गणपति की मिट्टी की मूर्तियों के लिए नहीं मिल रही तालाब की मिट्टीधारवाड़ में कारीगर मंजुनाथ हिरेमठ की ओर से अपने कलाधाम में संग्रह की गई मुगद तालाब से लाई मिट्टी।

कारीगरों को हो रही परेशानी

जिले में 1,200 से अधिक तालाब

हुब्बल्ली. प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की गणपति मूर्तियों पर रोक के कारण मिट्टी की मूर्तियों की मांग बढ़ गई है परन्तु मूर्तियां बनाने के लिए आवश्यक तालाब की मिट्टी कारीगरों को नहीं मिल पा रही है। जिले में 1,200 से अधिक तालाब हैं, फिर भी अधिकतर तालाबों की गाद नहीं हटाने से मिट्टी उपलब्ध नहीं हो रही।

गणेशोत्सव समितियों के महासंघ के सचिव अमरेश हिप्परगी ने कहा कि जिले में 900 से अधिक गणपति मूर्ति निर्माता हैं। मिट्टी की कमी और भंडारण की समस्या के कारण कई कारीगर गदग जिले के कोन्नूर से तैयार मूर्तियां लाकर यहां केवल अंतिम स्पर्श देकर बेचते हैं।

उन्होंने कहा कि बेन्डिगेरी, चन्नापुर, गोटूर, गिरियाल, मावनूर और अंचटगेरी जैसे गांवों के तालाबों से मिट्टी की आपूर्ति की जा रही है। मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर एक ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत 6,000 से 8,000 रुपए तक है। वहीं पुणे और कोलकाता से मंगाए जाने वाले 25 किलो मिट्टी के पैकेट की कीमत 900 से 1,000 रुपए तक पड़ती है।

तीन-चार वर्ष पहले से ही संग्रह की जाती थी मिट्टी

कारीगर मंजुनाथ हिरेमठ ने कहा कि पुरानी मिट्टी से गणपति की मूर्ति और सुंदर बनती है। पहले हम 3-4 साल पहले से जरूरत की मिट्टी जमा कर लेते थे, परन्तु पिछले दो साल से मिट्टी की कमी बनी हुई है। खेत ले-आउट में बदल रहे हैं और तालाबों में पानी भरा रहने से वहां से मिट्टी निकालना मुश्किल हो गया है।

उन्होंने कहा कि बाहर से मिट्टी मंगाने पर लागत बढ़ती है और मूर्तियों के दाम बढ़ाना मजबूरी हो जाता है। इस वर्ष कीमतों में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और कमी बढऩे पर दाम और चढ़ सकते हैं।

कारीगरों और लोगों की प्रतिक्रियाएं

मूर्तियों के दाम बढ़ गए

पिछले साल की तुलना में इस बार छोटी गणपति मूर्तियों के दाम बढ़ गए हैं। परंपरा के कारण महंगा होने पर भी मूर्ति बुक की है।
प्रसन्न एम., हुब्बल्ली निवासी

हमें हर साल 20 ट्रैक्टर मिट्टी चाहिए

इस साल मुगद तालाब से केवल एक साल की जरूरत जितनी मिट्टी मिल पाई है। हमें हर साल लगभग 20 ट्रैक्टर मिट्टी चाहिए।
मंजुनाथ हिरेमठ, कारीगर, धारवाड़

मिट्टी जमा करने की जगह नहीं

हमारे घर के पास मिट्टी जमा करने की जगह नहीं है। इसलिए त्योहार से पहले बेन्डिगेरी गांव से मिट्टी लाकर लगभग 200 मूर्तियां बनाकर बेचते हैं।
राकेश कांबले, कारीगर, हुब्बल्ली

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