गदग जिले की सीमा में हुआ संतों का आगमन
गदग. आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा कि वर्षावास भारतीय संस्कृति के साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की महान परंपरा है। यह धर्म जागरण का शंखनाद है। वर्षावास में धर्म-उपदेशों, व्रत-तपस्याओं और विविध धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा मनुष्य की सोयी हुई चेतना को जागने का पवित्र पुरुषार्थ होता है।
गदग जिले की सीमा में मंगलवार को प्रात: प्रवेश के अवसर पर हल्लीकेरे में जैनाचार्य ने कहा कि हमारा मन कुछ ऐसा है कि उसे कोई बार-बार प्रेरित करने वाला और भीतर ज्ञान की बाती जलाने वाला चाहिए। धर्मगुरु यही काम करते हैं। आज भारतीय संस्कृति और अपनी जो भी पवित्र परंपराएं जीवंत बची हैं, उनमें साधु-संतों के वर्षावास का सर्वाधिक योगदान है। पश्चिम को यह सब नहीं मिल पाया है। इसलिए वहां अनेक विषमताएं और विकलताएं हैं। इस दृष्टि से भारत भूमि सौभाग्यशाली है। वर्षावास का सुयोग अपनी युगों-युगों की अज्ञानता, मूढ़ता, निद्रा, तंद्रा और कुवृत्तियों को झकझोर कर, जीवन की दिशा और दशा को बदलने का सुनहरा अवसर है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा कि गुरु जिस किसी गांव-नगर में आते हैं, वह भूमि तीर्थतुल्य बन जाती है परन्तु सभी को यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि गुरु का मात्र गांव में पधारना ही पर्याप्त नहीं हैं, गुरु का अपने जीवन में भी पदार्पण होना चाहिए। गुरु के मार्गदर्शन में जीवन जीया जाना चाहिए। अत्यंत पुण्यप्रताप से ही भगवान, गुरु और धर्म मिलते हैं, परन्तु बिना पुरुषार्थ के वे फलते नहीं हैं। किसी का मिलना काफी नहीं है, उनका फलीभूत होना जरूरी है। वे लोग सचमुच सौभाग्यशाली होते हैं, जो भगवान, गुरु और धर्म की प्राप्ति के स्वर्णिम संयोग को सफल बना देते हैं।
स्थानीय कन्नड़ भाषी श्राद्धालुओं और जैन श्रावकों के साथ-साथ गदग जिले के पुलिस अधिकारियों ने जैनाचार्य का स्वागत कर उनकी अगवानी की।
गदग जैन संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि हल्लीकेरे में दिन भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा। जैनाचार्य के विराट वर्षावास को लेकर गदग और आसपास के क्षेत्रों में अत्यंत उत्साह का वातावरण बना है। करीब दो हजार से अधिक लोग वर्षावास प्रवेश के लिए गदग आ रहे हंै। यह पहली बार है कि इतने अतिथि गदग आएंगे। जैनाचार्य के प्रवेश को लेकर जोरदार तैयारियां चल रही है। घर-घर में महोत्सव जैसा माहौल बना है।