
उम्मीद की रोशनी
हुब्बल्ली. देश के विभिन्न हिस्सों से कई उम्मीदों के साथ आए युवा मन धारवाड़ की मधुर स्मृति और आशा की रोशनी लेकर चले गए।
सोमवार को आयोजित 26वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव के समापन समारोह में शामिल हुए प्रतिनिधियों में उत्साह के साथ-साथ पुरस्कार किसे मिलेगा इसकी उत्सुकता भी थी।
पांच दिवसीय लोक नृत्य और गीत प्रतियोगिता के परिणामों के लिए 8 केंद्र शासित प्रदेशों और मेजबान कर्नाटक सहित 28 राज्यों की टीमें प्रतिस्पर्धा कर रही थीं।
पंजाब की टीम को लोकनृत्य में प्रथम पुरस्कार देने की घोषणा होते ही जो बोले… सो निहाल… के नारे गूंज उठे। पंजाब की टीम का जश्न चरम पर था। इस श्रेणी में गुजरात और केरल को क्रमश: दूसरा और तीसरा स्थान मिला है।
जानपद गीत प्रतियोगिता की पुरस्कार घोषणा के दौरान पहली बार घोषित कर्नाटक टीम के नाम पर भी यही प्रतिक्रिया मिली। इस श्रेणी में प्रथम पुरस्कार उत्तर प्रदेश को तथा द्वितीय पुरस्कार असम को मिला।
बाहरी राज्यों के प्रतिनिधियों ने धारवाड़ और कर्नाटक के आतिथ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रत्येक क्षेत्र की पारंपरिक पोशाक में ही समारोह में भाग लिया था।
लद्दाख की मासूमा ने प्रतिक्रिया व्यक्त कर कहा कि उन्हें केरल की लुंगी, कर्नाटक का भोजन, कोल्हापुर का चप्पल सहित संपूर्ण भारत का दर्शन हुआ।
सिक्किम के भीम सुब्बू ने कह कि सभी राज्यों की लोक कलाओं को एक जगह देखना मेरे लिए सौभाग्य की बात रही। भारत को देखना अभी काफी है।
अंतिम दिन कर्नाटक कॉलेज मैदान में रस संध्या कार्यक्रम के साथ पांच दिवसीय राष्ट्रीय युवा महोत्सव का समापन हुआ।
युवाओं ने प्रकट किया छोटा भारत

युवा जनोत्सव ने रंगीन छोटे भारत को ही प्रकट किया है। यहां के सृजना रंगमंदिर में चल रहे लोकनृत्य ने इसका प्रमाण बना। रविवार की सुबह से ही सृजना रंगमंदिर देश के विभिन्न हिस्सों के लोक नृत्यों और पारंपरिक नृत्यों का मंच बन गया।
आंखों को चौकाने वाले रंग-बिरंगे परिधानों को धारण करने वाले कलाकारों का उत्साह चरम पर था। दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, कर्नाटक, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, असम के युवा कलाकारों ने अपने-अपने राज्यों के लोकनृत्य प्रस्तुत किए।

छत्तीसगढ़ के युवक-युवतियों ने लकड़ी की टांगों से नृत्य करने पर दो आंखें भी कम पड़ रही थीं। दर्शकों की ओर से तालियां और सीटियों की बौछार सुमाई दे रही थी।
चंडीगढ़ के कलाकारों ने पंजाबी से मिलता-जुलता लुंडी नृत्य पेश किया। उत्तराखंड के कलाकार कृषि-ग्रामीण पृष्ठभूमि के नृत्य प्रस्तुत किया।
तमिलनाडु के कलाकारों ने मंदिर उत्सवों के दौरान किए जाने वाले नृत्य प्रस्तुत किए। यह पांच लोकनृत्यों का मिश्रण है। किसी भी सर्कस की तरह, इसमें एक रोमांच था जो दर्शकों को आसन की छोर पर लाकर बिठाने का साहस भी उसमें था, जो उसकी विशेषता थी।
मंच पर ब्रेक लगते ही हुट्टिदरे कन्नड़ नाडल्ली हुट्टबेकु कन्नड़ गीत पर हॉल में जमा नौजवान दीवानों की तरह नृत्य करने लगे।
तुलुनाड का कंगिलु नृत्य
दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र के कलाकारों ने अपनी भूमि के देवताओं में से एक स्वामी कोरगज्जा को समर्पित नृत्य का प्रदर्शन करके मंत्रमुग्ध कर दिया।
अपने कपड़ों को नारियल के पंख और सुपारी से सजाते उन्हें देखना एक खास बात थी। हाल ही में लोकप्रिय फिल्म कांतारा के दैव नृत्य की याद दिलाने वाले इस नृत्य को दर्शकों ने खूब सराहा।