भद्रावती (शिवमोग्गा). आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि आराधना-उपासना मनुष्य के धार्मिक होने का परिचायक है, परन्तु सदाचरण धर्म का महत्वपूर्ण पक्ष है। हम अपने आराध्य की कितनी ही साधना, आराधना या उपासना करते हों, यदि हमारा आचरण और व्यवहार गलत हैं तो हमारे धार्मिक होने का कोई अर्थ नहीं है।
स्थानीय पाश्र्व भवन में जैनधर्म के सभी संप्रदायों की संयुक्त धर्मसभा को मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य ने कहा कि भगवान महावीर ने ऐसे धार्मिक क्रियाकलापों को पाखंड की संज्ञा दी है। हम बनावट या दिखावा कर भगवान को, गुरु को या दुनिया को मूर्ख बनाने की चेष्टा कर सकते हैं, परन्तु हम स्वयं की आत्मा को मूर्ख नहीं बना सकते। उसके साथ धोखा नहीं कर सकते। हम भलीभांति जानते हैं कि हम क्या हैं और कैसे हैं? हकीकत में आचरण हमारे ज्ञान की और हमारे धार्मिक होने की परीक्षा है।
उन्होंने कहा कि उपासना-आराधना कर आराध्य का भक्त और धार्मिक होना सरल है, परन्तु आचरण से आराध्य का भक्त या धार्मिक बनना साधना है। वह सरल नहीं है। सभी को यह तथ्य और सत्य स्मरण में रहना चाहिए कि धर्म केवल उपासना के लिए नहीं होता। वह तो विचारों की पवित्रता, आचरण की शुद्धता और व्यवहार की सुचिता के लिए होता है। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, धर्मस्थानक आदि उपासना और साधना के केंद्र हैं। इन्हें प्राप्त कर मनुष्य को अच्छाइयां सीखनी होती हैं और अपनी बुराइयों को दूर करना होता है। इसलिए सिर्फ नाम के या दिखावे के धार्मिक होने का कोई अर्थ नहीं है। ऐसा करने से तो जीवन में केवल पाखंड बढ़ेगा और लोगों को धोखा देने का काम करेंगे। इस प्रकार धार्मिक होकर भी न तो जीवन को शांति मिल सकती है और ना ही सुख।
आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने समझाया कि जीवन में धर्म की शिक्षाओं के छोटे-छोटे प्रयोग करने चाहिए। समय समय पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए। मैं ही सही हूं और मेरी बात ही सही है, हमेशा ऐसा आग्रह नहीं होना चाहिए। बार-बार गुस्सा न होना, किसी के प्रति द्वेष न रखना, छोटी गलतियों के लिए सामने वाले को माफ कर देना, दुर्जनों से दूर रहना, परन्तु सज्जनों की संगति करना आदि मनुष्य के धार्मिक होने के प्रतीकात्मक गुण हैं। यदि हम अपने आचरण और व्यवहार में बदलाव न लाए और जीवनपर्यंत मात्र पूजा, प्रार्थना, नमाज, अनुष्ठान, मंत्रजाप, रोजे या तप आदि करते रहें तो उनका क्या अर्थ है?
इससे पूर्व शिवमोग्गा से पदयात्रा कर आचार्य विमल सागर सूरी, गणि पद्मविमल सागर आदि संतजनों के भद्रावती पहुंचने पर श्रद्धालुओं ने उनका भावपूर्ण स्वागत किया। शाम को संतजन यहां से आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किया।