आसान नहीं होगी पूर्व सीएम की राह
हुब्बल्ली. उत्तर कर्नाटक के प्रभावशाली राजनीतिक नेता जगदीश शेट्टर ने सोमवार को कांग्रेस में शामिल होकर भाजपा से अपना 30 साल पुराना नाता तोड़ लिया। जैसा कि अपेक्षिा के मुताबिक वे आगामी विधानसभा चुनाव में हुब्बल्ली-धारवाड़ सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे।

वैचारिक रूप से विपरीत रही कांग्रेस का हाथ पकडऩे के जरिए कई चुनौतियों के लिए सीना आगे किया है।

बणजिगा लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शेट्टर ने एलएलबी की पढ़ाई की है। वे अपने पिता के समय से ही भारतीय जनसंघ-भाजपा से जुड़े हुए थे। उस पार्टी की विचारधारा के साए में खेले और पले-बढ़े। उन्हें सातवीं बार चुनाव लडऩे का मौका नहीं देने से नाराज होकर अब वे एक अलग वैचारिक आधार वाली पार्टी में शामिल हो गए हैं।

उन पर अपने साथी समर्थकों और मतदाताओं को कांग्रेस में बदलने की जिम्मेदारी है। तीन दशक से हाथ से निकली सीट को वापस लाने जा रहे शेट्टर के सामने कई चुनौतियां होंगी।

1994 में, उन्होंने बसवराज बोम्मई (जनता दल) को हराकर पहली बार भाजपा से चुनाव लड़ा। बाद में उन्होंने लगातार 6 चुनाव जीते थे। इन 30 वर्षों के दौरान उन्होंने समर्थकों और कार्यकर्ताओं की अपनी टीम बनाई है। उन्हें विभिन्न निगम मंडलों में नियुक्त करवाया है। उन्होंने हुब्बल्ली-धारवाड़ शहरी विकास प्राधिकरण के लिए अध्यक्ष और महानगर निगम के कई पार्षद बनाए हैं। शेट्टर को भाजपा का टिकट देने की मांग करते हुए कटआउट और बैनर के साथ विरोध करने वाले महानगर निगम के 16 पार्षदों में से एक भी पार्षद उनके इस्तीफे के बाद शेट्टर के साथ दिखाई नहीं दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि आने वाले दिनों में कितने लोग शेट्टर के साथ कदम रखेंगे।

लिंगायतों की उपेक्षा

हाल ही के दिनों में पार्टी में लिंगायतों की उपेक्षा की जा रही है। समाज के वरिष्ठ नेता बीएस येडियूरप्पा को किनारे कर दिया गया है। लक्ष्मण सवदी को टिकट देने से इनकार किया गया। इससे पहले, बसवराज होरट्टी को विधान परिषद का सभापति बनाने के लिए पार्टी आगे नहीं आई थी। इन तमाम घटनाक्रमों को लेकर सोशल मीडिया पर पार्टी नेताओं के खिलाफ आक्रोश देखने को मिल रहा है। शेट्टर के सामने चुनौती है कि इन सभी कारकों का उपयोग कैसे किया जाए।

लिंगायत अलग धर्म मामले में रूख पर रहेगी नजर

भाजपा के साथ चिन्हित लिंगायत-वीरशैव समुदाय को कांग्रेस के पाले में लाने की बड़ी जिम्मेदारी शेट्टर पर है। सिद्धरामय्या के नेतृत्व वाली सरकार ने लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा था, तो सबसे बड़ा विरोध इसी वर्ग ने किया था। शेट्टर भी इसके खिलाफ थे। अब यह भी चुनौती है कि शेट्टर कैसे कोई स्टैंड लेंगे, कैसे दूसरों को मनाएंगे और उन्हें पार्टी के पक्ष में लाएंगे। मुस्लिम और ईसाई, कांग्रेस के पारंपरिक वोट हैं जो निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में हैं। आरएसएस की विचारधारा से आने वाले शेट्टर उन्हें कैसे मनाते हैं। उन्हें कैसे विश्वास में लेते हैं, इस पर उनका चुनाव परिणाम तय होगा।

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