जगह-जगह से क्षतिग्रस्त, चोरों ने की खजाने के लालच में गर्भगृह की खुदाई
मंदिर में तीन गर्भगृह, गुंबज नष्ट
अथणी तालुक में कृष्णा नदी के तट पर सवदी गांव में स्थित है यह मंदिर
बेलगावी. अथणी तालुक में कृष्णा नदी के तट पर सवदी गांव में एक बहुत ही सुंदर, ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण, वास्तुशिल्प से समृद्ध त्रिकुटेश्वर जी का मंदिर है। पुरातत्व विभाग की लापरवाही व ग्राम पंचायत के रवैए के कारण वन के बीच इस खूबसूरत इतिहास का एक पन्ना लुप्त हो रहा है। इस मंदिर की वर्तमान स्थिति को देखकर बेहद अफसोस होता है।
10 से 12वीं सदी का है मंदिर का इतिहास : लगभग 10वीं से 12वीं शताब्दी में कल्याण के चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के दौरान निर्मित यह मंदिर मूर्तिकला सौंदर्य की खान है परन्तु घने जंगल के बीच में उपकारी के बिना यह एक अनाथ नजर आता है। गर्भगृह में त्रिकुटेश्वर (बालकृष्ण) की मूर्ति भी प्रभावशाली है। शानदार काया, नीली नाक, चमकिली आंखें, प्यारी ठुड्डी, आकर्षक मुकुट अद्भुत है। इसे देखने के तुरंत बाद वाह-वाह कहने से खुद को नहीं रोक सकते हैं।
आसपास की दीवारों पर घोड़ा, हाथी, सेना, शिला बालिकाओं की नक्काशी दिल को छूने वाली है। ऐहोल और पट्टाडकल्लु में पाई जाने वाली बारीक नक्काशी यहां भी देखी जा सकती है।
मूल मूर्ति चार हाथों वाले बालकृष्ण की बताई जाती है। मेहंदी रंग के पत्थर से तराशी गई नक्काशी और भी खास है। चोरों ने इस मूर्ति को चुराकर नदी में फेंक दिया था। कस्बे के अनुसूचित समुदाय के एक व्यक्ति की चिंता से जल स्तर कम होने पर इसकी रक्षा की।
देवस्थान मंत्री दें ध्यान
गांव के युवाओं का कहना है कि देवस्थान मंत्री शशिकला जोल्ले चिक्कोडी की ही रहने वाली हैं। उनके ही विधानसभा क्षेत्र के करीब सवदी का यह मंदिर नजर नहीं आया। मंत्री धार्मिक और विरासत स्मारकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं। संबंधित विभाग के अधिकारियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए। मंत्री ने हालही में बयान दिया था कि यल्लम्मा पहाड़ी सहित सुसज्जित मंदिरों के विकास के लिए 9 करोड़ रुपए जारी किए हैं परन्तु विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए इसे एक बार देखाना चाहिए।
नदी के किनारे बसा यह मंदिर इसलिए खास है क्योंकि इसमें तीन गर्भगृह हैं। गुंबज पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं। उत्तर और दक्षिण में गर्भ गृह में शिव लिंगों को प्रतिष्ठापित किया गया है। यह भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। मुख्य गर्भगृह में बालकृष्ण की मूर्ति के नीचे खजाने की तलाश में खोदा गया था। यहां तक कि प्यारी मूर्ति को भी इससे विकृत कर दिया गया है। गर्भगृह आठ फीट खोदा गया है और अभी भी बरकरार है। न तो ग्राम पंचायत, न जनप्रतिनिधि, न पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने इस ओर ध्यान देने की जहमत उठाई है। पत्थर की दीवारें पेड़ की शाखाओं से ढकी हुई हैं। जगह-जगह कांटे उग आए हैं। सरीसृपों का बसेरा हुआ है। विश्व के संरक्षक त्रिकुटेश्वर यहां की अनाथ चेतना से पीड़ित हैं।