकर से जलापूर्ति की मांग पर अड़े
हुब्बल्ली. चाहे कितनी भी गर्मी हो इस गांव की झील में पानी की कभी कमी नहीं होती है परन्तु इस झील में एक व्यक्ति के गिर जाने और तीन-चार दिन बाद सड़ी-गली लाश मिलने के बाद लोग अपने गांव की झील का पानी पीने से कतरा रहे हैं।
बारिश शुरू होने तक अस्थायी तौर पर टैंकर से पानी की मांग की है। अब उन्हें पीने के पानी के लिए आसपास के गांवों में जाना पड़ रहा है। यह हुब्बल्ली तालुक के नवलगुंद निर्वाचन क्षेत्र के उम्मचगी गांव की स्थिति है। कैसा भी सूखा आए, इस गांव की झील पर इसका असर नहीं पड़ता है।
पीने के पानी की किल्लत
इस बार आसपास के गांवों में पहले से ही पानी की थोड़ी समस्या उपजी है परन्तु यहां मात्रा ऐसी समस्या देखने को नहीं मिली थी परन्तु हाल ही में गांव का एक व्यक्ति झील में गिर कर तीन-चार दिन बाद उसकी लाश सड़ी-गली हालत में मिली, जिसे गांव के लोगों ने देखा। इसके चलते इस झील का पानी पीने के लिए किसी भी सूरत में राजी नहीं हो रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि गांव में पीने के पानी की किल्लत हो गई है और लोगों को दो मटकी पानी के लिए दिन भर इंतजार करना पड़ रहा है।
पानी लाने के लिए पांच किलोमीटर जाना पड़ रहा है
पड़ोसी के रोट्टिगवाड के ग्रामीण इसी झील का पानी पीते थे। हाल ही में हुई घटना से दोनों गांवों के लोगों को पेयजल की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उम्मचगी-रोट्टिगवाड गांव के बीच एक छोटा सा तालाब है, इस पानी के लिए पूरा दिन जूझना पड़ रहा है। गर्मी के कारण वहां भी पानी बिल्कुल सूख गया है, प्रति घंटे दो मटकी पानी मिलना भी मुश्किल हो गया है। दिन भर पानी का इंतजार करने की स्थिति बनी हुई है। अब साइकिल या दोपहिया वाहन से पानी लाने के लिए पांच किलोमीटर दूर नलवड़ी और छह किलोमीटर दूर कोड्लिवाड़ जाना पड़ रहा है। इसलिए गांव की महिलाएं दिन में दो मटकी पेयजल के लिए तंग आ चुकी हैं।
झील का पानी खाली करने की जिद
झील में तीन चार दिन तक डूबे शव को मछली व अन्य कीड़े-मकोड़ों ने पूरी तरह से काटा था। इसके चलते ऐसा पानी पिना संभव नहीं है। इसलिए ग्रामीण तालाब से पानी निकालने की जिद पर अडे हैं परन्तु अगर भविष्य में बारिश की समस्या होने पर अन्य उपयोग और पशुओं को पानी की समस्या होने पर एक और कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, यह अधिकारियों की दूरदर्शिता है। भविष्य में अच्छी वर्षा होगी, इस पानी को खाली नहीं किया गया तो इसका उपयोग पीने के लिए नहीं किया जाएगा। तब तक टैंकर से पानी आपूर्ति करने का दबाव बनाया है।
अपील का कोई फायदा नहीं
घटना के बाद ग्रामीण किसी भी कारण से झील का पानी नहीं पीने से कतरा रहे हैं। इसके चलते फिल्टर का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करें कह कर 20 रुपए लीटर पानी की व्यवस्था की है। इस फिल्टर में इसी झील का पानी आता है, इसके चलते गांव वालों को डर है कि अगर कुछ भी हो गया तो क्या होगा। इसके बजाय पहले की तरह अस्थायी रूप से टैंकर से पानी की आपूर्ति करने की मांग करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इसके अलावा, ग्राम पंचायत की ओर से तालुक पंचायत, तहसीलदार, जिला पंचायत मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) से टैंकर के पानी के लिए की गई अपील का कोई फायदा नहीं हुआ।
पानी में कुछ भी गलत नहीं
झील में लाश मिलने के अगले दिन ही पानी को जांच के लिए भेजा गया था परन्तु प्रयोगशाला की एक रिपोर्ट आई है कि पानी में कोई हानिकारक तत्व या पीने लायक नहीं बैक्टीरिया नहीं है। दोबारा पानी की जांच की करने पर भी नतीजा वही निकला। साथ ही चिकित्सकों व तकनीशियनों की उपस्थिति में वैज्ञानिक तरीके से औषधीय छिडक़ाव किया गया है। इसके अलावा अधिकारियों ने उस पानी को पीकर हिम्मत प्रोत्साहित करने के बाद भी ग्रामीण मात्र इसका इस्तेमाल करने से हिचकिचा रहे हैं। ग्रामीण टैंकर से पानी की आपूर्ति की मांग कर रहे हैं।
टैंकर से पानी की आपूर्ति करें
आंखों के सामने झील में सड़ी लाश को देखने के बाद ऐसे पानी को पीना कैसे संभव है? दो मटकी पानी के लिए दिनभर इंतजार की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। दूर-दराज के गांवों में जाकर धूप में पानी लाना पड़ता है। समझ नहीं आता कि अधिकारी ग्रामीणों की पानी की समस्या को लेकर इतने लापरवाह क्यों हैं। गांव में पहले की तरह अस्थायी तौर पर टैंकर के पानी की आपूर्ति करनी चाहिए।
–शिवनगौड़ा पाटिल, ग्रामीण
दो बार किया वैज्ञानिक परीक्षण
प्रयोगशाला में झील के पानी का दो बार वैज्ञानिक परीक्षण किया जा चुका है। रिपोर्ट आई है कि पानी में कोई हानिकारक तत्व नहीं मिला है। इसके बाद भी पीछे हटने के कारण फिल्टर्ड पानी बहुत कम दर पर उपलब्ध करने के बाद भी उपयोग नहीं किया जा रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों ने गांव में आकर जांच की है परन्तु ग्रामीण टैंकर से पानी आपूर्ति की मांग कर रहे हैं।
–ललिता वड्डर, ग्राम पंचायत विकास अधिकारी