शिवमोग्गा. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि किसी भी समाज का अस्तित्व और उसका विकास संपत्ति तथा बुद्धि से नहीं, उसकी नीति-रीतियों से होता है। गलत नीतियां समाज के भविष्य को अंधकारमय बना देती हैं।
डॉ. एम. विश्वेश्वरय्या मार्ग पर स्थित कुवेंपु रंग मंदिर में जैनधर्म के सभी संप्रदायों की संयुक्त धर्मसभा को मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य ने कहा कि समाज में छोटे-बड़े, सामान्य-विशेष, सभी वर्गों के लोग होते हैं। सबकी बुद्धि, क्षमता, संपत्ति और सामथ्र्य एक जैसे नहीं होते। ऐसे में सबके हितों का चिंतन करके ही समाज को अखंडित, प्रगतिशील और स्वच्छ रखा जा सकता है। भेदभाव और पक्षपात समाज के अस्वस्थ होने के सबूत हैं। समाज की अच्छी और बहुहितकारी नीति-रीतियां ही उसकी परिपक्वता का निर्धारण करती है। इसलिए यह आवश्यक है कि समाज कुछ गिने-चुने प्रभावशाली लोगों की मनमानी का भोग ना बनें। समाज को प्रगतिशील और परिपक्व बनाने के लिए लोगों का जागरूक और सामाजिक संगठन का मजबूत होना भी अत्यंत जरूरी है। जिसका सांगठनिक ढांचा कामजोर होता है और जिस समाज का प्रबुद्ध वर्ग उदासीन होता है, वह समाज आपसी विवादों और मनमानियों में तबाह हो जाता है।
उन्होंने कहा कि दान की घोषणा कर धनराशि तत्काल जमा करवानी चाहिए। जो दान देने के बाद भी धनराशि पर अपना अधिकार रखते हैं वह निकृष्ट पाप प्रवृत्ति है। सामाजिक-धार्मिक स्थानों पर धर्म के नीति-नियमों के विरुद्ध कोई आचरण नहीं होना चाहिए। जो लोग सामाजिक-धार्मिक स्थानों पर रात्रिभोजन, शराब, जुआ और किराए की डांसर आदि बुराइयों को लाने के समर्थक हैं, वे अपने समाज व धर्म को बिलकुल सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। किसी भी कीमत पर समाज की शादियों में शराब, धूम्रपान, हुक्का, जुआ आदि को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे कुकृत्यों के हिमायती लोगों को समाज से बाहर धकेल कर ही समाज को स्वच्छ और सुरक्षित रखा जा सकता है। जो लोग चार और पांच सितारा होटलों में अपने कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं, वे समाज की गौरवशाली उज्ज्वल परंपराओं को धूमिल कर उसकी गरिमा को समाप्त कर रहे हैं। आज नहीं तो कल श्रीमंत वर्ग की यह दिखावे की मानसिकता उन्हें और समाज को भारी नुकसान पहुंचाएगी।
आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि अंतरजातीय विवाहों को मिलती सामाजिक सहमति भी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरफ जहां समाज में कन्याओं की संख्या कम है और पर्याप्त उम्र होने के बाद भी युवकों को कन्याएं नहीं मिल रही हैं, ऐसी विकट स्थिति में अंतरजातीय विवाहों को मिल रही सहमति भारी सामाजिक असंतुलन पैदा करेगी। इससे समाज में पाखंड बढ़ेगा और समाज रोगग्रस्त हो जाएगा। वर्तमान में यह समस्या समाज की बहुत बड़ी चिंता का विषय है। कन्याओं के लिए गांवों और कस्बों से लोग निरंतर पलायन कर रहे हैं। दक्षिण भारत में पिछले दस वर्षों में बीस हजार से अधिक परिवार महानगरों के लिए विदा हुए हैं। इससे गांवों और कस्बों की धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं तथा उनकी संपत्तियों पर विपत्तियों के बादल मंडराने लगे हैं। निकट भविष्य में समाज संस्थाओं और उसकी संपत्तियों की बहाली देखेगा।