
आईवीएफ केंद्र पीएचसी कर्मचारियों को देगा प्रशिक्षण
हुब्बल्ली. मातृत्व के भाग्य के बिना संघर्ष कर रहे कई जोड़ों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में आईयूआई (इन्ट्रा यूटेराइन इंसेमिनेशन) (अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान) उपचार के माध्यम से संतान का सौभाग्य दिया जा रहा है। कर्नाटक-महाराष्ट्र के पीएचसी कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए कनेरी के सिद्धगिरी आईवीएफ सेंटर ‘जननी’ ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
अगर राज्य सरकारें इसका समर्थन करती हैं तो कई जोड़े बहुत कम खर्चे पर पीएचसी स्तर पर ही संतान सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। आयुर्वेद-एलोपैथी विज्ञान के सहयोग से विश्व की सबसे बड़ी धर्मार्थ सेवा के सिद्धगिरी आईवीएफ सेंटर जननी ने अब ग्रामीण और गरीब आबादी को बेहद कम कीमत पर इलाज मुहैया कराकर दुनिया का ध्यान खींचा है।
पीएचसी स्तर पर प्रशिक्षण योजना, बेहद कम लागत में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) उपचार और अन्य योजनाओं के बारे में सिध्दगिरी आईवीएफ केंद्र की विशेषज्ञ डॉ. वर्षा पाटिल ने बताया कि राष्ट्रव्यापी, अधिकांश आईवीएफ केंद्र महानगरीय शहरों में स्थित हैं। लोगों की धारणा है कि आईवीएफ महंगा है।
उन्होंने बताया कि भारत में अनुमानित 14 करोड़ लोग सालाना आईवीएफ करवाते हैं, जिनमें से लगभग 9.6 करोड़ ग्रामीण हैं। ग्रामीण लोगों को आईवीएफ सेवाएं लेने के लिए शहरों में आना पड़ता है। एक बार नहीं, दो बार नहीं कई बार आना पड़ता है। आईयूआई, आईवीएफ सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से और कम कीमत पर उपलब्ध हों, यह कनेरीमठ के आदृश्य काड़सिद्धेश्वर स्वामी की इच्छा है।
डॉ. वर्षा पाटिल ने बताया कि सर्वेक्षण के अनुसार, प्राकृतिक तरीकों से गर्भधारण करने में असमर्थ जोड़ों की संख्या वैश्विक स्तर पर 30-40 प्रतिशत है, तो भारत में यह 20-25 प्रतिशत है। कहा जाता है कि आगामी दिनों में मातृत्व की समस्या बढ़ेगी और मर्दानगी में गिरावट आएगी।
केन्द्रीय बजट का 12.5 फीसदी होगा खर्च
उन्होंने बताया कि कहा जा रहा है कि 2026 तक केंद्रीय बजट का 12.5 फीसदी मातृत्व पर खर्च किया जाएगा। भारत में, सुविधाओं की कमी और उच्च लागत के कारण बांझपन का सामना कर रहे जोड़ों में से केवल एक प्रतिशत ही उपचार के लिए आगे आ रहे हैं। आईवीएफ उपचार पर वर्तमान में दो लाख से ढ़ाई लाख रुपए तक और कुछ जगहों पर तीन से 3.5 लाख रुपए तक खर्च हो रहा है।
50 से 60 हजार में इलाज
डॉ. वर्षा पाटिल ने बताया कि गरीबों के लिए यह संभव नहीं है, जानकर जननी में 50-60 हजार रुपए में ही इलाज किया जा रहा है। स्वामीजी ने इसे 35 हजार रुपए में देने का निर्देश दिया है परन्तु आईवीएफ उपचार के एक इंजेक्शन की कीमत 80 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक है, इसे भी दिया जा रहा है इस लिए 50-60 हजार रुपए में देने का फैसला किया गया है।
डॉ. वर्षा ने बताया कि शादी के तीन साल के भीतर कोई संतान नहीं होने पर ऐसे जोड़े डॉक्टर के पास जा कर आईयूआई उपचार करवा सकते हैं। यह गर्भाशय की परत की सफाई करके प्राकृतिक तरीके से ही मातृत्व प्राप्त कर सकते हैं। यह काफी सस्ता इलाज भी है। ऐसा इलाज सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध करवाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि कर्नाटक सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और अन्य जगहों पर जच्चा-बच्चा अस्पताल बनाया है। आईयूआई सेंटर की स्थापना के लिए ज्यादा लागत की आवश्यकता नहीं है। आईयूआई उपचार के लिए एक अच्छी गुणवत्ता वाला माइक्रोस्कोप, सोनोग्राफ यूनिट आवश्यक है। लगभग 2.5 से 5 लाख रुपए तक कुछ मशीनरी की मदद करेंगे तो पर्याप्त हैं।
हम जननी आईवीएफ केंद्र के कर्मचारियों को प्रशिक्षित और पर्यवेक्षण करेंगे। हमने कर्नाटक और महाराष्ट्र में ऐसा प्रयोग शुरू करने का फैसला किया है। सरकार को 25 पीएचसी क्षेत्र में कम से कम एक और सिविल अस्पताल में एक केंद्र के साथ मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक आईवीएफ केंद्र शुरू करना चाहिए।
पूर्व मंत्री जोल्ले परिवार का सहयोग
डॉ. उषा ने बताया कि पूर्व मंत्री शशिकला अन्नासाहेब जोल्ले ने कनेरी में सिद्धगिरी आईवीएफ केंद्र ’’जननी’’ को महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। इस मदद की बदौलत, जननी के पास आईवीएफ के लिए सभी आवश्यक विश्व स्तरीय मशीनरी के साथ लगभग 9,000 वर्ग फुट का एक अस्पताल है। उन्होंने बताया कि मॉड्यूलर सर्जरी थियेटर, भ्रूणविज्ञान परिसर, एंड्रोलॉजी विभाग, प्रयोगशाला, आयुर्वेद विभाग, परामर्श कक्ष अन्य सुविधाएं हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. चंद्रशेखर के नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार के साथ गर्भसंस्कार किया जाता है। जननी में पांच डॉक्टर और 20 कर्मचारी हैं। युगल से प्राप्त अण्डाणु-शुक्राणु को लगभग 10 वर्षों तक सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था है। उनकी अनुमति के बिना इसे किसी भी कारण से दूसरों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। आईवीएफ उपचार के दौरान भी पारदर्शिता बरती जा रही है। डॉ. वर्षा पाटिल कहती हैं कि केवल पैसे से ही बच्चा पैदा करना नामुमकिन है। समय पर सही इलाज से मातृत्व हासिल किया जा सकता है। श्री आदृश्य काड़सिद्धेश्वर स्वामी के विचार और ग्रामीणों के प्रति उनकी चिंता के कारण, मैंने अपना अस्पताल छोडक़र पूरी तरह से जननी में सेवा करने का फैसला किया।
आसान तरीके से इलाज की योजना
उन्होंने बताया कि स्वामीजी की इच्छा के अनुसार, ग्रामीण जोड़ों को और करीबी तथा आसान तरीके से मातृत्व का उपचार उपलब्ध करने की योजना बनाई गई है। मातृत्व प्राप्त करने के लिए आईवीएफ अंतिम चरण है और इससे पहले आईयूआई उपचार से भी फायदा हासिल कर सकते हैं।
डॉ. पाटिल ने बताया कि विशेष रूप से, शादी के तीन साल के भीतर बच्चा नहीं होने पर दंपत्ति को तुरंत इलाज कराना चाहिए परन्तु भारतीयों में संतान नहीं होने पर धार्मिक केंद्रों, ज्योतिषियों और अन्य उपायों के बाद पांच-छह, सात-आठ साल बाद इलाज कराने को आगे आते हैं तो वहीं कुछ लोग इधर-उधर के चक्कर लगाकर 10-15 साल बाद आईवीएफ करवाने के लिए आते हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं में अण्डाणु और पुरुषों में शुक्राणु की उर्वरता घट रही है, इससे भ्रूण का विकास नहीं होने की समस्या पेश आएगी। दंपति के अंडे और शुक्राणु लेकर प्रयोगशाला में भ्रूण को विकसित कर इसे गर्भाशय में डालना ही आईवीएफ उपचार है।