दावणगेरे. श्री शंखेश्वर पाश्र्व राजेन्द्र सूरि गुरुमंदिर संघ, काईपेट दावणगेरे में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी भव्यगुणाश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि राग और द्वेष मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं। आत्मा के स्वाभाविक गुणों पर राग-द्वेष का आवरण छा गया है, जिससे आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पानी का कोई स्वाद नहीं होता, लेकिन उसमें चीनी डालने पर उसमें मिठास आ जाती है। उसी प्रकार आत्मा शुद्ध है, परंतु जब उसमें राग-द्वेष का मिश्रण होता है तो आत्मा के स्वभाविक गुण ढक जाते हैं। जीव को आत्मगुणों की पहचान कर राग-द्वेष का त्याग करना होगा, तभी कल्याण संभव है।
साध्वी ने कहा कि पानी का कोई रंग नहीं होता, वह जिस पात्र में रखा जाए उसी का रंग प्रतीत होता है। जीवन भी ऐसा ही है, जीने का तरीका ही उसके रंग और स्वरूप को तय करता है। शांति से जीने पर जीवन मधुर लगता है, जबकि व्यग्रता और उग्रता से जीने पर कटु अनुभव होता है। मन अमूल्य निधि है और उसमें उत्पन्न विचार ही आत्मा के उत्थान-पतन का कारण बनते हैं।
साध्वी शीतलगुणाश्री ने कहा कि जो लोग दूसरों को धोखा देते हैं, वे यह समझते हैं कि वे बहुत चालाक हैं, परन्तु वास्तव में वे अपने कर्मों का बोझ बढ़ाते हैं। ईमानदार व्यक्ति टूटकर भी संभल जाता है, परन्तु धोखेबाज धीरे-धीरे अंधकार में डूब जाता है। धोखे से पाया गया सुख क्षणिक होता है और अंतत: व्यक्ति अकेला रह जाता है।
इस अवसर पर संघ अध्यक्ष पुनमचंद सोलंकी ने बताया कि भारतीय जैन संगठन के पदाधिकारियों ने समाज उपयोगी कार्यक्रमों की जानकारी दी। साध्वीवृंद भव्यगुणाश्री और शीतलगुणाश्री की निश्रा में तथा श्री शंखेश्वर पाश्र्व राजेन्द्र गुरुमंदिर संघ के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा। संघ की ओर से साध्वीवृंद का बहुमान किया गया।
बेंगलूरु से सुमित्रा पालगोता, अनिता बंदामुथा, किरण संघवी और रतन दांतेवाडिया ने दर्शन-पूजन का लाभ लिया।
इस अवसर पर अध्यक्ष पुनमचंद सोलंकी, उपाध्यक्ष राजेन्द्र कुमार पोरवाल, सचिव अंबालाल शाह, महेंद्र कुमार जैन, राजु भंडारी, संजय कुमार पोरवाल, सुरेश कुमार पोरवाल, नटवरलाल जैन, अशोक कुमार जैन, चंद्रकांत जैन और मोहनलाल जैन सहित अनेक पदाधिकारी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अंत में संघ एवं ट्रस्ट मंडल ने सभी का आभार व्यक्त किया।
