प्रशिक्षक महेश माशाल ने कहा
हुब्बल्ली. माइंडसेट प्रशिक्षक एवं विचारक महेश माशाल ने कहा कि शिक्षा व्यक्ति में छिपी शक्ति को जागृत करती है। यह केवल अंक अर्जित करने का जरिया नहीं बल्कि व्यक्तित्व का दर्पण है। शिक्षकों के लिए विद्यार्थियों को प्रेरक तरीके से मार्गदर्शन करना आवश्यक है।
वे धारवाड़ के जेएसएस सन्निधि सभागार में जिला प्रशासन, जिला पंचायत एवं स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से आयोजित शिक्षा परिवर्तन; भविष्य निर्माण 2025-26 के अंतर्गत जिले के प्राथमिक एवं उच्च विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों तथा स्कूल विकास एवं पर्यवेक्षण समिति के अध्यक्ष एवं सचिवों की एक दिवसीय शैक्षणिक कार्यशाला में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में मानवीय मूल्यों में कमी आई है। जिम्मेदारी लेने एवं कार्य करने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। शिक्षकों को जिम्मेदार पद संभालने की चुनौती स्वीकार करने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए। सिर में पढ़ाने का जुनून और सीने में उपलब्धि की चाहत लेकर ईमानदारी से आगे बढऩे से ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
माशाल ने कहा कि सभी को आंसू, गरीबी, अपमान और हार जीवन का पाठ पढ़ाते हैं। ये एक दिन सफलता प्राप्त करने में सहायक होते हैं। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में मौजूद अच्छे आदर्श मूल्यों को शिक्षा प्रणाली में लागू करना चाहिए। मनुष्य की सोच के अनुसार ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का रूपांतरण होता है। इसे सही दिशा में ले जाना जरूरी है। समाज में गुरु के मूल्यों में कमी न आए इस बात का ध्यान रखते हुए विद्यार्थियों को सही मार्ग पर चलने वाली शिक्षा देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे बच्चों को यौवन के बाद उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में बताएं। इससे उन्हें मानसिक तनाव से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि लेनी चाहिए। उनके काम पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें तनाव से मुक्त रखने का प्रयास करना चाहिए। आज के समाज में मोबाइल फोन के उपयोग से बच्चों पर दबाव पड़ रहा है। इसलिए, यह बच्चों के स्वास्थ्य, उनके मस्तिष्क और मन पर प्रभाव डाल रहा है। इसलिए, मोबाइल फोन का उपयोग न करने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। चूंकि स्कूल में शिक्षक और घर पर अभिभावक बच्चों के साथ बातचीत करते हैं, इसलिए वे खुलकर बात करते हैं। वे उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं। इसलिए, कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। बच्चों को स्कूलों में पाठों के माध्यम से मस्तिष्क और मस्तिष्क के काम के बारे में बताना चाहिए। अगर उन्हें पता है कि उनका दिमाग कैसे काम करता है, तो इससे उन्हें जीवन में आगे बढऩे में मदद मिलेगी।
हुब्बल्ली ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षा अधिकारी उमेश बोमक्कनवर ने स्कूल विकास और निगरानी समिति की जिम्मेदारी और कर्तव्य के बारे में बात की और कहा कि बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्राथमिक शिक्षा को पूरा करने के लिए एक स्थायी कानूनी ढांचा प्रदान किया है। इसमें समानता और भेदभाव के सिद्धांतों के आधार पर बच्चों को समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और बच्चों के समग्र विकास पर जोर दिया गया है। यदि स्कूल और स्कूल विकास एवं निगरानी समितियां अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से निर्वहन करेंगी तो ही बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान की जा सकेगी। इससे स्कूल के परिणाम और विकास में योगदान मिलेगा। शिक्षकों को बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के तहत प्रत्येक सरकारी और अनुदानित स्कूल में एसडीएमसी का गठन करना अनिवार्य है। इसे स्कूल, अभिभावकों और स्थानीय समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करना चाहिए।
स्कूल शिक्षा विभाग के उपनिदेशक एस.एस. केलदिमठ ने कहा कि शिक्षकों को विद्यार्थियों के उच्च सपनों के लिए प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करना चाहिए। बच्चों के अच्छे परिणाम ही देश का भविष्य हैं। हम सभी को बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए प्रयास करना चाहिए तथा मिशन विद्याकाशी की सफलता के लिए प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम के मंच पर डाइट प्राचार्या जयश्री कार्यकारी, प्राथमिक एवं उच्च विद्यालय प्रधानाध्यापक संघ तथा शिक्षक संघ के नेता उपस्थित थे।
कार्यशाला में जिले के सभी क्षेत्र शिक्षा अधिकारी, प्राथमिक एवं उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक, प्राचार्य तथा एसडीएमसी अध्यक्षनों ने भाग लिया था।