11वीं और 12वीं शताब्दी में बना किला
विरासत
जीर्णोद्धार की राह ताकता डंबल का सुंदर किला
हुब्बल्ली. सबसे पहले कन्नड़ की धरा पर किलों का निर्माण तीसरी से चौथी शताब्दी में सातवाहन की ओर से शुरू किया गया था। राज्य के कुछ किलों का इतिहास लगभग 2 हजार साल पुराना है। प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक युग में जैसे-जैसे युद्ध कला और हथियार बदले हैं, उनके डिजाइन और निर्माण के तरीके भी बदले हैं। गौरवशाली जीवन की कहानी कहने वाले किले अब विलुप्त होने की कगार पर हैं, सरकार और पुरातत्व विभाग को किलों के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें संरक्षित करने की कार्रवाई करनी चाहिए।

बुजुर्ग चंद्रु यलमली का कहना है कि किले का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है और उत्तर भाग में मात्र केवल मीनारें ही बची हैं। किले के चारों ओर गहरी खाई है। किले के पीछे एक विशाल झील बनी हुई है। झील के पानी को खाई में प्रवाहित करने की व्यवस्था की गई है। तांबोटी के बगीचे में किले के अंदर से जाने के लिए लगभग एक नहर चौड़ा भीतरी रास्ता है और यह रास्ता 8 किलोमीटर दूर हिरेवड्डट्टी गांव तक जाता है।

गांव के बुजुर्ग गविसिद्दप्पा बिसनहल्ली का कहना है कि हमारी विरासत की कडिय़ां टूट जाएंगी। डंबला में किला सहित कई प्राचीन मंदिर, स्मारक और पर्यटक स्थल हैं, यदि उन्हें विकसित किया जाए और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, तो आज के युवाओं को प्राचीन काल के इतिहास के बारे में जानना संभव होगा।

व्याख्याता रमेश कोर्लहल्ली कहते हैं कि ऐतिहासिक अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि डंबल गांव को घेरा हुआ बड़े काले पत्थर का सुंदर किले का निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी में हुआ था। अब यह किला विलुप्त होने के कगार पर है, अगर पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दे और इसे विकसित करे तो यह किला सैकड़ों वर्षों तक जीवित रह सकता है। अन्यथा किला लुप्त हो जाएगा और राजाओं की ओर से रचा गया इतिहास पूरी तरह भुला दिया जाएगा।

कभी थी विशिष्ट पहचान

त्याग, भोग और बलिदान के गौरवशाली जीवन की कहानी कहने वाले किलों का निर्माण कराने वाले जिस प्रकर कालगर्भ में समा गए हैं उसी तरह किले के निर्माताओं की हालत किलों की बनी हुई है। राज्य की सुरक्षा के लिए, उस समय के युद्ध कौशल के अनुसार शत्रु का प्रभावी ढंग से विरोध करने की खातिर किलों का निर्माण किया गया परन्तु आज की स्थिति में युद्ध की रणनीति में बदलाव के कारण ये किले अपना महत्व खो चुके हैं और महज स्मारक बनकर रह गए हैं। किलों का संरक्षण सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है और इनका जीर्णोध्दार होना चाहिए।

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