दावणगेरे. साध्वी भव्यगुणाश्री ने कहा कि जीवन विकास की यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सत्संग की है। सत्संग पारसमणि से भी अधिक शक्तिशाली है। पारसमणि में लोहे को सोने में बदलने की शक्ति होती है, परन्तु वह लोहे को पारसमणि में नहीं बदल सकती, जबकि हत्यारा अंगुलिमाल सत्संग के कारण संत बन गया। भयंकर क्रोधी चंडकौशिक सांप भी शांत हो गया। मनुष्य को हजारों काम छोडक़र सत्संग करना चाहिए। सत्संग करणस्थ नहीं, हृदयस्थ करना चाहिए।
दावणगेरे के काईपेट में श्री शंखेश्वर पाश्र्व राजेन्द्र सूरि गुरुमंदिर संघ में धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी भव्यगुणाश्री ने कहा कि तुलसीदास भी कहते हैं कि छह मिनट का सत्संग करोड़ों जन्मों के पापों को धोने में सक्षम है। शरीर का टॉनिक भोजन और पानी है। आत्मा का टॉनिक सत्संग है। हजारों समस्याओं की एक दवा है तो वह सत्संग है।
साध्वी शीतल गुणाश्री ने कहा कि शरीर आराम की तलाश में है, हालात पैसों की तलाश में, मन शांति की तलाश में और दिल अपनों की तलाश में है। एक मिलता तो दूसरा छूट जाता है। सबका संतुलन बना के सबके मजे लेने वाले को मुकद्दर का सिकंदर कहते हैं। बहुत सारी समस्याएं सिर्फ दूसरों के नज़रिए को समझ लेने भर से हल हो जाती हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने की और शो-ऑफ की होड सी लगी है।
इस अवसर पर मांगीलाल जैन, पुनमचंद सोलंकी, अंबालाल शाह, महेंद्र जैन, राजेंद्र पोरवाल, राजु भंडारी, संतोष जैन, सुरेश जैन, भारती पोरवाल आदि उपस्थित थे। काफी संख्या में श्राविकाओ ने लाभ लिया था।
