
भाषा कलिका सप्ताह : शिक्षकों और अभिभावकों ने की सराहना
हुब्बल्ली. हुब्बल्ली शहर क्षेत्र शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने कन्नड़ स्कूलों में पढ़ने वाले जिनके पास वर्णमाला का आधार नहीं है उन बच्चों के भाषा ज्ञान में सुधार के लिए भाषा कलिका सप्ताह (भाषा शिक्षण सप्ताह) कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। यह अभिनव कार्यक्रम राज्य में अपनी तरह का पहला है, जिसकी शिक्षकों और अभिभावकों ने सराहना की है।
पिछले शैक्षणिक वर्ष के पांच महीने की सीखने की अवधि (नवंबर-मार्च) के दौरान, 4-7 कक्षा तक के 2,383 बच्चों की सीखने की क्षमता में वृद्धि की गई है। जिन बच्चों को कन्नड़ वर्तनी का ज्ञान नहीं था, वे अब धाराप्रवाह पढ़ और लिख सकते हैं। शहर क्षेत्र शिक्षा अधिकारी (बीईओ) चन्नप्पगौड़ा सहित बीआरसी, सीआरसी, बीआईईआरटी, ईसीओ सहित पांच सदस्यों की छह टीमों ने बच्चों के सीखने के स्तर को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की है।
69 फीसदी प्रगति हासिल की
हुब्बल्ली शहर क्षेत्र के कन्नड़ स्कूलों में कक्षा 4 से 7 तक पढऩे वाले कितने बच्चे कन्नड़ पढ़ और लिख नहीं सकते, इस पर एक सर्वेक्षण किया गया था। 12 क्लस्टरों के 88 स्कूलों के 9,801 बच्चों का सर्वेक्षण किया गया था। इनमें से 3,468 बच्चों को कन्नड़ स्पेलिंग का ज्ञान नहीं होने के बारे में पता चला है। प्रधानाध्यापकों, कक्षा शिक्षकों और अधिकारियों की टीमों ने कक्षा में खाली समय में बच्चों के बीच वर्तनी का अभ्यास करवाकर पांच महीनों में 69 फीसदी प्रगति हासिल करने में सफल रहे।
भाषा शिक्षण सप्ताह का आयोजन
हुब्बल्ली शहर क्षेत्र शिक्षा अधिकारी चन्नप्पगौड़ा ने कहा कि जब मैंने हुब्बल्लली शहर में सरकारी और अनुदानित स्कूलों का दौरा किया, तो पाया कि कुछ बच्चों को कन्नड़ वर्णमाला का कोई ज्ञान नहीं था।
चौथी से सातवीं कक्षा के बच्चों का स्पेलिंग टेस्ट के माध्यम से सर्वेक्षण किया गया तो यह देखा गया कि 35 फीसदी बच्चों के पास अक्षर आधार नहीं था। इनमें कक्षा 7 के 831 बच्चे कन्नड़ नहीं जानते थे। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर ही यदि उन्हें पहचान कर साक्षर बनाने पर वे एसएसएलसी परीक्षा में असफल होने से बच जाएंगे। हमने एसएसएलसी मिशन के तहत बुनियादी साक्षरता के लिए भाषा शिक्षण सप्ताह का आयोजन किया है।
चालू शैक्षणिक वर्ष में भी जारी रखेंगे
उन्होंने कहा कि जिन बच्चों के पास वर्णमाला का आधार नहीं है, उनके लिए शिक्षक प्रतिदिन एक समय निर्धारित करते हैं, अक्षर, बहुवचन, उच्चारण अक्षरों, भाषा के खेल, व्याकरण, शिल्प गतिविधियों, ड्राइंग, बच्चे की रुचि के हिसाब से सामग्रियों को जोड़ने, लेखन, पढऩा, मनोवैज्ञानिक शिक्षा के लिए आरक्षित किया।
स्कूल के शिक्षकों के प्रयासों के कारण, कन्नड़ नहीं जानने वाले 69 फीसदी बच्चे अब आसानी से पढ़ और लिख सकते हैं। वे इस योजना को चालू शैक्षणिक वर्ष में भी जारी रखेंगे और ऐसे बच्चों को तैयार करेंगे जिनकी शिक्षा अधूरी है।
अभी गणित और अंग्रेजी सप्ताह चल रहा
शहरी प्राथमिक शिक्षा से हाई स्कूल जाने वाले शहरी क्षेत्र के कन्नड़ स्कूलों के कुछ बच्चे कन्नड़ ठीक से नहीं पढ़ सकते हैं। उनमें भाषा कलिका सप्ताह योजना भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है। वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में गणित और अंग्रेजी भाषा सीखने का सप्ताह आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। जून माह में गणित व अंग्रेजी में पिछडऩे वाले बच्चों का सर्वे कर विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। सोमवार, गुरुवार- भाषा, मंगलवार, शुक्रवार- गणित पढ़ाया जाएगा। शैक्षणिक वर्ष के दूसरे कार्यकाल के नवंबर में अंग्रेजी सीखने पर जोर दिया जाएगा। भाषा सप्ताह को 8वीं कक्षा के बच्चों तक भी बढ़ाया जाएगा। इससे एसएसएलसी परिणामों में सुधार होगा।
-चन्नप्पगौड़ा, क्षेत्र शिक्षा अधिकारी, हुब्बल्ली शहर
अभी गणित और अंग्रेजी सप्ताह चल रहा
भाषा शिक्षण सप्ताह से पता चला है कि अगर बच्चे अपनी मातृभाषा में महारत हासिल कर लें तो वे किसी भी भाषा में महारत हासिल कर सकते हैं। जो बच्चे पढ़ नहीं सकते वे अब पढऩा सीख चुके हैं और हीनता से बाहर आए हैं।
-सीटी बारकेर, शिक्षिका, अक्किहोंडा सरकारी प्राथमिक विद्यालय
ऐसे काम करती है टीम…
क्षेत्र शिक्षा अधिकारी क्षेत्र समन्वय अधिकारी, शिक्षा संयोजक, शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व में पांच सदस्यों की छह टीमें सीखने में पिछड़े बच्चों के स्कूलों का नियमित रूप से दौरा कर शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। सीखने में सुधार आकलन तकनीक शिक्षकों को रचनात्मक सीखने में संलग्न होने के बारे में सूचित करती है। एक दिन अचानक सभी टीमें ऐसे चयनित विद्यालयों में जाकर निरीक्षण करती हैं। इस दौरान कुछ शिक्षक बिना पूर्व तैयारी के बिना शिक्षण सामग्री के पढ़ा रहे हैं। उनमें कमी को पहचाकर उपाय सुझाव देकर दुबारा दौरा करने पर सुधार करने का मौका दिया जाता है। विभाग ने ऐसे 14 शिक्षकों की भी पहचान की है और वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में सुधार नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्णय लिया है।