विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहींहुब्बल्ली में स्थित तेरापंथ भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि विनीत कुमार।

हुब्बल्ली. मुनि विनीत कुमार ने कहा कि भगवान महावीर ने अपनी वाणी में फरमाया है कि “विरता हु न लग्गंति, जहां से सुक्कगोलए।” मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहीं है।

हुब्बल्ली में स्थित तेरापंथ भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि विनीत कुमार ने कहा कि मिट्टी का गीला गोला यदि दीवार पर फेंका जाए; तो वह दीवार से चिपक जाएगा; क्यों कि जल से मिट्टी में चिपकने का गुण पैदा हो जाता है। जीव भी संसार में रहकर संसार में चिपक जाता है; क्यों कि उसमें मोह के कारण चिपकने की मनोवृत्ति पैदा हो जाती है। यदि मिट्टी का जल सूख जाय तो वह मिट्टी का सूखा गोला किसी भी दीवार पर नहीं चिपक सकता। जीव का भी यदि मोह छूट जाए, राग नष्ट हो जाए, तो ऐसा विरक्त जीव फिर कभी सांसारिक वस्तु में आसक्त नहीं हो सकता- चिपक नहीं सकता।

उन्होंने कहा कि संसारी जीव को संसार में रहना तो पड़ता है, क्योंकि जब तक कर्मों का भार आत्मा पर लदा है, तब तक भवभ्रमण से पिण्ड नहीं छूट सकता। फिर भी जब तक वह संसार में रहे, उसे मोह छोडऩे का विरक्त बनने का अभ्यास करना चाहिए। जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहनेवाला विरक्त साधक ही अपनी सिद्धि पाने में सफल हो सकता है।

प्रवचन से पूर्व भगवान महावीर की स्तुति करते हुए मुनि पुनीत कुमार ने धर्म सभा को आत्मा से परमात्मा की ओर बढऩे की प्रेरणा देते हुए कहा कि पर परस्ततो दु:खमात्मेवात्मा तत्सुखम। अतएव महात्मानस्तन्निमितं कृतोद्यामा पर ही है। अत: वह दु:ख का ही कारण बनता है आत्मा-आत्मा है, स्व है इसलिए वह सुख का हेतु है। अतएव महात्मा लोग उस आत्मा के लिए ही आत्मा की स्वरूप – स्थिती को पाने के लिए ही प्रत्यन्न करते है। आत्मा ही परमात्मा बन सकती है।

यह जानकारी जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा के मंत्री अमराव सिंह बैद ने दी।

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