आम चुनाव से पहले भाजपा को झटका
चित्रदुर्ग. जद-एस के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही भाजपा को कांग्रेस ने ऑपरेशन हस्त के जरिए झटका दिया है। हिरियूर निर्वाचन क्षेत्र की पूर्व विधायक के. पूर्णिमा को पार्टी की ओर आकर्षित करने वाले कांग्रेस खेमे ने राजनीतिक पासा पलटा है।

पूर्णिमा के भाजपा छोड़ने की अटकलों पर आखिरकार विराम लग गया है। भाजपा छोड़कर 20 अक्टूबर को कांग्रेस में शामिल होने की आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार का पूर्णिमा का स्वागत करने के साथ नया संदेश रवाना किया है।

गोल्ला (यादव) समुदाय की प्रभावशाली नेता के दलबदल ने हिरियूर में भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्साह को कम कर दिया है। लोकसभा चुनाव की दहलीज पर चित्रदुर्ग, तुमकूर, बेंगलूरु ग्रामीण इलाकों सहित राज्य के कई हिस्सों में महत्वपूर्ण मतदाता होने वाले गोल्ला समुदाय के नेताओं की ओर से अपनाए गए राजनीतिक रुख से नतीजे पर असर पडऩे की संभावना है। पूर्णिमा के पिता, पूर्व मंत्री ए. कृष्णप्पा, मूल रूप से कांग्रेसी थे। उन्हें जेडीएस में राजनीतिक आधार मिला था। बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) में कांग्रेस पार्षद रही पूर्णिमा, अपने पिता की मृत्यु के बाद भाजपा में शामिल हो गईं। उन्होंने 2018 में हिरियूर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विधायक चुनी गई थी।

खिला था कमल

कांग्रेस और जनता परिवार के गढ़ हिरियूर में राजनीतिक पैर जमाने के लिए भाजपा को दो दशकों तक संघर्ष करना पड़ा। 1989 से 2004 तक इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके। के. पूर्णिमा के भाजपा विधायक बनने के बाद पार्टी की ताकत बढ़ गई थी। गोल्ला, कुंचिटिगा, अनुसूचित जाति समुदाय निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक मतदाता हैं। पूर्णिमा के हिरियूर कार्य क्षेत्र बनने के बाद राजनीतिक गणित बदल गया था। वे गोल्ला समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधि के तौर पर सामने आईं थी।

भाजपा ने पति को किया था निलंबित
के. पूर्णिमा के पति डी.टी. श्रीनिवास राज्य पिछड़ा वर्ग महासंघ और राज्य गोल्ला संघ के अध्यक्ष हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले श्रीनिवास 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट के दावेदार थे। भाजपा नेताओं ने अपनी चुनावी रणनीति बदलते हुए श्रीनिवास की जगह पूर्णिमा को टिकट दे दिया था। स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद के चुनाव में श्रीनिवास को भाजपा के टिकट की उम्मीद थी। पार्टी की ओर से उन्हें मौका नहीं दिए जाने से असंतुष्ट होकर उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और हार गए। भाजपा ने इसे गंभीरता से लेते हुए श्रीनिवास को पार्टी से निलंबित कर दिया था।

नहीं मिला मंत्री पद
पूर्णिमा भाजपा सरकार में मंत्री पद की दावेदार थीं। मुख्यमंत्री बी.एस. येडियूरप्पा के मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिला था। बसवराज बोम्मई के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रि मंडल के पूनर्गठन में पूर्णिमा ने मंत्री बनने की मांग की थी। आखिरी वक्त में मंत्री पद नहीं मिलने से वे नाराज थी। इसी कारण विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा छोडऩे की अफवाहें जोरों पर थीं। बी.एस. येडियूरप्पा के हिरियूर आकरमनाने के बाद पूर्णिमा ने भाजपा में ही रहने की घोषणा की थी। हाल ही में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को पूर्णिमा ने अपने बेंगलूरु आवास पर आमंत्रित कर चर्चा करने से दलबदल की बहस फिर से सामने आ गई थी।

समर्थकों में भ्रम और चिंता
लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही हिरियूर विधानसभा क्षेत्र में चल रहे दलबदल ने हलचल मचा दी है। राजनीतिक तौर पर प्रतिद्वंद्वी के. पूर्णिमा और डी. सुधाकर के एक ही पार्टी के मंच पर आने से समर्थकों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। 2013 से 2023 तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में पूर्णिमा परिवार और डी. सुधाकर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। 2013 में कृष्णप्पा को हराने वाले सुधाकर 2018 के चुनाव में पूर्णिमा से हार गए थे। सुधाकर ने पूर्णिमा को हराकर 2023 का चुनाव जीता है।

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