काम की तलाश में श्रमिक कर रहे गांव से पलायन
रोजगार की तलाश में हुब्बल्ली आ रहे हैं धारवाड़, हावेरी,गदग और आसपास के जिलों के किसान

हुब्बल्ली. मुरझाया चेहरा, घनी मूंछें-दाढ़ी, कंधे पर तौलिया, हाथ में लंच बैग, धुले कपड़े, फटी चप्पलें… ऐसी छवि वाले सैकड़ों लोग हर सुबह हुब्बल्ली रेलवे स्टेशन के पास नजर आते हैं।

काम की तलाश में श्रमिकों का बड़े शहरों की ओर पलायन करना आम बात है परन्तु इस बार सूखे से प्रभावित छोटे और बहुत छोटे किसानों के काम की तलाश में पलायन करने से चिंता पैदा हो गई है। हर दिन हजारों मजदूर और किसान काम की तलाश में हुब्बल्ली आ रहे हैं, जो उत्तर कर्नाटक में सूखे के अंधेरे साए को दर्शा रहा है।

हुब्बल्ली के आसपास के तालुकों के अलावा, पड़ोसी हावेरी और गदग जिलों के ग्रामीण हिस्सों से किसान और मजदूर हुब्बल्ली आ रहे हैं। मुख्यत: निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। वे मिस्त्री, गौंडी, पेंटिंग का काम, रेत भरने का काम, टाइल लगाने के कार्य में भाग ले रहे हैं।

सबको काम मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। आधे लोगों को काम मिल जाए तो बहुत है। आस-पास के गांवों से आने वाले अपने साथ लाए भोजन को खा कर वापस गांव लौट जाते हैं। जो लोग दूर-दराज के शहरों से आते हैं वे सिद्धारूढ़ मठ जा कर वहीं पनाह लेते हैं और रात बिताते हैं।

बड़ी संख्या में आ रहे युवा और किसान
लोगों को काम पर ले जाने आए ठेकेदार जमादार ने कहा कि मैं यहां से लोगों को प्लास्टर के काम के लिए ले जाता हूं। इस बार बड़ी संख्या में कम से कम एक हजार से ज्यादा लोग काम मांगने आ रहे हैं। खासकर ग्रामीण युवा और किसान बड़ी संख्या में हैं। सुबह 9 से 10 बजे तक ले जाते हैं। काम पूरा होते ही हम पैसा (मजदूरी) देकर भेज देते हैं। हावेरी जिला सावनूर के पास इचलयल्लापुर के यशवंत का कहना है कि काम मिलने पर दिन के 400 से 600 तक मजदूरी मिलती है। शाम को काम खत्म होते ही भुगतान कर देते हैं। इसे ले कर ट्रेन से वापस गांव लौटता हूं। काम मिलेगा ही इसकी कोई गारंटी नहीं है। पैसा कमाए बिना गांव वापस भी नहीं जा सकते। इसके लिए सिद्धारूढ़ मठ जाकर वहीं सो जाऊंगा।

रोजगार की तलाश में हुब्बल्ली आया हूं

गदग जिला नरगुंद तालुक के जगदीश हूली ने बताया कि पिछले तीन-चार साल में ऐसी स्थिति नहीं आई थी। अच्छी बारिश हुई थी। खेतों में पर्याप्त काम था। हम ही दूसरों को खेत में काम देते थे। अब हम हमें दूसरों के पास काम मांगना पड़ रहा है, ऐसी स्थिति आ गई है। नरगुंद में 5 एकड़ का खेत है। पिछले साल इसी समय मक्का उगाया था और अच्छी फसल आई थी परन्तु इस बार मक्का सूख गया है। मक्के की फसल पूरी तरह बर्बाद हुई है। इसके चलते अब रोजगार की तलाश में हुब्बल्ली आया हूं।

फसल बर्बाद हुई

गदग जिले के लक्ष्मेश्वर के पास एरिबुदिहाल गांव के बीए स्नातक मोहन ने बताया कि जुलाई और अगस्त में बारिश नहीं होने के कारण हमारे खेत में बोए चना, मूंग की फसल बर्बाद हुई है। इसके चलते पिछले दो महीनों से मैं हर सुबह लंच बैग लेकर हुब्बल्ली आता हुं। काम मिलने पर इसे पूरा कर शाम को ट्रेन से वापस चला जाऊंगा।

खर्च के लिए पैसों की जरूरत

बसवराज केरूर कहते हैं मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) का बिल नहीं मिला, फसल बीमा नहीं आया, फसल नुकसान का मुआवजा नहीं मिला है। घर के स्वामिनी को सरकार की ओर से 2 हजार रुपए दिए गए हैं। बच्चों के स्कूल और अन्य घरेलू खर्चों के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। मैं उसी के लिए

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