शिवमोग्गा. आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने कहा कि युवावस्था जीवन का स्वर्णिम कालखंड है। सौभाग्य से जीवन को यौवन प्राप्त होता है, परन्तु दृढ़ निष्ठाभावना और अथक पुरुषार्थ से इसका जतन करना होता है।
शहर के भगवान महावीर भवन में पंद्रह वर्ष आयु पार के अविवाहित युवक-युवतियों के यूथ सेमिनार को संबोधित करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी युवावस्था को व्यर्थ कर देता है, वह अपने अमूल्य जीवन के सुनहरे अवसर को खो देता है। दुराचार, धूम्रपान, शराब, शिकार, मांसाहार, चोरी आदि को जैन साहित्य में दुव्र्यसन कहा गया है। ये व्यसन जिसको भी लग जाते हैं, वे उसे पूरी तरह निगल जाते हैं। यौवन शक्तियों का महान पुंज होता है, परन्तु उसका व्यसनमुक्त और सदाचारी होना अत्यंत जरूरी होता है। ऐसी पवित्र युवावस्था किसी चमत्कार से कम नहीं होती। ऐसा एक युवा हजार वृद्धों से भी अधिक ऊर्जावान और समर्थ होता है।
उन्होंने कहा कि जिन्हें माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों की परवाह न हों, जो जिद्द और गुस्से से भरे हों, जो पैसों की कीमत न समझते हों, झूठ बोलना जिन्हें अच्छा लगता हो, जो व्यसनों में आसक्त हों, जिन्हें नाचने-खेलने, घूमने-फिरने, सजने-संवरने में समय व्यर्थ करना अच्छा लगता हो, ऐसे युवा क्या खाक राष्ट्र, समाज या धर्म का भला करेगा? वे स्वयं का भला कर लें तो भी काफी हैं। जो पूरे दिन मोबाइल पर टिके रहते हैं और इधर-उधर भटकते रहते हैं, वे अपने जीवन में कोई क्रांति नहीं कर सकते। ऐसे यौवन पर तरस आती है। उनसे भविष्य की आशा करना बहुत बड़ी भ्रांति है। निकम्मों के नसीब फूटे हुए नहीं होते, वे निकम्मे और निठल्ले होकर स्वयं अपने नसीब फोड़ते हैं।
आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने दु:ख जताते हुए कहा कि कैसे मान लें कि देश का भविष्य आने वाली युवा पीढ़ी के हाथों में सुरक्षित हैं? जहां के अधिकांश युवावर्ग को थोड़ी सी मेहनत करना भी बुरा लगता है और दूसरी तरफ देश की पैंतालीस से पैंसठ वर्ष की प्रौढ़ पीढ़ी दिन रात मेहनत करके भी नहीं थकती। जब बड़े-बुजुर्ग जीवन के उत्तराद्र्ध में भी इतनी मेहनत करते हैं तो युवा और किशोर वर्ग को अपने उदयकाल में ही सांप क्यों सूंघ जाता है? याद रहे कि पुरुषार्थ से प्रारब्ध का निर्माण होता है। पुरुषार्थहीन का प्रारब्ध सुषुप्त बन जाता है। असलताओं के कारण हताश होने या जीवन को कोसने के बजाय, सफलताओं के लिए बार-बार प्रयत्न करने चाहिए। कोई हर बार सफल नहीं होता तो कोई हर बार निष्फल भी नहीं होता, यही शाश्वत सत्य है।
सेमिनार में सैकड़ों युवक-युवतियों ने व्यसन मुक्त रहने की प्रतिज्ञा की।