4.5 करोड़ रुपए बकाया: इंदिरा कैंटीनों के रखरखाव की अनुदान राशि में कटौती
हुब्बल्ली. न्यूनतम दाम पर कुली मजदूरों और गरीबों की भूख मिटाने वाली इंदिरा कैंटीनों के रखरखाव अनुदान पर कैंची चलाई गई है। रखरखाव की जिम्मेदारी प्राप्त ठेकेदार को महानगर निगम तथा श्रम विभाग ने मिलाकर 4.5 करोड़ रुपए अनुदान बकाया बचाए रखा है। इससे गरीबों के भोजन पर सरकार के पत्थर डालने का संदेह शुरू हुआ है।
कांग्रेस के कार्यकाल की महत्वाकांक्षी योजनाओं में इंदिरा कैंटीन भी एक है। गरीबों, कुली-मजदूरों को कम दाम में तीन वक्त पेट भरने के लिए इसे जारी किया। महानगर निगम के 70 प्रतिशत तथा श्रम विभाग को 30 प्रतिशत अनुदान की जिम्मेदारी देकर योजना का गठन किया गया था। आरम्भ में इतना अनुदान देना संभव नहीं होने को लेकर महानगर निगम ने विरोध व्यक्त किया था, इसके बाद भी सरकारी स्तर पर सफल नहीं हुआ।
सरकार के पदलते ही अनुदान की कमी के चलते इंदिरा कैंटीनों का रखरखाव कर रहे ठेकेदारों को जूझने के हालात निर्माण हुए हैं। महानगर निगम कार्यक्षेत्र के नौ कैंटीन की निविदा प्राप्त मयूर आदित्य रिसॉर्ट पिछले डेढ़ वर्ष से अनुदान के लिए महानगर निगम तथा श्रम विभाग के चक्कर काटने के बाद भी फाइल आगे नहीं जा रही है।

समय पर भुगतान नहीं: वर्ष 2018-19 में योजना आरम्भ होने के बाद से ही किसी ना किसी कारण समय पर ठेकेदार को बिल का भुगतान नहीं हुआ है। महानगर निगम ने पिछले डेढ़ वर्ष से लगभग 1.98 करोड़ रुपए बिल बकाया रख लिया है। वहीं कैंटीनों के आरम्भ होने से ही श्रम विभाग ने भी लगभग 2.20 करोड़ रुपए बकाया रखा है। अनुदान मंजूर करने की कई बार मांग करने के बाद भी किसी प्रकार को कोई फायदे नहीं हुआ है। सरकार की ओर से अनुदान मंजूर करने के आश्वासन पर ही प्रतिदिन भूखों को खाना खिला रहे हैं।
कोविड का बकाया भी नहीं: ठेकेदारों का कहना है कि कोविड के दौरान बेरोजगारों, बेसहाराओं को इंदिरा कैंटीन के जरिए सरकार ने नि:शुल्क भोजन वितरित किया। लगभग दो माह नाश्ते के लिए पांच रुपए तथा भोजन के लिए दस रुपए नहीं लेकर नि:शुल्क तौर पर नाश्ता तथा भोजन वितरित किया। सरकारी आदेश के अनुसार नि:शुल्क तौर पर वितरित भोजन का लगभग 35 लाख रुपया बाकी है।
महानगर निगम या फिर श्रम विभाग इस बिल का उनसे कोई संबंध ही नहीं है ऐसा बर्ताव कर रहे हैं। सरकार की ओर से अनुदान मंजूर होने पर भुगतान करने का आश्वासन दे रहे हैं।
और कितने दिनों तक ठेकेदारों पर पड़ेगा ऋणभार
ठेकेदारों का कहना है कि सेवा तथा कारोबार की दृष्टि से रखरखाव की जिम्मेदारी प्राप्त करने वाले अनुदान नहीं मिलने से संकट झेल रहे हैं। हर माह नौ कैंटीन को भोजन, कर्मचारी, वाहन समेत सभी खर्च लगभग 14 से 16 लाख रुपए लगते हैं। परन्तु महानगर निगम तथा श्रम विभाग के बकाया रखने से बैंक से ऋण लेकर रखरखाव किया जा रहा है। गैर जरूरत की जगहों पर महानगर निगम के कैंटीन को चिन्हित करने के कारण दिए गए लक्ष्य नहीं पहुंच रहे हैं। इसके चलते ठेकेदार अधिक संख्या में भोजन, नाश्ते का हिसाब नहीं दिखा सकते इस कारण टोकन कम करवाया है।
सभी कैंटीनों में सीसी कैमरा समेत सतर्कता कार्य किए गए हैं। सरकार के नियमानुसार महानगर निगम तथा श्रम विभाग अनुदान मंजूर नहीं कर रहे हैं। यही अनदेखी जारी रहने पर कैंटीनों के बंद होने पर भी आश्चर्य नहीं होगा।
महानगर निगम कार्य क्षेत्र में सरकार की ओर से 12 कैंटीन मंजूर हुई थीं। इनमें नौ कैंटीनों को भारी मशक्कत के बाद शुरू किया गया था। बकाया तीन कैंटीनों के लिए जगह चिन्हित करने में ही चार वर्ष चले गए। तीन कैंटीन ठंडे बस्ते में चली गई। अधिकारियों की गलती से इस भाग के गरीब, कुली-मजदूरों को यह सेवा नहीं मिल सकी। आरम्भ में 12 कैंटीन देने का सरकार ने ठेकेदारों को आश्वासन दिया था। इसके चलते 12 कैंटीनों के लिए भी बैंक गारंटी ली गई है परन्तु चार वर्ष बाद भी बकाया तीन कैंटीन शुरू करने के बारे में महानगर निगम किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
तीन कैंटीन बंद
कैसे करें रखरखाव
महानगर निगम तथा श्रम विभाग की ओर से एक करोड़ रुपए अनुदान बकाया रखने पर रखरखाव कैसे करें। बारह कैंटीनों में केवल नौ मात्र देकर महानगर निगम ने अन्याय किया है। अनुदान नहीं देने के कारण बैंक से ऋण लेकर रखरखाव करने के हालात निर्माण हुए हैं। महानगर निगम आयुक्त ने अनुदान मंजूर करने का आश्वासन दिया है। -मोहन मोरे, ठेकेदार