मुख्यमंत्री ने कहा, जब तक नहीं होगा संपूर्ण बरसाती नालों का विकास, तब तक चलता रहेगा काम
बेंगलूरु. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि शहर में बरसाती नालों (राजकालुवे) को ठीक करने में कम-से-कम एक साल का समय लग जाएगा क्योंकि, पहले नालों पर हुए अतिक्रमण को हटाना होगा। उधर, बृहद बेंगलूरु महानगरपालिका (बीबीएमपी) ने लगातार दूसरे दिन महादेवपुर और शांतिनिकेतन ले-आउट में अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी रखा। विधानसभा में मंगलवार को बेंगलूरु में हुई भारी बारिश के कारण पैदा हुई बाढ़ की स्थिति पर चर्चा हुई और मुख्यमंत्री चर्चा का जवाब भी दिया।
मेगा स्टॉर्मवाटर ड्रेन विकसित करने की योजना
बेंगलूरु विकास विभाग का दायित्व संभाल रहे मुख्यमंत्री बोम्मई ने पूर्व मंत्री कृष्ण बैरेगौड़ा के एक सवाल पर कहा कि पहले अतिक्रमण हटाया जाएगा। उसके बाद ही बरसाती नालों को दुरुस्त किया जा सकेगा। शहर में बाढ़ जैसी स्थिति रोकने के लिए मेगा स्टॉर्मवाटर ड्रेन विकसित करने का फैसला किया गया है। सरकार ने इसके लिए 1500 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं। निविदा प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। लेकिन, काम शुरू करने से पहले नालों पर बने भवनों और अतिक्रमणों को साफ किया जाना है।
अत्यधिक बारिश से हुई समस्या
उन्होंने कहा कि बेंगलूरु में इतने बड़े पैमाने पर कभी भी बारिश नहीं हुई। नालों से जल प्रवाह होना लाजिमी है क्योंकि, जब इनका निर्माण किया गया तब उसकी क्षमता उतनी नहीं बनाई गई जितनी बारिश हुई है। बरसाती नालों के विकास में समय लगता है। जब कांग्रेस सत्ता में थी तब स्वीकृत हुए कार्यों को सरकार आज पूरा कर रही है। चार साल हो गए। जो आदेश दिया गया है उसे पूरा होने में डेढ़ साल लग जाएंगे।
470 किमी नाले का उन्नयन बाकी
अपने लिखित जवाब में बोम्मई ने कहा कि शहर में 633 राजकालुवे हैं जो 859.90 किलोमीटर तक फैले हुए हैं। इसमें से 490.10 किमी प्राथमिक और द्वितीयक नालों का विकास किया जा चुका है। शेष 469.90 किमी का विकास किया जाना है। बैटरायनपुर के विधायक कृष्ण बेरेगौड़ा ने कहा कि बार-बार बाढ़ आने के कारण ‘ब्रांड बेंगलूरु’ प्रभावित हो रहा है। बोम्मई के लिखित जवाब के आधार पर उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में केवल 63.45 किलोमीटर बॉक्स ड्रेन और यू-शेप ड्रेन विकसित किए गए है। बैरेगौड़ा ने कहा कि दूसरों को दोष देना अलग बात है। लेकिन, नालों को विकसित करने का प्राथमिक दायित्व निभाया जाना चाहिए। नालों के विकास से 80 फीसदी समस्या सुलझ जाएगी। मुख्यमंत्री ने विधानसभा को आश्वासन दिया कि जब तक 859 किमी के संपूर्ण राजकालुवे का विकास नहीं हो जाता तब तक नालों के विकास का काम चलता रहेगा। सरकार ने 1500 करोड़ रुपए के अलावा 300 करोड़ रुपए दिए हैं। जरूरत पड़ी तो और राशि दी जाएगी। वहीं, भाजपा विधायक अरविंद लिंबावली के एक सवाल के जवाब में बोम्मई ने कहा कि उन्होंने 160 झीलों पर स्लुस गेट लगाने के आदेश दिए हैं।
बेंगलूरु में बाढ़ पर तीखी बहस, ठहाके भी गूंजे
बेंगलूरु में बाढ़ के हालात पर विधानसभा में चर्चा के दौरान नोंक-झोंक हुए तो ठहाके भी गूंजे। सदन में मामले को उठाते हुए सिद्धरामय्या ने कहा कि उन्हें यमलूर जाने के लिए नाव की सवारी करनी पड़ी। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘मैं महादेवपुर विधानसभा क्षेत्र में यमलूर और अन्य कुछ स्थानों पर गया, जहां कुछ आइटी कंपनियों के सीईओ रहते हैं। वहां जाने के लिए नाव की जरूरत पड़ी।’ सिद्धरामय्या ने विशेष तौर पर एप्सिलॉन का जिक्र किया। बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए महादेवपुर के विधायक अरविंद लिंबावली ने कहा ‘नाव पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। एक और रास्ता था। मुझे नहीं मालूम की आप नाव में सवार होकर क्यों गए। आपको पीछे के रास्ते से ले जाया गया। आपके साथ कुछ लोग हैं जो आपको गुमराह करते हैं।’ लिंबावली की बात पर सदन में ठहाके गूंज गए। बीटीएम लेआउट के विधायक रामलिंगा रेड्डी ने सिद्धरामय्या का बचाव करते हुए कहा कि यह वही मार्ग है, जिस मार्ग से मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी एप्सिलॉन गए थे। इस पर लिंबावली ने कहा कि बोम्मई एप्सिलॉन गए ही नहीं। मुख्यमंत्री ‘दिव्याश्री’ गए। उन्होंने और आगे जाने का फैसला किया था। उन्होंने हंसते हुए कहा ‘मुझे इस बात का मलाल है कि विपक्ष के नेता को नाव पर ऐसी जगह ले जाया गया जहां पानी केवल 1.5 फीट था।’ कांग्रेस सदस्यों ने विरोध किया। सिद्धरामय्या ने कहा, एक नाव संभवत: 1.5 फीट पानी में नहीं तैर सकती है। रेड्डी ने कहा कि चार फीट पानी था। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा ‘मैंने देखा। जो आदमी आपकी नाव को धक्का दे रहा था वह केवल घुटने भर पानी में था।’ इस पर कांग्रेस विधायकों ने सरकार पर बाढ़ की स्थिति को हल्के में लेने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सिद्धरामय्या ने एसडीआरएफ के नाव का इस्तेमाल किया।
चुटकी लेते हुए बोम्मई ने कहा ‘आप पैदल चल सकते थे। नाव नागरिकों के लिए रखी गई थी लेकिन, उसका इस्तेमाल आपने किया। आप चल सकते थे क्योंकि, पानी ज्यादा नहीं था। शायद आपको लोगों की चिंता नहीं थी। आप नहीं चाहते थे कि आपके पैर गीले हों।’ सिद्धरामय्या ने फिर प्रतिवाद किया और कहा कि जिस दिन वे गए थे उस दिन वहां 4-5 फीट पानी था। वे झूठ क्यों बोलेंगे।