बनेगा पहला समुद्री पुनर्वास केंद्र, विश्व बैंक को सौंपा प्रस्तावकारवार के कोडिबाग स्थित वन विभाग के सालूमरद तिम्मक्का उद्यान का प्रवेश द्वार।

विश्व बैंक के साथ किया समझौता
कारवार. लुप्तप्राय समुद्री प्रजातियों के उपचार तथा उनकी जीवन-शैली का अध्ययन करने के लिए सुविधा प्रदान करने वाले अनुसंधान केंद्र को राज्य का पहला समुद्री मेगा जीव बचाव एवं पुनर्वास केन्द्र (एमसीआरआरसी) स्थापित करने की कारवार वन उप-प्रभाग ने पहल की है।
शहर के सालूमरद तिम्मक्का उद्यान में ही केंद्र स्थापित करने के लिए 4.5 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत की कार्य योजना का प्रस्ताव वन विभाग के माध्यम से विश्व बैंक को सौंपा है।

वश्व बैंक के साथ किया समझौता
अधिकारियों ने बताया कि के-शोर (कर्नाटक-सरफेस सस्टेनेबल हार्वेस्ट ऑफ मरीन रिसोर्सेज) परियोजना के तहत, कर्नाटक सरकार ने दुर्लभ समुद्री जीवन के संरक्षण, समुद्री तट क्षेत्र की सफाई सहित संरक्षण उपाय करने के लिए विश्व बैंक के साथ समझौता किया है। इस परियोजना के भाग के तौर पर जलीय जीवन के संरक्षण और पुनर्वास केंद्र की स्थापना की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा गया है।

कई व्यवस्थाएं इस परियोजना में शामिल
केवल संरक्षण स्थल के तौपर मात्र सीमित न रहकर ओलिव रिडले जैसे दुर्लभ प्राणियों के जीवन चक्र का वर्णन करने वाली प्रणाली, उनके अंडों को संरक्षित करने की प्रणाली और उनके जीवन चक्र के अध्ययन के लिए पृथक विभाग समेत कई व्यवस्थाएं इस परियोजना में शामिल हैंै। भवन निर्माण सहित आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए उद्यान में स्थित सीआरजेड क्षेत्र के बाहर क्षेत्र की पहचान की गई है।

माहिर विशेषज्ञों की भर्ती की मांग की
प्रस्ताव में समुद्री जीवन का उपचार और पोस्टमार्टम जांच करने के लिए कुशल डॉक्टरों, अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए माहिर विशेषज्ञों की भर्ती की मांग की गई है।

लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण और अध्ययन में सुविधा होगी
इस परियोजना में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत आने वाले लुप्तप्राय ओलिव रिडले सहित पश्चिमी तट पर पाए जाने वाले इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन, व्हेल और अन्य प्रकार के समुद्री जीवों का संरक्षण करने के साथ उनके घायल होकर समुद्री तट पर आकर गिरने पर उपचार प्रदान करने के लिए देखभाल केंद्र, मृत जलचरों का पोस्टमार्टम करने वाला केंद्र शामिल होगा। के-शोर परियोजना के तहत समुद्री जीवन संरक्षण और पुनर्वास केंद्र स्थापित होने पर लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण और अध्ययन में सुविधा होगी।
सी. रविशंकर, डीसीएफ, कारवार

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