हुलिगुड्डा सिंचाई परियोजना: 1992 में मात्र 63 करोड़ रुपए थी अनुमानित लागत
हुब्बल्ली. गदग जिला मुंडरगी तालुक को स्थायी रूप से सूखे से मुक्त कराने के लिए 1992 में तालुक के हम्मिगी गांव के पास तुंगभद्रा नदी के लिए शिंगटालूर हुलिगुड्डा लिफ्ट सिंचाई परियोजना शुरू की गई थी। शुरुआत में 63 करोड़ रुपए की लागत से शुरू की गई परियोजना की लागत अब हजारों करोड़ पार होने के बाद भी किसानों की भूमि में पर्याप्त जल प्रवाह नहीं होने से कृषक समुदाय में असंतोष पैदा हुआ है।
सिंचाई परियोजना से मुंडरगी तालुक की 92,281 एकड़, गदग तालुक की 66,827 एकड़, कोप्पल तालुक की 55,706 एकड़, यलबुर्गा तालुक की 14,624 एकड़ और हूविनहडगली तालुक की 35,791 एकड़ जमीन को पर्याप्त पानी मिलना चाहिए था और किसानों का जीवन सुधरना चाहिए था परन्तु दो दशकों से योजना के तहत सभी किसानों की जमीन में पानी नहीं पहुंचने से किसानों का सपना सपना ही बनकर रह गया है।
किसान समुदाय की शिकायत है कि जन प्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति की कमी, अधिकारियों की लापरवाही, ठेकेदारों के स्वार्थ के कारण सिंचाई परियोजना अधूरी रह गई है और इसके पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। सिंचाई परियोजनाओं पर हर साल सैकड़ों करोड़ रुपए बर्बाद हो रहे हैं, परन्तु किसानों की जमीन को ही पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है।
तालुक के सैकड़ों किसानों ने सिंचाई योजना के लिए अपनी उपजाऊ भूमि खो दी है। परियोजना के बैकवाटर में डूबने के डर से सैकड़ों करोड़ रुपए की लागत से तालुक के तीन गांवों को स्थानांतरित करने की कार्रवाई की गई। इसके बाद भी तालुक के सभी किसानों की भूमि पर पानी का प्रवाह नहीं होने से किसानों में असंतोष है। प्रारंभ में किसानों की जमीनों को नहरों के माध्यम से पानी उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई। इसके लिए तालुक के विभिन्न हिस्सों में बड़ी और छोटी नहरों का निर्माण किया गया। अधिकांश भागों में नहरों के अवैज्ञानिक निर्माण के कारण नहर के माध्यम से किसानों की भूमि तक पानी नहीं पहुंचा। खेतों के बगल में बड़ी-बड़ी नहरें गहराई तक बनाने से पानी किसानों के खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा है। इसलिए अब तालुक की अधिकांश बड़ी नहरें दफन हो चुकी हैं और वे सभी पौधों से घिरी हुई हैं। सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने हाल ही में किसानों की जमीनों को नहरों के बजाय ड्रिप सिंचाई के जरिए सिंचित करने की योजना तैयार की है।
हजारों करोड़ रुपए की लागत से बनी सिंचाई परियोजना पूरी तरह से विफल हो गई है और किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिला है। इसका फायदा सिर्फ अधिकारियों, ठेकेदारों और जन प्रतिनिधियों को ही हुआ है।
–वाईएन गौडर, अध्यक्ष, तालुक विकास संघर्ष मंच, मुंडरगी
हमारा सपना था कि शिंगटालूर सिंचाई परियोजना पूरी तरह से लागू होगी और इस क्षेत्र के किसानों का जीवन सुधर जाएगा। अब पानी नहीं आ रहा है, इसलिए यह काफी निराशाजनक है।
–शिवानंद इटगी, जिला अध्यक्ष, किसान संघ
किसानों की जमीन तक पानी पहुंचाने को लेकर अधिकारी जनप्रतिनिधि गुमराह कर रहे हैं। योजना शुरू हुए दो दशक हो चुके हैं इसके बावजूद नियमित पानी का प्रवाह नहीं होना इस भाग के किसानों का दुर्भाग्य है।
– वीरनगौड़ा पाटिल, सचिव, राज्य गन्ना उत्पादक संघ
ड्रिप सिंचाई के कार्यान्वयन के संबंध में कई किसानों के बीच कुछ गलतफहमियां और भ्रम है। ड्रिप सिंचाई परियोजना को सही तरीके से क्रियान्वित करने पर पानी का संयमित उपयोग समेत इसके कई उपयोग हैं। नहरों की बजाय ड्रिप सिंचाई से किसानों की जमीनों की सिंचाई आसानी से की जा सकती है। ड्रिप सिंचाई के उचित कार्यान्वयन और उपयोग के बारे में किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए तालुक के विभिन्न हिस्सों में जल उपयोगकर्ता संघों का गठन किया गया है।
–महांतेश नेगलूरु, जेई,सिंचाई विभाग