राज्यपाल ने सरकार को दिया निष्पादन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश
कर्नाटक विश्वविद्यालय
हुब्बल्ली. राज्यपाल ने सरकार को धारवाड़ के प्रतिष्ठित कर्नाटक विश्वविद्यालय में कथित भर्ती, मार्कशीट, कार्य और खरीद घोटाले से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक और नागरिक मामलों के संबंध में निष्पादन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। इसके जरिए 2014 में घटी घटना को पुनर्जीवित किया है।
राज्यपाल के विशेष सचिव आर. प्रभु शंकर ने उच्च शिक्षा विभाग के विशेष सचिव श्रीकर को 2014 में तत्कालीन कुलपति रहे प्रो. एच.बी. वालीकार, तत्कालीन मूल्यांकन (वैल्यूएशन) कुलसचिव डॉ. एच.टी. पोते समेत 7 लोगों के खिलाफ दर्ज आपराधिक और दीवानी मामलों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।
कर्नाटक विश्वविद्यालय में कथित भर्ती, अंक तालिका, कार्य और खरीद घोटालों की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी. पद्मराज की अध्यक्षता में सरकार ने एक आयोग का गठन किया था। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यपाल के आदेश के तहत धारवाड़ लोकायुक्त थाने में कर्नाटक विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति वालीकार के खिलाफ 7 अक्टूबर 2014 को मामला दर्ज हुआ था। कुलपति प्रो. वालीकार की सेवा अवधि कुछ ही दिन बाकी थी इसी बीच लोकायुक्त पुलिस ने उन्हें उनके कार्यालय से गिरफ्तार किया था, बाद में उन्हें कुलपति के पद से निलंबित किया गया था।
प्रो. वालीकार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि वालीकार और अन्य के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए किसी प्रकार की कोई रोक नहीं है।
अब राज्यपाल ने सरकार को कर्नाटक विश्वविद्यालय के मामलों से संबंधित विस्तृत प्रदर्शन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है परन्तु दिलचस्प बात है कि उसी कार्यकाल के दौरान हुए मैसूरु कर्नाटक राज्य ओपन विश्वविद्यालय के 14 गंभीर घोटालों के बारे में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. भक्तवत्सव के नेतृत्व वाले आयोग की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट को नहीं मांगा है।
यह है मामला
प्रो. एच.बी. वालीकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कर्नाटक राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के मुताबिक सरकार को जांच आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई का आदेश देना चाहिए था परन्तु कुलाधिपति का ही सीधे तौर पर आदेश जारी करना तकनीकी रूप से मान्य नहीं होने के कारण अदालत ने कुलाधिपति के आदेश और एफआईआर को रद्द कर आदेश जारी किया था। साथ ही फैसले में कहा गया कि राज्य सरकार घोटालों पर नियमानुसार प्रक्रिया अपनाकर कानूनी कार्रवाई कर सकती है।