आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वर की 152 वीं जयंती मनाई
होसदुर्ग-हिरियूर. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि जीवन में सब कुछ मिल सकता है, परन्तु जब तक सद्गुरु न मिलें, तब तक सब अधूरा है। सद्गुरु जीवन को पूर्णता की ओर ले जाते हैं। वे सौभाग्य से मिलते और फलीभूत होते हैं। कोई राजा हो या रंक, सभी को सद्गुरु की आवश्यकता रहती है। हमारी अज्ञानता को दूर करने गुरु ज्ञान का अंजन आंजते हैं। जन्मोजनम की कुवृत्तियों को वे मिटा देते हैं। पूरे समर्पणभाव से अपनी योग्यता बनाते हुए जीवन में सद्गुरु की खोज करते रहना चाहिए। जिस दिन गुरु मिल जाए, मानों जन्म सफल हो गया।
अपनी पदयात्रा के दौरान वाणी विलास सागर बांध के समीप श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि गुजरात के पटेल हिन्दू परिवार में जन्में आचार्य बुद्धि सागर सूरीश्वर अनेक उपलब्धियों के निधान नि:स्पृहय जैनाचार्य थे। उनके जीवन की गहराईयों को देखकर स्पष्ट लगता है कि वे कुछ लेने नहीं, संसार को सत्व, शिक्षा, संस्कार और साधना देने आए थे। उनके रग-रग में ज्ञान और भक्ति का निधान था। महाशिवरात्रि के दिन उनका जन्म हुआ था। आज भी नियमित रूप से आकाशवाणी गुजरात से उनके भजन प्रसारित होते हैं।
बुधवार को देश में जगह-जगह उनकी 152 वीं जयंती श्रद्धा-भक्ति पूर्वक मनायी गई। इस अवसर पर हिरियूर, होसदुर्ग, चलकेरे, बल्लारी, बेंगलूरु आदि अनेक संघों के श्रावक-श्राविकाओं ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्रमण परिवार ने उनके लोक कल्याणकारी भजनों की सामूहिक प्रस्तुतियां दी। संगीतमय मंत्रजाप किए गए। उनके साहित्य पर परिसंवाद आयोजित किया गया।
गणि पद्मविमल सागर ने कहा कि आचार्य बुद्धि सागर सूरीश्वर ने गुजरात के बरोड़ा और अंबाजी में बलिप्रथा बंद करवाई थी। कन्याओं की बिक्री की कुप्रथा मिटाने के लिए उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी। मृत्युभोज को बंद करवाकर उन्होंने समाज को सही दिशा दी थी। शताब्दी पहले जगह-जगह उनकी प्रेरणाओं से सेनिटोरियम, होस्टल और विद्यालयों के निर्माण हुए। समाज के सामान्य वर्ग के लिए
उन्होंने श्रीमंत वर्ग को खूब काम में लगाया। इसके लिए महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, लोकमान्य तिलक और तत्कालीन साधु-संतों ने उनके बहुत यशोगान किए हैं। वे सचमुच समाज उद्धारक विरल संत थे।