करावली कर्नाटक में बनेगा देश का पहला बायोचार प्लांटसांदर्भिक तस्वीर।

100 करोड़ की परियोजना

उद्योग मंत्री एम. बी. पाटिल ने दी जानकारी

उडुपी. देश का पहला अत्याधुनिक बायोचार संयंत्र अब कर्नाटक के तटीय जिले उडुपी में स्थापित किया जाएगा। यह परियोजना न सिर्फ कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देगी, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगी। बायोचार के उपयोग से कार्बन को मिट्टी में संग्रहित कर वातावरण में उसके उत्सर्जन को रोका जा सकता है।

राज्य के बड़े और मध्यम उद्योग मंत्री एम. बी. पाटिल ने जानकारी दी कि डेनमार्क की माश मेक्स नामक कंपनी, 100 करोड़ रुपए के निवेश से यह संयंत्र स्थापित कर रही है, जिसमें काजू प्रसंस्करण के बायोडीग्रेडेबल कचरे से उच्च कार्बन युक्त बायोचार तैयार किया जाएगा।

क्या है बायोचार?

बायोचार एक जैविक कोयला है जो लकड़ी, पत्तियां या अन्य जैविक पदार्थों को सीमित ऑक्सीजन की स्थिति में गर्म करके बनाया जाता है। इसमें उच्च मात्रा में कार्बन होता है और यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, जलधारण क्षमता सुधारने और पर्यावरण सुरक्षा में मदद करता है।

बायोचार की आवश्यकता क्यों?

आज किसान अधिक उत्पादन के लिए अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता घटती जा रही है। एक ही प्रकार की फसलें बोने और जैविक खाद का प्रयोग न करने से मिट्टी बंजर होती जा रही है। बायोचार इस कमजोर मिट्टी को पुनर्जीवित करने का एक प्रभावी तरीका है।

बायोचार बनाने की प्रक्रिया

जैविक पदार्थों (जैसे लकड़ी, छाल, पत्तियां आदि) को एक खास भट्टी में रखा जाता है। ऑक्सीजन की मात्रा को सीमित करते हुए इन पदार्थों को गर्म किया जाता है। इससे गैसें और तेल वाष्पित हो जाते हैं, और शुद्ध कार्बन युक्त ठोस पदार्थ बचता है, यही बायोचार होता है।

बायोचार के फायदे

बायोचार को मिट्टी में घोलने पर वह मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ाता है। पोषक तत्वों को बनाए रखता है। मिट्टी की संरचना को बेहतर करता है। फसलों को आवश्यक पोषक तत्व और पानी आसानी से उपलब्ध हो पाते हैं।

जंगलों में होती प्राकृतिक प्रक्रिया

घने जंगलों में प्राकृतिक रूप से यह प्रक्रिया होती है। गर्मियों में लगने वाली जंगल की आग से पत्तियां और पेड़ जलकर बायोचार जैसी परत बनाते हैं। यह परत मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती है, जिससे कुछ वर्षों में फिर से घना वन उग आता है। इसी सिद्धांत को खेती की जमीन में अपनाने की प्रक्रिया ही बायोचार तकनीक है।

पर्यावरण की रक्षा भी सुनिश्चित करेगा

उडुपी में बन रहा यह पहला बायोचार संयंत्र न केवल कर्नाटक, बल्कि पूरे देश के लिए हरित क्रांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह किसानों को टिकाऊ खेती की ओर ले जाएगा और पर्यावरण की रक्षा भी सुनिश्चित करेगा।

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