अतिक्रमण पट्टा, 43 हजार एकड़ जमीन की मांगअतिक्रमण पट्टा, 43 हजार एकड़ जमीन की मांग

आवेदन सौंपने की अवधि समाप्त

4,113 किसानों ने सौंपा आवेदन

चिक्कमगलूरु तालुक में ही सबसे ज्यादा

चिक्कमगलूरु. राजस्व भूमि अतिक्रमण पट्टा प्राप्त करने के लिए आवेदन की अवधि समाप्त हो गई है, 4,000 से अधिक किसानों ने 43,000 एकड़ से अधिक भूमि के पट्टे के लिए आवेदन किया है।

कॉफी उत्पादक संघ के वर्षों के संघर्ष के फलस्वरूप सरकार ने अतिक्रमण वाली 25 एकड़ भूमि को पट्टे पर देने का निर्णय लिया है।
एक जनवरी 2005 से पहले अतिक्रमित भूमि पर बागान फसलें (इलायची, कॉफी, काली मिर्च, रबर, चाय) उगाई जा रही हैं, तो इसे 30 वर्ष की अवधि के लिए पट्टे के आधार पर प्राप्त करने का माका है।

अधिकारियों ने अनुमान लगाया है कि चिक्कमगलूरु जिले में 20,844 एकड़ राजस्व भूमि पर अतिक्रमण हुआ है। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2024 को थी।

शुरू में इसमें रुचि नहीं दिखाने वाले किसानों ने अंतत: आवेदन 4,113 किसानों ने आवेदन किया है। अनुमान लगाया गया था कि दस हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हो सकते हैं। आवेदनों की संख्या में कमी आई है, इसके बावजूद पट्टे के लिए अनुरोधित जगह की मात्रा अधिक है।

जिले में सौंपे गए आवेदनों में से आधे से अधिक आवेदन चिक्कमगलूरु तालुक में ही सौंपे गए हैं, जहां किसानों ने पट्टे के लिए 34,000 एकड़ भूमि की मांग की है। उपलब्ध स्थान की मांग दोगुनी हो गई है। तरीकेरे तालुक में सब से कम दो किसानों ने 20 एकड़ जमीन की मांग की है।

43,887 एकड़ जमीन पट्टे पर देने की मांग की गई है परन्तु सवाल यह है कि क्या वास्तव में उतनी जमीन है जितनी किसानों ने मांगी है।
किसानों को यह स्पष्ट नहीं है कि जिस भूमि पर उन्होंने अतिक्रमण किया है, वह वन भूमि है या राजस्व भूमि। राजस्व भूमि होने के बावजूद मलेनाडु की सारी भूमि जंगल का रूप ले चुकी है। कई स्थानों पर वन विभाग अभी भी कह रहा है कि अधिकांश क्षेत्र वन माना गया है। कुछ स्थानों पर धारा 4 लागू की गई है। आरक्षित वन में ही अतिक्रमण का स्तर बहुत ज्यादा है।

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