हरे रंग में बदला तुंगभद्रा नदी का पानीहरे रंग में बदला तुंगभद्रा नदी का पानी

जनजीवन अस्त-व्यस्त
होसपेट (विजयनगर). तीन-राज्यों की जीवनधारा तुंगभद्रा जलाशय में कारखानों का अपशिष्ट जल, उर्वरक और अन्य जहरीला पानी बहकर आ रहा है, जिससे साल दर साल अधिक प्रदूषित हो रहा है। जलाशय और नदी का पानी हरा हो गया है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पानी रंगहीन होता है परन्तु समुद्रों, जलाशयों, झीलों और नदियों सहित जल निकायों का रंग अक्सर आकाश जैसा होता है परन्तु केवल तुंगभद्रा जलाशय में ही पानी कुछ दिनों के लिए हरा हो जाता है। जलाशय के बेसिन में साल-दर-साल किसी न किसी तरह की फैक्ट्रियां बन रही हैं। कारखानों से निकलने वाला कचरा और खेतों में इस्तेमाल होने वाले उर्वरक तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थ बारिश के पानी में बहकर जलाशय में प्रवेश कर रहे हैं। इससे जलाशय विषैला होता जा रहा है और हरा रंग में बदलने की वजह भी है।
पहले जलाशय के केवल कुछ हिस्से ही हरे होते थे परन्तु इस वर्ष पूरा जलाशय हरा-भरा हो गया है और नदी भी हरी हो गई है। तुंगा और भद्रा के गृहनगर चिक्कमगलूर से शुरू होकर, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों सहित उत्तर कर्नाटक के अधिकांश जिले पीने के पानी के लिए नदी के पानी पर निर्भर है परन्तु रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि नदी का पानी पीने लायक नहीं है।
विशेषज्ञों की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि जलाशय में कुछ दिनों तक ताजा पानी बहने के बाद पानी का हरा हो जाना कई वर्षों से आम बात है। इस समस्या का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। 24 साल पहले भारतीय विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों की एक टीम ने जलाशय का दौरा कर इसका निरीक्षण किया था। पानी को हरा करने के लिए नीले हरे शैवाल जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, नदी बेसिन के खेतों से अत्यधिक उर्वरक के साथ मिलकर पानी जलाशय में प्रवेश करने, वातावरण में परिवर्तन के कारण पानी हरा हो जाता है।
जलाशय के पानी का उपयोग कृषि, उद्योग के साथ-साथ लोगों और पशुओं के पीने के लिए भी किया जा रहा है। दूसरी ओर जलाशय सील, मछली, केकड़े, कछुए सहित कई जलीय जीवों, जानवरों और पक्षियों का आधार है। जलाशय में पानी हरा होने से वन्यजीव प्रेमी, किसान और आम लोग चिंतित हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अपशिष्ट जल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, नाइट्रेट, फॉस्फेट और जस्ता उच्च मात्रा में होते हैं। लगातार तीन दिनों तक बादल छाए रहने और कभी-कभार धूप निकलने के कारण सायनो बैक्टीरिया (नीले हरे शैवाल) की वृद्धि होगी। तब अचानक जलाशय का पानी हरा हो जाता है। बहते पानी में यह समस्या नहीं होती।
जलाशय का पानी बिना शुद्ध किए सीधे नहीं पीना चाहिए। हरा पानी पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। राज्य पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है। यहां यह याद किया जा सकता है कि 2008, 2009 में जलाशय के बैकवाटर क्षेत्र में बहुत सारी मछलियां मर गईं थी। गंदे पानी में तैरने से त्वचा संबंधी रोग हो सकते हैं। बिना शुद्ध किया हुआ पानी सीधे पीने से उल्टी और दस्त की समस्या बढ़ जाएगी। हर साल जलाशय का पानी हरा होने के बावजूद सरकार ने कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की है, जो पर्यावरण प्रेमियों के निराशा का कारण है।

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