साणेहल्ली पंडिताराध्य शिवाचार्य स्वामी ने की मांग
हुब्बल्ली. साणेहल्ली पंडिताराध्य शिवाचार्य स्वामी ने कहा कि 12वीं शताब्दी में अस्तित्व में आए लिंगायत धर्म को अब स्वतंत्र होने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु इसे कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए।
वे लिंगायत उप-पंथों के संगठन की ओर से आयोजित कार्यक्रम लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन मंच के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
स्वामी ने कहा कि लिंगायत धर्म स्वतंत्र धर्म है, यह हिंदू धर्म के दायरे में नहीं आता। वास्तव में हिंदू कोई धर्म ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग आयोग की सामाजिक-शैक्षिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, लिंगायतों की आबादी 60 लाख बताई गई है, परन्तु अगर जागरूकता नहीं लाई गई तो यह घटकर 30 लाख तक आ सकती है।
स्वामी ने घोषणा की कि इस भ्रांति को दूर करने के लिए कि लिंगायत लिखवाने से सुविधाएं कम हो जाएंगी, 1 सितम्बर से बसवन बागेवाड़ा से बसव संस्कृति अभियान शुरू किया जाएगा और इसका समापन 5 अक्टूबर को बेंगलूरु में होगा।
उन्होंने कहा कि जाति सर्वेक्षण के दौरान धर्म वाले कॉलम में लिंगायत और जाति वाले कॉलम में उप-पंथ लिखना चाहिए। हिंदू लिंगायत या वीरशैव लिंगायत नहीं लिखना चाहिए। हमारा धर्म लिंगायत है, धर्मगुरु बसवन्ना हैं, प्रतीक इष्टलिंग है और आचार संहिता अष्टावरण, पंचाचार तथा षट्स्थल है। समाज के वरिष्ठों को यह बातें युवाओं तक पहुंचानी चाहिए।
