सहकारी संघों को सता रहा नुकसान का डर
सिरसी. भूटान से सुपारी के आयात और बर्मा की सुपारी में मिलावट के कारण बाजार में कीमत घटने की ओर है। इससे लाभ के उद्देश्य से सुपारी खरीदकर स्टॉक करने वाली सहकारी संघों को नुकसान का डर सता रहा है।
सुपारी की कीमत में बढऩे के कारण सहकारी संघों में सुपारी का कारोबार अधिक है।
पिछले सात या आठ साल पहले, सिरसी में सभी सहकारी संघों का कुल सुपारी कारोबार 1.80 लाख क्विंटल था परन्तु 2023 में कारोबार बढक़र 2.90 लाख क्विंटल हो गया था। प्रदेश की विभिन्न सहकारी संघों में 45 लाख क्विंटल से अधिक का व्यापार हुआ है।
कीमत गिरने पर सहकारी संघों ने उच्च कीमत पर सुपारी खरीद कर किसानों के हितों की रक्षा करते आए हैं। इस बार भी राज्य की विभिन्न सहकारी संघों ने लगभग 2 लाख क्विंटल से अधिक सुपारी खरीद कर स्टॉक कर लिया है परन्तु इस वर्ष सुपारी में मिलावट के मामले, विदेशी सुपारी की भरमार, व्यापारियों की ओर से कीमत में कमी की रणनीति के कारण सुपारी की कीमत में गिरावट आई है।
कीमत में काफी गिरावट आई है
सुपारी बाजार में मई 2024 के अंत तक एक क्विंटल राशि सुपारी की कीमत 50 हजार रुपए थी, जबकि छाली सुपारी की कीमत 48 हजार से 49 हजार रुपए थी परन्तु जून और जुलाई महीने में बाजार में सीजन की सुपारी की उपलब्धता बढऩे से कीमत में काफी गिरावट आई है।
करोड़ों रुपए का नुकसान होगा
संघों के नेताओं का कहना है कि पिछले दो महीनों से, अधिकांश सहकारी संघों ने औसतन 40,000 से 45,000 रुपए का भुगतान कर राशि और छाली सुपारी खरीदकर स्टॉक किया है। अब कीमत में तेजी से गिरावट आई है और बेचने पर नुकसान का डर सता रहा है। भंडारित सुपारी को केवल तभी बेचा जा सकता है जब खरीद मूल्य पहुंच जाए, वरना करोड़ों रुपए का नुकसान होगा।
दर में गिरावट जारी
अधिकांश सहकारी संघों ने स्थिर कीमत देने के इरादे से सुपारी खरीदा है। अगस्त के अंत तक राशी सुपारी 45 हजार रुपए प्रति क्विंटल से गिरकर 37 हजार रुपए प्रति क्विंटल हो गया था। पिछले एक सप्ताह से बाजार में कीमत में भारी गिरावट आई है। बुधवार को सिरसी बाजार में राशी सुपारी की औसत कीमत 39,737 रुपए प्रति क्विंटल थी, जबकि छाली सुपारी की औसत कीमत 33,958 रुपए प्रति क्विंटल थी।
–सिताराम हेगड़े, बाजार विश्लेषक, सिरसी
2-3 महीने की स्टॉक रखने की वित्तीय क्षमता
सुपारी की कीमतों में गिरावट के दौरान स्टॉक किए गए उत्पाद को बेचने से भारी नुकसान से बचा जा सकता है। वर्तमान में सहकारी संघों के पास 2-3 महीने की स्टॉक रखने की वित्तीय क्षमता है।
–डॉ. गोपालकृष्ण वैद्य, अध्यक्ष, टीएसएस, सिरसी