मिट रही इतिहास की स्मृतियां
हुब्बल्ली. हुब्बल्ली-धारवाड़ में बादामी चालुक्य, मराठा, राष्ट्रकूट समेत ब्रिटिश शासन का इतिहास रहा है। इन शासकों के चिन्ह आज भी यहां-वहां देखने को मिलते हैं। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि धारवाड़ न केवल आज बल्कि ब्रिटिश शासनकाल में भी एक शैक्षणिक और प्रशासनिक केंद्र था।
सन् 1818 में जब ब्रिटिशों ने धारवाड़ पर अधिकार किया, तब उन्हें सबसे पहले कित्तूर की ताकतवर रियासत दिखाई दी। उन्होंने दत्तक पुत्र को उत्तराधिकार नहीं की नीति लागू की। 1824 में, उस समय के कलेक्टर सेंट जॉन थैकरे कित्तूर के देसाई वाड़ा खजाना को जब्त करने आगे बढ़े। इस नीति का कित्तूर की रानी चन्नम्मा ने तीव्र विरोध किया और संघर्ष की चेतावनी दी। सेना को भी युद्ध के लिए तैयार किया गया।
ऐतिहासिक तथ्य दर्ज है कि रानी चन्नम्मा की चेतावनी को नजरअंदाज कर थैकरे का अहंकारी व्यवहार कित्तूर की सेना के प्रमुख अमटूर बालप्पा और उनके साथियों को नागवार गुजरा। 23 अक्टूबर 1824 को अमटूर बालप्पा ने थैकरे को गोली मारकर हत्या कर दी। इस संघर्ष में थैकरे के साथ ब्लैक, सुएल, डाइटन सहित कुल 7 ब्रिटिश अधिकारी मारे गए।
इन सातों अधिकारियों की अंत्येष्टि धारवाड़ में की गई और वहीं उनकी समाधियां बनाई गईं। उस समय दक्षिणी विभाग के आयुक्त चैप्लिन ने इन सब मामलों का प्रबंधन किया। वर्तमान में यह स्थल शिवाजी सर्किल के पास कसाईखाने (बूचडख़ाने) में बदल गया है। यहां कचरे का अंबार है और समाधियां क्षय हो चुकी हैं।
एनएच. कटगेरी की पुस्तक “गतकालद धारवाड़” में उल्लेख है कि समाधि पर यह लिखा गया था कि दक्षिण मराठा के प्रमुख कलेक्टर एवं राजनीतिक एजेंट जॉन थैकरे 23 अक्टूबर 1824 को कित्तूर युद्ध में मारे गए।
स्मारक अब नष्ट होने की कगार पर
स्थानीय निवासी परसप्पा बेटगेरी ने बताया कि जहां समाधियां थीं, वहां अब कसाईखाना बना दिया गया है। उनके चारों ओर मवेशियों को बांधा जाता है और गंदगी फैली हुई है। ये स्मारक अब नष्ट होने की कगार पर हैं।
इतिहास के पन्नों से भी मिट जाएगा
इतिहासकारों का कहना है कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रानी चन्नम्मा की ओर से लड़े गए पहले सफल युद्ध की स्मृतियां अब मिट रही हैं। इन समाधियों का संरक्षण होना चाहिए था। वहां स्मारक बनना चाहिए था। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो भविष्य में यह भी याद नहीं रहेगा कि ये समाधियां किसकी हैं और इतिहास के पन्नों से भी यह तथ्य मिट जाएगा।
ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण हो
थैकरे की समाधि का 200 साल का इतिहास है। इसी तरह धारवाड़ में कई ऐतिहासिक स्थल हैं। इन सबका संरक्षण जिला प्रशासन की ओर से किया जाना चाहिए।
–प्रो. शिवानंद शेट्टर, सेवानिवृत्त प्राध्यापक
