सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट को निर्देश
कोप्पल. हनुमान जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध कोप्पल जिले के गंगावती तालुक के आंजनाद्री पर्वत से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारवाड़ हाईकोर्ट को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है।
जिला प्रशासन की ओर से गंगावती तालुक के आंजनाद्री पर्वत स्थित आंजनेय (हनुमान) मंदिर को अपने कब्जे में लेने के खिलाफ दायर याचिकाओं सहित सभी मामलों का निपटारा अगले छह महीनों के भीतर करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने धारवाड़ हाईकोर्ट को दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश का पालन न करने और पुजारी के पूजा-अधिकार में बाधा डालने के मामले में विद्यास दास बाबा की ओर से वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर की थी। सोमवार को इस याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची की द्विसदस्यीय पीठ ने करीब 20 मिनट तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश पारित किया।
पिछले 7 अगस्त को याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने पूजा विवाद से संबंधित अपने पूर्व आदेश का पालन न करने के मामले में कोप्पल के जिलाधिकारी सुरेश इटनाल को 11 अगस्त को ऑनलाइन व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया था।
बाबा के पक्ष के वकीलों ने जानकारी दी कि अदालत ने सरकारी वकील से कहा था कि जिलाधिकारी को ऑनलाइन के जरिए खुद पेश किया जाए क्योंकि उनसे कुछ सवाल पूछने हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, कोप्पल जिलाधिकारी सुरेश इटनाल सोमवार को ऑनलाइन सुनवाई में उपस्थित हुए। उन्होंने पहले ही हलफनामा दाखिल कर बताया था कि विद्यादास बाबा के पूजा-अधिकार में कोई बाधा नहीं डाली गई है। इस आधार पर, सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने जिलाधिकारी से कोई सवाल नहीं किया।
विवाद की पृष्ठभूमि
आंजनेय मंदिर में पूजा-अधिकार को लेकर कई वर्षों से विवाद चल रहा है। यह मंदिर धार्मिक दान विभाग के अधीन है। लंबे समय से विद्यादास बाबा यहां पुजारी के रूप में सेवा कर रहे हैं और उन्होंने पूजा का अधिकार अपने नाम पर देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुनवाई के बाद अदालत ने अंतरिम आदेश जारी कर उन्हें पूजा करने की अनुमति दी थी और पर्वत पर उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं वाले कमरे का उपयोग करने का निर्देश दिया था। इसके बाद, जिलाधिकारी सुरेश इटनाल ने आंजनाद्री पर्वत स्थित आंजनेय मंदिर का दौरा किया, जहां धार्मिक दान विभाग के पुजारियों ने पूजा की। इस पर विद्यादास बाबा ने न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया था।
