किष्किंधा के हनुमान लला को लेकर भिड़े पुजारी और कर्नाटक सरकार
होसपेट. किष्किंधा क्षेत्र को हनुमान जन्मस्थली कहा जाता है। मान्यता है कि हनुमान का जन्म यहीं हुआ था और यहां पर एक प्राचीन मंदिर है उसका नाम आंजनेय हनुमान मंदिर है। इसे लेकर कर्नाटक सरकार और मुख्य पुजारी में कानूनी घमासान चल रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा आदेश जारी किया है।
कोर्ट ने कहा है कि हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी विद्यादास को पूजा-अर्चना करने की इजाजत दी जाए और उन्हें मंदिर परिसर में रहने के लिए एक कमरा दिया जाए। मुख्य पुजारी का दावा है कि 120 वर्षों से पुजारियों के पास यह मंदिर रहा है और वे ही हनुमान की पूजा-अर्चना करते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दी कर्नाटक सरकार के अधिकारियों को चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के अधिकारियों को चेतावनी भी दी है कि अगर आदेशों का उल्लंघन हुआ तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा। बता दें कि मुख्य पुजारी की याचिका पर विष्णु शंकर जैन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और कहा था कि 2023 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें कहा था कि कर्नाटक सरकार मुख्य पुजारी विद्यादास को पूजा अर्चना करने का अधिकार दे और इसके अलावा वहां पर उनको रहने के लिए एक कमरा भी दिया जाएगा, परन्तु कर्नाटक सरकार और उसके अधिकारी लगातार आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं।
उन्होंने एक याचिका भी दाखिल की थी और हाईकोर्ट को बताया था किस तरीके से सरकारी अधिकारी, पुलिस, प्रशासन उन पर दबाव बना रहा है। उन्हें प्रताडि़त किया जा रहा है और उन्हें पूजा अर्चना नहीं करने दे रहे हैं परन्तु हाईकोर्ट ने 9 अप्रेल 2025 को इस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ विद्यादास सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत दी है।
बता दें कि इस मुद्दे पर 2018 से विवाद चल रहा है। मुख्य पुजारी के वकील विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 120 सालों से यह मंदिर इन्हीं पुजारियों के पास है। यही संप्रदाय हनुमान की पूजा अर्चना का काम संभालता है। वहां पर 500 सीढिय़ा भी बनाई गई हैं परन्तु सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया जो कि पूरी तरह गैर कानूनी है।
कर्नाटक सरकार ने 2018 में मंदिर को लिया था कब्जे में
कर्नाटक सरकार ने हिंदू एंडोमेंट एक्ट 1997 के तहत 2018 में इस मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया है। मुख्य पुजारी विद्यादास ने इसका विरोध कर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने कई अंतरिम आदेश जारी किए, जिसमें मुख्य पुजारी को पूजा-अर्चना की इजाजत दी गई, परन्तु सरकार ने इसका पालन नहीं किया।
मुख्य पुजारी विद्या दास लगातार इसका विरोध करते रहे वे हाई कोर्ट गए और हाई कोर्ट में जाकर उन्होंने चुनौती दी कि सरकार इस तरह से मंदिर का अधिग्रहण नहीं कर सकती, यह पूरी तरह अवैध है। सरकार के पास वो कागजात नहीं हैं, वो रिकॉर्ड नहीं हैं, जिसके तहत जिसके आधार पर इस मंदिर का टेकओवर किया गया है।
विद्यादास का कहना है कि हाईकोर्ट ने समय-समय पर बहुत सारे आदेश जारी किए। अंतरिम आदेश भी जारी किए और 2018 में भी, 2019 में भी, 2020 में भी और फिर 2023 में उन्हें पूजा करने की इजाजत देने का अंतरिम आदेश जारी किया और कहा था कि जब तक कि पूरा फैसला नहीं हो जाता तबतक यह उनका अधिकार है। अंतरिम तौर पर यह अधिकारी हाई कोर्ट ने उन्हें दे दिया था, परन्तु उसके बावजूद उनको 2009 में यहां पर मुख्य पुजारी बनाया गया था और तब से वे यहां पर पूजा अर्चना कर रहे हैं। सरकार गैर कानूनी तरीके से अवैध तरीके से उनके इस अधिकार को छीन रही है। पुजारियों का पूजा अर्चना करने का अधिकार है। वहां उन्होंने संस्कृत विद्यालय भी स्थापित किया है। सरकार दबाव बना रही है, हाईकोर्ट के आदेशों का भी पालन नहीं कर रही। यह तो अवमानना का मामला बनता है, परन्तु हाईकोर्ट इस मामले पर सुनने को तैयार नहीं था, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया है।
यह जानकारी सुनील बिश्नोई कोप्पल ने दी।