स्थानीय प्रशासन तंत्र की व्यवस्था की कमी
शहर में हैं तीन गौशालाएं
हुब्बल्ली.शहर और तालुक के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में मवेशियों की भरमार बढ़ गई है, इन्हें नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने के जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन तंत्र की व्यवस्था की कमी के कारण समस्या बढ़ रही है। आवारा मवेशियों को पकडक़र अन्यत्र ले जाने का काम नगर निगम नहीं कर रहा है।
शहर में तीन गौशालाएं हैं। कर्मचारियों की ओर से सडक़ पर छोड़े जाने वाले मवेशियों का पता लगाकर उन्हें गौशाला भेजना चाहिए। असली मालिकों के आने पर जुर्माना लगाकर कड़ी चेतावनी देनी चाहिए परन्तु इनमें से कुछ भी नहीं हो रहा है।
लोगों का कहना है कि बस स्टैंड, बाजार क्षेत्र और अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में घूमने वाले मवेशियों के कारण गंभीर समस्या हो रही है। आवारा मवेशियों मान कर बांधने पर छुड़वा कर लेजाने के लिए आते हैं। इसके चलते बाजार में घूमने वाले सभी आवारा मवेशी नहीं हैं। इसलिए स्थानीय प्रशासन की ओर से असली मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने पर कम से कम भविष्य में होने वाली जानमाल की हानि को रोका जा सकता है।
दिक्कतों का सामना कर रहे हैं पशुपालक
निजी तौर पर नगर निगम के कर्मचारियों को मवेशियों को पकडक़र गौशाला तक पहुंचाना चाहें तो वहां जगह नहीं है। वे शामिल नहीं करते हैं। पानी और चारे की कमी के कारण मवेशियों को सडक़ों पर छोडऩा अनिवार्य हो गया है। इस बार मानसून और रबी की बारिश की कमी के कारण किसानों और दुग्ध उत्पादक (डेयरी) किसानों को मवेशी पालने में और भी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्मार्ट सिटी विशेषज्ञों का कहना है कि शहर के मध्य में स्थित गवली गली को स्थानांतरित करना चाहिए परन्तु उस समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्हें दी जाने वाली वैकल्पिक जगह शहर के करीब होगी तो ही जाएंगे। जिस क्षेत्र में अधिक लोग घूमते हैं उस क्षेत्र में ही सुबह और दोपहर के समय सैकड़ों मवेशियों को चरने के लिए ले जाते और आते हैं तो यातायात वस्तुत अवरुद्ध हो जाता है।
जैन समुदाय की ओर से शहर में पांजरपोला, शांतिनात गौशाला और सिद्धारुढ़ मठ की गौशाला है। पिछली सरकार ने एक और गौशाला का निर्माण करने का निर्णय लिया था। यह साकार नहीं हुआ है।
गौशाला प्रबंधन भी खर्चिला होने से रखरखाव भी महंगा है।
पशुचिकित्सकों की कमी
धारवाड़ जिले में सभी स्वीकृत पदों पर पशु चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं होने से समस्या हुई है। जिले के लिए पशु चिकित्सकों के 76 पद स्वीकृत किए गए हैं। फिलहाल 47 ही कार्यरत हैं। 29 पद अभी भी खाली हैं। रिक्त पदों में पांच मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, तीन वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी और 21 पशु चिकित्सा अधिकारी हैं। पशु चिकित्सकों के बड़ी संख्या में पद खाली होने के कारण कई अस्पतालों में पशु चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं। परिणामस्वरूप, कुछ पशुचिकित्सकों को उनके निकटतम अस्पतालों की भी जिम्मेदारी दी गई है। इसके कारण जरूरत पडऩे पर किसानों के लिए पशु चिकित्सकों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
कार्यप्रबंधन पर जोर दिया
पशु चिकित्सकों की कमी होने के बावजूद समस्या न हो इसके लिए कार्यप्रबंधन पर जोर दिया है। बीमारी होने पर मवेशियों का इलाज करते हैं परन्तु अगर उनसे कोई समस्या होगी तो प्रशासनिक तंत्र कार्रवाई करेगा।
-डॉ. रवि सालिगौडर, उप निदेशक (प्रशासन), पशुपालन विभाग धारवाड़
सडक़ पर छोड़ देते हैं
शहर में आवारा पशु नाम मात्र के हैं। उनके मूल मालिक उन्हें यूं ही सडक़ पर छोड़ देते हैं। जब तक जनता में जागरूकता नहीं आएगी तब तक समस्या का कोई समाधान नहीं होगा।
–एजे कुलकर्णी, पशुचिकित्सक, हुब्बल्ली-धारवाड़ महानगर निगम