बल्लारी. साध्वी मंगलज्योति ने कहा कि तपस्या से तन-मन दोनों को संवारना चाहिए।
शहर में बुधवार को वर्धमान स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी मंगलज्योति ने कहा कि तपस्या का अर्थ शरीर को सुखाना नहीं, बल्कि मन को साधना और सुधारना है। अपने आहार, इच्छाओं, कषायों और कामनाओं पर नियंत्रण ही असली तपस्या है। सादगी से बढक़र कोई सौंदर्य और त्याग से बढक़र कोई धर्म नहीं होता। देवी-देवताओं के व्रत से जो फल नहीं मिलता, वह जीवन की बुराइयों का त्याग करने से सहज प्राप्त हो जाता है। व्यसन और बुराइयों का त्याग भी महान तपस्या है, और तप को कभी भी प्रदर्शन का रूप नहीं देना चाहिए।
उपवास करने वालों को सलाह देते हुए साध्वी विकासज्योति ने कहा कि उपवास से एक दिन पहले गरिष्ठ या चटपटा भोजन न करें। उपवास के दौरान क्रोध, अहंकार और विवाद से दूर रहकर आनंद, शांति और आराधना में समय बिताना चाहिए, तभी तपस्या का पूर्ण परिणाम मिलता है।
प्रवचन के बाद साध्वी संघ की उपस्थिति में तपस्वियों का मासक्षमण एवं सम्मान किया गया। साध्वी ने तप को आत्म-शुद्धि का श्रेष्ठ साधन बताया और सभी तपस्वियों की अनुमोदना की।
