कारवार. स्वास्थ्य विभाग भले ही गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए एहतियात के तौर पर बच्चों को रोग निवारक टीके लगाने को तैयार है, परन्तु अभिभावक राजी नहीं हो रहे हैं। अभिभावकों को टीके के दुष्प्रभाव होने का डर सता रहा है। डॉक्टरों के समझाइशी के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बच्चों में पाई जाने वाली डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस (डीपीटी), टेटनस एवं वयस्क डिप्थीरिया (टीडी) रोग से बचाने के लिए 5, 10 और 16 वर्ष की आयु के बच्चों को टीके की बूस्टर खुराक दी रही है। भटकल तालुक में आधे से अधिक बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाया है।
उन्होंने बताया कि तालुक में 5 से 6 वर्ष की आयु के 463 बच्चे हैं जिन्हें डीपीटी टीका लगाया जाना है। इनमें से केवल 139 बच्चों को ही टीका लगाया गया है। 10 वर्ष के बच्चों को दिया जाने वाला टीडी टीका 437 बच्चों को और 16 वर्ष के बच्चों को दिया जाने वाला 598 डीटी बूस्टर खुराक टीका दिया जाना चाहिए था, परन्तु केवल क्रमश: 139 और 230 बच्चों को ही यह टीका दिया गया है।
कोविड फैलने से पहले स्वेच्छा से अपने बच्चों का टीकाकरण करवाने वाले अभिभावक अब कोविड के बाद के दिनों में टीकाकरण से भयभीत हैं। टीकाकरण से बच्चों का जीवन खतरे में पडने का डर सता रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि वार्डों में जनप्रतिनिधियों और नेताओं की बैठकें आयोजित कर टीकाकरण का महत्व समझाया गया है। यूनिसेफ की टीम घर-घर जाकर लोगों में जागरूकता पैदा कर रही है परन्तु इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
अभिभावकों में डर
भटकल निवासी रजा मानवी ने कहा कि टीका लगवाने वाले कुछ बच्चों में देखे गए दुष्प्रभावों को लेकर अभिभावकों में डर पैदा हुआ है। टीका लगवाते समय बुखार और सिरदर्द होना सामान्य है। इसके लिए नहीं घबराना चाहिए।
समझाइशी का काम भी शुरू किया है
हम लोगों के बीच टीकाकरण को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं और समझाइशी का काम भी शुरू किया है। स्कूलों में भी टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है।
–डॉ. सविता कामत, तालुक स्वास्थ्य अधिकारी, भटकल