ग्रीन कॉरिडोर के तीसरे चरण में घटिया कार्य का संदेह
-पहले दो चरणों में लगभग 7.50 किलोमीटर का कॉरिडोर पूर्ण
-शेष 2.50 किलोमीटर पर 35 करोड़ रुपए की लागत से काम शुरू
हुब्बल्ली. स्मार्ट सिटी योजना के घटियां कार्य एक के बाद एक सामने आ रहे हैं। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्मार्ट सिटी के सपने का ग्रीन कॉरिडोर इसी कड़ी में शामिल एक और योजना है। फिल हाल तीसरे चरण के कार्य की गति और गुणवत्ता को देखें तो खराब घटिया कार्य के उदाहरण देखने को मिलेंगे।
ग्रीन कॉरिडोर का उद्देश्य उणकल से गब्बूर तक बहने वाले शहरी नाला पर कंक्रीट बिछाना और साइकिल पथ का निर्माण करना है। पहले दो चरणों में लगभग 7.50 किलोमीटर का कॉरिडोर पहले ही पूरा हो चुका है, तथा शेष 2.50 किलोमीटर का कार्य तीसरे चरण में 35 करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कारवार रोड पुल से एसएम. कृष्णा नगर और गब्बूर तक काम तेजी से चल रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि इस कार्य में स्मार्ट सिटी की ओर से निर्धारित डिजाइन, सिविल इंजीनियरिंग और संरचनात्मक इंजीनियरिंग मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे हैं।
मिट्टी पर स्टील डालकर कंक्रीट
स्मार्ट सिटी अधिकारियों का कहना है कि नरम मिट्टी वाले क्षेत्रों में बजरी डालकर कंक्रीट बिछानी चाहिए। इसके रॉफ्टर लगाने के बाद सीमेंट की परत बिछानी चाहिए। एसएम कृष्णा नगर क्षेत्र से सटे नाले में बड़ी मात्रा में झाडिय़ां और हर कहीं मिट्टी है। जल प्रवाह की दर भी बहुत अधिक है। इसके बाद भी यहां स्टील को नरम मिट्टी के ऊपर बिछाया है, जिसमें पानी है, और उसके ऊपर सीमेंट कंक्रीट डाला गया है।
वहां काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि रिटेनिंग वॉल का काम भी इसी तरह किया गया है। इन सब बातों पर गौर करने से यह स्पष्ट है कि सिविल और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग का काम वैसा नहीं हो रहा है जैसा स्मार्ट सिटी इंजीनियरों ने कहा था।
आधार जरूरी
एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि बिना किसी आधार के सीधे कंक्रीट का बेड डालने से रिटेनिंग दीवारें मजबूत नहीं होंगी। यह किसी भी समय ढह जाएगी। इसका स्थायित्व बस इतना ही है। इस कार्य की निगरानी करने वाले स्मार्ट सिटी के इंजीनियर औपचारिकता के लिए दौरा कर व्हाट्सएप ग्रुप पर अपलोड कर दौरा करने को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के ध्यान में ला रहे हैं। कार्य की वास्तविक स्थिति को छुपाना संदेह पैदा करता है। यह स्मार्ट सिटी के ग्रीन कॉरिडोर के एक हिस्से की कहानी है। कई स्थानों पर स्मार्ट सिटी डिजाइन के लिए न्यूनतम मानकों का क्रियान्वयन नहीं किया गया है।
कार्य दोषपूर्ण पाया जाएगा उसे तोडक़र पुन: बनाया जाएगा
ग्रीन नाला परियोजना के तीसरे चरण को लेकर आपत्तियां उठाई गई हैं। इस संबंध में हम व्यक्तिगत रूप से आपत्तिजनक क्षेत्रों की खुदाई कर निरीक्षण करेंगे। इसके घटकों का परीक्षण प्रयोगशाला में किया जाता है। सतह पर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कार्य सिविल एवं संरचनात्मक इंजीनियरिंग के अनुसार नहीं किया गया है। हम इसके तकनीकी पहलुओं की जांच करेंगे। जो भी कार्य दोषपूर्ण पाया जाएगा उसे तोडक़र पुन: बनाया जाएगा।
– चन्नबसवराजु धर्मंती, डीजीएम, हुब्बल्ली-धारवाड़ स्मार्ट सिटी सिविल डिवीजन