एएसआई के संरक्षण में मात्र पांच ऐतिहासिक स्थल
उडुपी. जिले में अतीत के इतिहास के निशान के तौर पर अभी भी कई ऐतिहासिक स्थल खड़े हैं, जिनमें कई ऐतिहासिक स्थल उचित संरक्षण के बिना विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।
केवल पांच ऐतिहासिक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के अधिकार क्षेत्र में हैं परन्तु और कई मूल्यवान ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक स्थल गंभीर रूप से उपेक्षित हैं।
ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए तो अधिक संख्या में पर्यटक एवं इतिहास प्रेमी जिले में आ सकते हैं।
बारकुर के कत्तले बसदी, कारकल की गोम्मटेश्वर प्रतिमा, चतुर्मुख बसदी, अनंतपद्मनाभ मंदिर और हिरियंगडी का मानस्तंभ एएसआई के अधीन में हैं।
जैन मूर्तियों को भी गुम हुए कई वर्ष बीत चुके हैं
बारकुर का कत्तले बसदी का निर्माण 12वीं शताब्दी में किए जाने का अनुमान है, इसके बावजूद यह अच्छी स्थिति में है परन्तु पास के पत्थर के छत के कुछ हिस्से कई साल पहले ही ढह गए हैं। इस बसदी में स्थित जैन मूर्तियों को भी गुम हुए कई वर्ष बीत चुके हैं।
नष्ट होने के कगार पर
तुलु प्रांत की राजधानी के नाम से मशहूर बारकुर किले के अवशेष उचित सुरक्षा के बिना लुप्त हो रहे हैं। जिले में प्रागैतिहासिक काल से जुड़ी आदिम कला की अनमोल धरोहरों को पूछने वाला कोई नहीं है। इसके चलते नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
बिना किसी सुरक्षा के खंडहर बने कल्मने समाधि
कुंदापुर तालुक का बुद्धन जेड्डू, बयंदूर तालुक के अवलाक्की पारे स्थित प्रागैतिहासिक स्थल, कारकल तालुक के पल्ली स्थित विशाल पाषाण युग की कल्मने समाधि, कारकल से रेनजल के रास्ते में बोरकट्टे स्थित कल्मने समाधि बिना किसी सुरक्षा के खंडहर बने हुए हैं। पत्थर खनन और औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार के कारण जिले के कई ऐतिहासिक स्थल नष्ट होने की कगार पर पहुंच गए हैं।
स्थानीय लोगों का विरोध
एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि एएसआई के अधिकार क्षेत्र में किसी भी नए ऐतिहासिक स्थल को लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। अगर किसी साइट को एएसआई की ओर से संरक्षित किया जाना है, तो उसे सरकार या मंदिर मंडल की ओर से सिफारिश करना चाहिए। किसी ऐतिहासिक स्थल को एएसआई के अधिकार क्षेत्र लिया जाता है, तो उसके आसपास कुछ प्रतिबंध लागू होंगे। इसी वजह से स्थानीय लोग इस तरह की कोशिश का विरोध करते हैं।
35 से अधिक शिलालेखों की उपेक्षा
बयंदूर के सेनेश्वर मंदिर को तटीय कर्नाटक के बेलूर, हलेबीडु कहा जा सकता है। यह मंदिर मुजराई (देवस्थान) विभाग के अधीन में है। अनोखी मूर्तियों वाले ऐसे मंदिरों को एएसआई के अधीन में देना चाहिए। पडुबिद्री के निन्निकल्लु पादे में 16वीं शताब्दी की अनूठी मूर्तियां हैं और इसका संरक्षण आवश्यक है। उद्यावर में अलुप की राजधानी स्थित क्षेत्र में 35 से अधिक शिलालेखों की उपेक्षा की गई है। कुंदापुर, बयंदूर और कारकला तालुकों में प्रागैतिहासिक स्थलों को एएसआई के अधीन में लाने के लिए सरकार की ओर से सिफारिश की जाए तो इन्हें नष्ट होने से रोका जा सकता है।
-मुरुगेशी टी. तुरुवेकेर, पुरातत्व विशेषज्ञ
पर्यटकों को आकर्षित किया जा रहा है
जिले में ऐतिहासिक महत्व के मंदिरों में भी बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। समुद्र तट बैकवाटर में जल साहसिक खेलों पर अधिक जोर देकर पर्यटकों को आकर्षित किया जा रहा है।
–कुमार सी.यू., सहायक निदेशक, पर्यटन विभाग