बिना प्रशासन बोर्ड के कल्लब्बे गांव के जंगलकुमटा तालुक के कल्लब्बे-मूरूर-होसाड का ग्राम वन।

2007 से एसीफी ही प्रशासनिक अधिकारी
नए प्रशासन बोर्ड की उठ रही मांग
कारवार. कुमटा तालुक के कल्लब्बे-मूरूर-होसाड सहित दो ग्राम पंचायतों के आठ गांव का लगभग 1,800 हेक्टेयर प्राकृतिक वन क्षेत्र ग्राम वन के लिए नई प्रशासन समिति का गठन नहीं हुए लगभग बीस वर्ष हो गए हैं।
हाल ही में अपना शताब्दी वर्ष मनाने वाले तालुक के हलकार गांव के जंगल के साथ ही अस्तित्व में आए कल्लब्बे-होसाड-मूरूर गांव के जंगल को करीब 55 साल पहले बचाने के लिए गांव के पर्यावरणविदों ने सरकार के खिलाफ करीब दस साल तक अदालत में लड़ाई लडक़र सफलता पाई थी। प्रशासनिक अधिकारी गांव के जंगल के प्रशासन को देख रहे थे।

ब्रिटिश सरकार ने ग्रामीणों को प्रबंधन के लिए दिया था

1923 में मूल्यवान लकड़ी के वनों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से नियुक्त औपनिवेशिक वन अधिकारी जीएफएस.कोलिन ने वनों का अध्ययन कर रिपोर्ट दी थी कि चूंकि लोग स्वयं वनों की रक्षा कर रहे हैं और उसके उत्पादों का उपभोग कर रहे हैं, इसलिए इसकी जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपना उचित है। इसके चलते कुछ सख्त नियमों के साथ, जिलाधिकारी और तहसीलदार के प्रशासन के तहत तालुक में लगभग 9 ग्राम वन बनाकर ग्रामीणों को प्रबंधन के लिए दिया गया था।
लगभग 20 वर्ष पूर्व, जिलाधिकारी ने ग्रामीणों की शिकायतों के बाद, प्रशासनिक चूक करने वाली प्रशासनिक समिति को बर्खास्त कर सहायक वन संरक्षण अधिकारी को प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया था।

नई समिति का गठन करें

दो ग्राम पंचायतों के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कल्लब्बे, मूरूर, होसाड, बोगरीबैल, कुडुवल्ली, कंदवल्ली, हट्टीकेरी, बसवनकेरे आदि गांवों में वनों की सुरक्षा और विकास के लिए हलकार ग्राम वन की तर्ज(मॉडल) पर ही नई समिति का गठन करना उचित है।
रवि हेगड़े, उपाध्यक्ष, कल्लाबे ग्राम पंचायत

नई प्रशासनिक समिति बनाने आगे नहीं आए ग्रामीण

उप-विभागीय अधिकारी ने 2007 में कल्लब्बे ग्राम वन के लिए कुमटा एसीएफ को प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर नियुक्त कर आदेश दिया था। यह अभी भी जारी है और गांव वाले नई प्रशासनिक समिति बनाने के लिए आगे नहीं आए हैं।
कृष्णा गौड़ा, एसीएफ, कुमटा

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