सरकारी अस्पतालों को जीवनरक्षक दवाओं की आपूर्ति नहीं कर रहा केएसएमएससीएल
अभी तक नहीं आईं 600 करोड़ रुपए की 733 दवाएं!

हुब्बल्ली. हम चालू वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में प्रवेश कर रहे हैं परन्तु स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के तहत आने वाले कर्नाटक राज्य चिकित्सा आपूर्ति निगम (केएसएमएससीएल) ने दवाओं की खरीदी कर उन्हें सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति नहीं की है। इसकी वजह से न केवल सांप और कुत्ते के काटने जैसे इलाज बल्कि कैंसर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली जीवनरक्षक दवाओं के लिए भी गरीब मरीजों को संघर्ष करना पड़ रहा है।

दवाओं की आपूर्ति के लिए टेंडर प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं करना ही इसका कारण है। गरीब मरीजों को डॉक्टरों की ओर से लिखी दवा बाहर ऊंचे दाम पर खरीदनी पड़ रही है। चालू वर्ष में नवंबर के अंत तक 600 करोड़ रुपए लागत की कुल 733 दवाओं की मांग की गई है।

केएसएमएससीएल हर साल सैकड़ों करोड़ रुपए लागत के पट्टी का कपड़ा, कपास, सर्जिकल दस्ताने, ग्लूकोज की बोतल, एंटीबायोटिक गोली और चिकित्सा उपकरण समेत विभिन्न दवाओं को खरीद कर जिला, तालुक अस्पताल, समुदाय, स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और शहरी स्वास्थ्य केंद्र को मुफ्त में आपूर्ति करता है। हर साल थोड़ी देरी होने पर भी टेंडर प्रक्रिया मई के अंत तक पूरी कर सभी प्रकार की दवा व चिकित्सा उपकरण खरीदकर स्टॉक कर लिया जाना चाहिए था। वह काम नहीं हुआ है।

बकाया बिल की समस्या: दवा आपूर्तिकर्ताओं का आरोप है कि निगम में बिल निस्तारण की प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है। सैकड़ों बिल लंबित हैं। इसके कारण शत-प्रतिशत दवा आपूर्ति करने वाली कंपनियों को समय पर राशि का भुगतान नहीं हो रहा है। दवा बिल का भुगतान 30 दिन के अंदर करने के नियम होने के बाद भी इसका उल्लंघन किया जा रहा है।

300 रुपए सामग्री के लिए 3000 रुपए दर!
गंभीर आरोप हैं कि स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा निदेशालय दवा और चिकित्सा उपकरणों के अपने पसंद के ब्रांड की सिफारिश कर रहे हैं। इन दोनों विभागों में हर साल 3 हजार करोड़ रु. से ज्यादा की खरीद प्रक्रिया होती है। इसमें अपनी पसंद की दवाओं और मेडिकल उपकरणों का ब्रांड सिफारिश पर खरीदा जा रहा है। सर्जिकल टांके के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री की बाजार में कीमत 300 रु. है, तो इसकी कीमत 3,000 रु. दर्ज की जा रही है। इसी तरह अलग-अलग उत्पादों के लिए भी महंगे दाम दर्ज किए जा रहे हैं। इससे सरकार के खजाने को करोड़ों की हानि हो रही है।

इन दवाओं की कमी
फेफड़े, आंत, एनीमिया, दाद, निमोनिया, कैंसर, अस्थमा, मधुमेह, अनिद्रा, रक्तचाप, गर्भाशय रक्तस्राव, दिल का दौरा, हड्डी, खुजली, कवक, माइग्रेन, अल्सर, दर्द, योनि संक्रमण, सर्दी, संज्ञाहरण, हृदय शल्य चिकित्सा, रक्त थक्के, मतली, उल्टी, मस्तिष्क और तंत्रिका, आंखों में संक्रमण सहित विभिन्न गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं की कमी पेश आई है।

237 करोड़ बकाया
केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) का 237 करोड़ रुपए बकाया है, जिसके लिए अनुरोध किया गया है। पैसा मिलते ही शेष बिलों का भुगतान किया जाएगा। टेंडर प्रक्रिया के जरिए ही दवाओं को संग्रह करना चाहिए। टेंडर प्रक्रिया नियमों के मुताबिक होनी चाहिए, इसलिए इसमें काफी समय लगता है। अगले साल से ऐसा होने से रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

चिदानंद एस. वटारे, प्रबंध निदेशक, केएमएसएससीएल

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