कोई नहीं कर सकता निष्ठा भावना और नैतिकता की बराबरीभद्रावती से पदयात्रा कर शिवमोग्गा पहुंचने पर आचार्य विमल सागर सूरीश्वर, गणि पद्मविमलसागर आदि श्रमणजनों का गाजे-बाजे के साथ स्वागत करते जैन समाज के श्रावक श्राविकाएं।

शिवमोग्गा. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि धर्म, समाज, राष्ट्र, मानवता या जीवन मूल्यों के प्रति मनुष्य का दृढ़ निश्चयी और समर्पित बनना, उसके निष्ठावान होने का अर्थ है। उसी तरह सत्य, सदाचार, न्याय व नीति पूर्वक सोचना और जीना, मनुष्य के नैतिक होने का परिचायक है। निष्ठाभावना और नैतिकता, ये दोनों महान गुण कहीं बाजार में नहीं बिकते कि उन्हें किसी कीमत पर खरीदा जा सके। हकीकत में ये दोनों गुण या तत्व अपने भीतर कड़ा पुरुषार्थ कर पनपाने पड़ते हैं। रातोरात कोई मनुष्य निष्ठा संपन्न और नैतिक नहीं बन सकता। यह जीवन की अनुपम साधना और सिद्धि है। नेक इरादे, सतत संघर्ष, जीवन मूल्यों के प्रति समर्पण और नि:स्वार्थ भावना से यह साधना और सिद्धि प्राप्त होती है।

शहर के सर एम. विश्वेश्वरय्या मार्ग पर स्थित कुवेंपु रंग मंदिर में गुरुवार को जैन समाज के चारों संप्रदायों की संयुक्त धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि आज जहां देखो वहां निष्ठाभावना और नैतिक मूल्यों का अभाव दिखाई देता है। हर किसी में स्वार्थ इस कदर व्याप्त है कि मनुष्य भीतर से दिवालिया हो गया हों, ऐसा प्रतीत होता है। सौ में एक व्यक्ति में भी निष्ठावान और नैतिक खोजना मुश्किल हो रहा है। मतलबी मानसिकता, वैचारिक पतन और तुच्छताओं के प्रति मनुष्य का अत्यधिक आकर्षण उसके सत्वशाली जीवन की असीम संभावनाओं को समाप्त कर रहे हैं। पहले बलिदानी आत्माएं जन्म लेती थीं। उनकी उपस्थिति मात्र से जमाने का रूप-रंग बदल जाता था। वे न्याय, नीति, प्रेम, सदाचार और भाईचारे में विश्वास करती थीं। अब तो मनुष्य पशु के कमतर उतरने को तैयार है। जो परिवार के साथ भी विश्वासघात करते हैं, समाज को तोड़ कर बरबाद कर देते हैं, धर्म उनके लिए शांति का नहीं, अशांति का हथियार है और राष्ट्र की जिन्हें तनिक भी चिंता नहीं है। ऐसे लोग निष्ठा भावना और नैतिकता की रक्षा नहीं कर सकते। ऐसे लोग मानवता की सेवा करने के लायक भी नहीं होते।

इससे पूर्व भद्रावती से पदयात्रा कर शिवमोग्गा पहुंचने पर आचार्य विमल सागर सूरीश्वर, गणि पद्मविमलसागर आदि श्रमणजनों का गाजे-बाजे के साथ जैन समाज ने भव्य स्वागत किया। महिलाएं लाल वेशभूषा में सिर पर कलश लेकर स्वागत में खड़ी थीं। सभी ने संतजनों की प्रदक्षिणा कर मंगल कामना की। स्वागत मार्ग में जगह-जगह लोगों ने स्वस्तिक व श्रीफल से संतों का अभिवादन किया।

आदिनाथ जिनालय में सामूहिक चैत्यवंदना हुई। दोपहर को वासक्षेप से आशीर्वाद प्राप्त करने भगवान महावीर भवन में भक्तों की भीड़ लगी। रात्रिकालीन प्रवचन सत्र में गणि पद्मविमलसागर ने धर्मतत्व की रोचक विवेचना की।

शुक्रवार को प्रात: भोरवेला में संगीतमय मंत्रजाप और ध्यान तथा सवा नौ बजे कुवेंपु रंग मंदिर में विशेष धर्मसभा का आयोजन होगा।

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