संकट में खानाबदोशों का जीवन
सजावटी सामान भी बेचते हैं
हुब्बल्ली. आज यह शहर, कल कोई और शहर। हम जैसे खानाबदोशों के पास अपनी जमीन या घर नहीं है। हमें जहां आश्रय मिलेगा वहीं रहते हैं। कुछ दिनों के बाद हम फिर अगले शहर की ओर प्रस्थान करते हैं। हमें उस वक्त जो मिलता है, उसे बेचकर गुजारा करते हैं। इस प्रकार मल्लशेट्टी ने अपने दैनिक जीवन का संक्षेप में वर्णन किया।
खानाबदोश समुदाय के मल्लशेट्टी अपने परिवार के सदस्यों के साथ हुब्बल्ली के आरटीओ कार्यालय के पास एक अस्थायी ठिकाना ढूंढ लिया है। वहां वे सडक़ किनारे सजावटी सामान बेच रहे हैं। उनके साथ 25 से ज्यादा परिवार रहते हैं।
सजावटी सामान भी बेचते हैं
बेंगलूरु के पास रामानगर तालुक के बिडदी शहर का यह खानाबदोश समुदाय लंबे समय तक एक जगह पर नहीं रहता है। वे छोटे-मोटे काम करने के अलावा सजावटी सामान भी बेचते हैं।
हमें विश्वास है अच्छे दिन आएंगे
मल्लशेट्टी ने कहा कि हमारे पूर्वजों के समय से हम छोटे-छोटे कामों पर ही विश्वास करते थे। हममें से अधिकतर लोग अशिक्षित हैं। कुछ ने कॉलेज स्तर तक पढ़ाई की है परन्तु उन्हें नौकरी नहीं मिली है। हमने आर्थिक तंगी में ही सब कुछ संभाल कर जी रहे हैं। हमें विश्वास है कि आगामी दिनों में अच्छे दिन आएंगे।
हम पैतृक व्यवसाय नहीं छोड़ सकते
प्लास्टिक सामग्री की व्यापारी जयश्री ने कहा कि त्योहार के मौके पर हम खुद ही प्लास्टिक की मालाएं, दरवाजे के तोरण समेत कई सामान तैयार करते हैं। हम 15 वर्षों से इसी कार्य के भरोसे जीवन गुजार रहे हैं। दिवाली नजदीक आते ही लोग हमारा बनाया हुआ सामान खरीद लेते हैं। हम अपने दैनिक कार्य से जीवन यापन कर पा रहे हैं। हाल के दिनों में ऑनलाइन लेनदेन में भी वृद्धि हुई है, अधिकांश लोग अपने मोबाइल पर विभिन्न वस्तुओं को चुनते और खरीदते हैं। इसके चलते हम जो उत्पाद बेचते हैं उनकी मांग थोड़ी कम हुई है। इसके बाद भी हम पैतृक व्यवसाय को नहीं छोड़ सकते।
हम दिवाली खुशी से मना सकेंगे
उन्होंने कहा कि सरकार से हमें ज्यादा सुविधा मिलती नहीं है। लोगों को ऑनलाइन पर बहुत सारा पैसा खर्च करने के बजाय, कम कीमत पर हम से तैयार वस्तुएं खरीद सकते हैं। बिक्री से मिलने वाली रकम से हम दिवाली खुशी से मना सकेंगे।