
भाजपा में चल रहे मौजूदा घटनाक्रम का लाभ लेने की कोशिश
हुब्बल्ली. कांग्रेस लिंगायत विरोधी छवि को बदलने के लिए लिए पूरी कोशिश में जुटी है। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर और पूर्व उमुख्यमंत्री लक्ष्मण सवदी के पार्टी छोडऩे को मजबूर होने के साथ ही कांग्रेेस बी.एस. येडियूरप्पा की मुख्यमंत्री पद से विदाई के मामले को उठा रही है। भाजपा के लिंगायत नेताओं के जुडऩे को लेकर कांग्रेस उत्साहित है।
बीते एक सप्ताह से भाजपा में चल रहे घटनाक्रम पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि भाजपा को फिलहाल थोड़ा बहुत नुकसान हुआ है परन्तु इससे कांग्रेस को किस हद तक फायदा होगा, यह कांग्रेस की पकड़ में नहीं आने के बावजूद उसे भरोसा है कि मुनाफा जरूर होगा। कांग्रेस इस राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाने की योजना बना रही है।
इसके चलते लिंगायत समुदाय से संबंध रखने वाले येडियूरप्पा को भाजपा की ओर से जबरन मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने का मामला, जगदीश शेट्टर और लक्ष्मण सवदी को पार्टी टिकट नहीं देकर पार्टी छोडऩे के हालात निर्माण करने को राजनीतिक तौर पर इस्तमाल कर यह भाजपा में लिंगायत नेताओं के दमन के सिलसिले की शुरुआत है। इस संदेश को देने में कांग्रेस सफल रही है।
कांग्रेस को मिला शक्तिशाली हथियार
भाजपा में लिंगायतों का कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है इसे दिखाने के लिए कि टिकट से वंचित और असंतुष्टों को पार्टी में आमंत्रित फिलहाल कांग्रेस जो सम्मान दे रही है इसे देखने पर उन्हें चुनाव के दौरान अच्छी तरह से उपयोग करने के लिए कांग्रेस को मिला शक्तिशाली हथियार के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में व्याख्यानित किया जा रहा है। भाजपा टूटा हुआ घर है, इस तथ्य का लाभ उठाने के लिए कांग्रेस ने शेट्टर और सवदी को शामिल करने का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। हाल ही में भाजपा छोडक़र कांग्रेस में शामिल होने वालों में जगदीश शेट्टर और लक्ष्मण सवदी प्रमुख हैं। सवदी भाजपा में 20 साल से जुड़े हुए हैं, उनका मूल जनता परिवार है परन्तु शेट्टर अलग हैं। भाजपा में 45 साल का लंबा जीवन है।
जिस तरह भाजपा में येडियूरप्पा लिंगायत समुदाय के नेता हैं, उसी तरह कांग्रेस में एमबी पाटिल सबसे आगे हैं। शेट्टार के कांग्रेस में शामिल करने की प्रक्रिया में रिश्तेदार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शामनूर शिवशंकरप्पा और एमबी पाटिल ने सक्रिय भूमिका निभाई है। अतीत में इन तीनों का लिंगायत अलग धर्म संघर्ष में अलग स्टैंड था। अब यह पर्दे पर आ गया है। तीनों एक ही पार्टी में हैं।
भाजपा नहीं छोड़ेगी कोई कसर
हर चुनाव के दौरान दलबदल आम बात है परन्तु यह भी महत्वपूर्ण है कि दल बदलने वाले नेता के पीछे कितने नेता-समर्थक पार्टी छोड़ते हैं, और केवल नेता-प्रमुखों का ही दलबदल होना काफी नहीं है, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे जिस पार्टी में शामिल हुए उसे कितने वोट दिलवा सकते हैं। नेताओं का दल-बदल तभी सार्थक है जब उनके पास अपने समुदाय या सामान्य मतदाताओं को बदलने की शक्ति हो, अन्यथा यह उन्हीं तक सीमित रह जाता है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भरोसा जताया कि कांग्रेस ने भले ही भाजपा वालों को पार्टी में शामिल किया होगा परन्तु भाजपा वोट बैंक नहीं छोडक़र नहीं जाएगा।
15 से 20 क्षेत्रों में तस्वीर बदलने की उम्मीद
शेट्टर-सावदी के शामिल होने से न केवल बेलगावी, हुब्बल्ली-धारवाड़ बल्कि कित्तूर कर्नाटक सहित उत्तर कर्नाटक में पार्टी को और मजबूती मिली है। वीरशैव-लिंगायत वोटों को पर्याप्त संख्या में स्थानांतरित करने पर कम से कम 15 से 20 निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम की तस्वीर बदलने की उम्मीद है। इसके चलते भाजपा में लिंगायत नेताओं की उपेक्षा करने के कारण आहत होकर बाहर आ रहे लिंगायत नेताओं को कांग्रेस आकर्षित कर रही है। कांग्रेस पार्टी की ओर से लिंगायतों को उपेक्षित किए जाने की बदनामी से बाहर आने के लिए यही सही समय है जानकर कांग्रेस ने स्थिति का लाभ उठाने का फैसला किया है।