ईएनटी क्लिनिकों में मरीजों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ी
70 डेसिबल तक सुरक्षित, डीजे से 110-120 डेसिबल तक शोर
18-22 वर्ष के युवा सर्वाधिक प्रभावित
24 घंटे के भीतर इलाज न मिले तो स्थायी बहरापन संभव
हुब्बल्ली. तेज आवाज और डीजे संस्कृति अब युवाओं के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट का कारण बन रही है। ध्वनि प्रदूषण और कानों पर उसके दुष्प्रभाव को लेकर एक चिंताजनक स्थिति सामने आई है। जिले में डीजे के अत्यधिक शोर से युवाओं की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। हाल ही में हुब्बल्ली-धारवाड़ के ईएनटी क्लीनिकों में ऐसे मरीजों की संख्या में लगभग 20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मनुष्य के कान अधिकतम 70 डेसिबल तक की ध्वनि सहन कर सकते हैं, जबकि डीजे का शोर 110 से 120 डेसिबल तक पहुंच जाता है। डीजे स्पीकर से 10 फीट से कम दूरी पर 10 मिनट से अधिक समय तक खड़े रहने पर कान की नसों को गंभीर नुकसान हो सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि कई मामलों में यह नुकसान स्थायी रूप से सुनने की क्षमता को छीन लेता है। इस समस्या से अधिकतर 18 से 22 वर्ष के युवा प्रभावित हो रहे हैं।
विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जताई कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से डीजे और हाई-वॉल्यूम म्यूजिक पर रोक के बावजूद शहर और गांवों में इसका खुलेआम इस्तेमाल जारी है। इसका असर न केवल युवाओं पर बल्कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों पर भी पड़ रहा है। चिकित्सकों ने जनजागरूकता और प्रशासनिक स्तर पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रशासन से अपेक्षा
सुप्रीम कोर्ट की ओर से डीजे और हाई-वॉल्यूम म्यूजिक पर प्रतिबंध के बावजूद इसका उपयोग शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में जारी है। चिकित्सकों ने प्रशासन से सख्ती और आमजन से जागरूक रहने की अपील की है।
15 से अधिक युवा करा रहे है युवा
डीजे से निकलने वाली ध्वनि 110-120 डेसिबल तक होती है, जबकि मानव कान अधिकतम 70 डेसिबल तक की आवाज सह सकता है। 15 से अधिक युवाओं को डीजे साउंड के कारण कान की समस्या का इलाज कराया जा रहा है।
–डॉ. रविन्द्र गदग, विशेषज्ञ, केएमसीआरआई ईएनटी विभाग
सजग रहे युवा
ईएनटी क्लिनिकों में मरीजों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ गई है। कई युवाओं की सुनने की क्षमता स्थायी रूप से प्रभावित हो चुकी है। युवाओं को सजग रहने की आवश्यकता है।
–डॉ. जीजो पी.एम., प्राचार्य, जेएसएस इंस्टिट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग
डीजे साउंड के अन्य प्रभाव
– छोटे बच्चे और बुजुर्ग प्रभावित।
– गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम।
– हृदय रोग, तनाव और नींद की समस्या।
– पशु-पक्षियों पर भी दुष्प्रभाव।
