किम्स अस्पताल, चिटगुप्पी अस्पताल और धारवाड़ जिला अस्पताल
हुब्बल्ली. हुब्बल्ली-धारवाड़ महानगर में बच्चे मंगनाबाउ (गलसुआ रोग) बीमारी से पीडि़त हैं। दिन-ब-दिन इस बीमारी से पीडि़त लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।
किम्स अस्पताल, चिटगुप्पी अस्पताल और धारवाड़ जिला अस्पताल के बाह्य रोगी विभाग में इलाज के लिए अपने माता-पिता के साथ बच्चों का कतार में लगे रहने का दृश्य आम है।
इलाज के लिए कुछ निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में जा रहे हैं। यह रोग एक सप्ताह तक रहता है।
चिकित्सकों का कहना है कि गलसुआ एक संक्रामक रोग है जो ज्यादातर गाल के नीचे जबड़ों के पास स्थित पेरोटिड ग्रंथियों में संक्रमण के फैलने से होता है। ये ग्रंथियां लार बनाती हैं। संक्रमण के कारण इस रोग में गालों में सूजन आ जाती है। इस रोग के लक्षण बहुत बाद में दिखते हैं। आमतौर पर बचपन से युवावस्था में प्रवेश होने तक इस बीमारी की संभावना रहती है मगर आजकल ये किसी भी उम्र में देखा जा सकता है। ये कोई गंभीर रोग नहीं है परन्तु इसकी वजह से चेहरा भद्दा दिखने लगता है और गालों और गर्दन में दर्द भी होता रहता है।

15 से 20 दिन बाद इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं
गलसुआ के लक्षण शुरूआत में नजर नहीं आते हैं। वायरस के संपर्क में आने के लगभग 15 से 20 दिन बाद इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं। गलसुआ के ज्यादातर लक्षण टॉन्सिल से मिलते हैं इसलिए बहुत से लोग टॉन्सिल और गलसुआ में अंतर नहीं कर पाते हैं। बुखार, सिरदर्द, भूख न लगना, कमजोरी, चबाने और निगलने में दर्द होना और गालों में सूजन आदि लक्षण गलसुआ के भी हैं और टॉन्सिल के भी हैं। कई बार सिर्फ एक तरह की ही ग्रंथि में सूजन आती है। इसके रोगियों को पेट में तेज दर्द और उल्टी की समस्या हो जाती है। गलसुआ के कारण पुरूषों के अंडकोष में दर्द व प्रजनन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी स्तन में सूजन, दिमाग की झिल्ली व दिमाग में सूजन आदि भी देखने को मिलती है। हांलाकि इसकी संभावना काफी कम होती है। इसके 10 में से एक मरीज को मेंनिंजाइटिस या एन्सिफलाइटिस के लक्षण भी उभर सकते है और अस्थाई रूप से बहरेपन की समस्या भी हो सकती है।

एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैलता है
गलसुआ चूंकि एक संक्रामक रोग है इसलिए ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैलता है। गलसुआ के वायरस से प्रभावित रोगी, पेरोटिड ग्रंथि में सूजन शुरू होने के 7 दिन पहले और 7 दिन बाद तक संक्रमण फैला सकता है। यह संक्रमण संक्रमित लार, छींकने या खांसने तथा संक्रमित व्यक्ति के साथ बर्तन साझा करने के माध्यम से फैलता है। इस रोग में कानों के एकदम सामने जबड़े में सूजन दिखाई देती है। कई बार चिकित्सक भी गलसुआ और टॉन्सिल के लक्षणों में कन्फ्यूज रहते हैं तो इसके लिए ब्लड की जांच की जाती है। ब्लड में एंटीबॉडी की उपस्थिति आसानी से वायरल संक्रमण की पुष्टि कर देता है।

बच्चे इसी बीमारी से पीडि़त
बेंगेरी की लक्ष्मव्वा शिगिहल्ली ने कहा कि एक पखवाड़े पहले बेटी को यह बीमारी हुई थी, अब बेटे को हो गई है। हमारे आवासीय इलाके के आसपास कुछ बच्चे इसी बीमारी से पीडि़त हैं।

अस्पताल आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी
गलसुआ एक संक्रामक रोग है और ज्यादातर बच्चों में देखा जाता है। इन बीमारियों के मामले एक सप्ताह बढ़ रहे हैं और अस्पताल आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। सामान्य या तेज बुखार और गाल क्षेत्र में दर्द इसके लक्षण हैं। रुबुलावायरस संक्रमण के कारण कान का निचला हिस्सा सूज जाता है। यह आमतौर पर पांच से पंद्रह वर्ष की आयु के बच्चों में दिखाई देता है। वयस्कों में यह बहुत कम देखा जाता है। कोई जानलेवा बीमारी नहीं। संक्रमण का पता चलते ही आराम करना चाहिए। सामान्य बुखार की ही दवा दी जाती है। सबसे अच्छा समाधान आराम करना है।
-श्रीधर दंडप्पनवर, चिकित्सा अधिकारी, हुब्बल्ली-धारवाड़ महानगर निगम

संक्रामक रोग
गलसुआ एक संक्रामक रोग है, इसलिए रोगी को अलग रखना बेहतर होता है। यदि संक्रमण का जल्दी पता चल जाए तो बीमारी को जल्द ठीक किया जा सकता है।
डॉ. शशि पाटिल, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, धारवाड़

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