कार्यालयों के चक्कर लगाकर थके चुके पूर्व सैनिकों के परिजन
14 हजार एकड़ से अधिक भूमि आरक्षित
हुब्बल्ली. देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों अब अपने हक के लिए लड़ने के हालात निर्माण हुए हैं। इसका कारण सरकारों की लापरवाही है। देश की सेवा कर वीरगति को प्राप्त तथा सेवानिवृत्त होने वालों को सरकार की ओर से रोजी-रोटी के लिए दी जाने वाली जमीन अभी भी 99 फीसदी जवानों को नहीं मिली है।
यह आश्चर्यजनक होने पर भी सच है। सरकार लगभग 2 दशकों से झूठे वादे कर रही है। सरकार ने अधिसूचना जारी की है कि सेवा में रहते शहीद होने, सेवानिवृत्ति होने पर सरकार की ओर से 4.18 एकड़ कृषि भूमि देनी चाहिए।पूर्व सैनिकों का कहना है कि राज्य में करीब 1.30 लाख पूर्व सैनिक हैं। लगभग 4 लाख सैन्य परिवार हैं परन्तु उनमें से अधिकांश को अभी तक जमीन नहीं मिली है। वे दफ्तरों के चक्कर काट कर थक चुके हैं और उन्होंने उस जमीन की इच्छा ही छोड़ दी है।
वीरांगनाओं को भी नहीं मिली जमीन
दुख की बात है कि सेवा में शहीद हुए सैनिकों की पत्नियों को सरकार वीरनारी के रूप में सम्मानित कर रही है और उन्हें जमीन आवंटित नहीं की है। रायचूर जिले में अब तक एक भी पूर्व सैनिक को जमीन नहीं मिली है। दो जवानों ने लगातार कोशिशों से सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी अकारण विलंब किया जा रहा है। पूर्व सैनिक संघ कार्यालय और युद्ध स्मारक सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए 3 एकड़ जमीन आवंटित करने वाले जिला प्रशासन ने अब इसे भी देना संभव नहीं है कहकर रद्द किया है।
दो दशकों से इंतजार
राज्य में 1.30 लाख पूर्व सैनिक हैं। वर्ष 2003 के बाद राज्य भर में लगभग 5,000 लोगों ने अपने अधिकार की सरकारी भूमि के लिए आवेदन किया है। मंजूरी मात्र नहीं मिली है। सरकारी जमीन आवंटित होने के बाद 20 साल से खेती में लगे करीब 1,000 पूर्व सैनिकों को अभी मालिकाना हक (पट्टा) नहीं मिला है। कुछ जगहों पर जवानों के लिए आरक्षित जमीन पर अवैध कब्जा करने के आरोप हैं।
मैसूर, सकलेशपुर जिला सहित पूरे राज्य में पूर्व सैनिकों के लिए 14,000 एकड़ से अधिक सरकारी भूमि आरक्षित की गई है। प्रदेश के विभिन्न जगहों पर जगह उपलब्ध होने के बावजूद प्रभावशाली लोगों की ओर पर इसपर अतिक्रमण करने के आरोप हैं। पूर्व में गोचर और गैरानी की जमीन भी सैनिकों को दी जाती थी। अब यह भी संभव नहीं, गैरानी जमीन उपलब्ध है लेकिन नहीं दी जा रही है। कुछ जगहों पर पूर्व सैनिकों से जमीन आवंटित करने के लिए अधिकारियों के रिश्वत मांगने के भी उदाहरण हैं।
चक्कर लगाने पड़ रहे हैं
हम देश के बाहर सैनिकों से लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। क्या हम अपने अधिकारों के लिए अपनों के खिलाफ लड़ सकते हैं? सरकार की ओर से पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित अधिकार की जमीन हासिल करने के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
– डॉ. शिवण्णा एनके, प्रदेश अध्यक्ष, अखिल कर्नाटक पूर्व सैनिक संघ