बेड्ती-वरदा नदी जोड़ो परियोजना फिर चर्चा मेंबेड्ती नदी।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं में आक्रोश

सिरसी. पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तर कन्नड़ जिला एक बार फिर एक नई नदी जोड़ परियोजना का संकट सामने आया है। यहां की बेड्ती नदी को हावेरी जिले की वरदा नदी और फिर तुंगभद्रा नदी से जोडऩे की योजना फिर से सामने आई है, जिससे पर्यावरण कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश उत्पन्न हुआ है।

इस योजना के तहत बेड्ती और वरदा नदियों से समुद्र में बहकर जाने वाले करीब 18 टीएमसी से अधिक पानी को हावेरी, गदग, कोप्पल, सिंधनूर और रायचूर जिलों तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए बेड्ती को सीधे वरदा से सीधे जोडऩा तथा बेड्ती-धर्मा-वरदा के जरिए नदी जोडऩे की परियोजना गठित की गई है।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर यह योजना लागू होती है, तो यह पहले से ही कई पर्यावरणीय संकटों से जूझ रहे उत्तर कन्नड़ जिले को और अधिक नुकसान पहुंचाएगी।

परियोजना का पिछला इतिहास

यह परियोजना 1995 में प्रस्तावित की गई थी, परन्तु भारी विरोध के चलते स्थगित हो गई थी। वर्ष 2003 में जब नेशनल वॉटर डेवलपमेंट बोर्ड (एनडब्ल्यूडीए) ने इसका अध्ययन करना चाहा, तब भी स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इसे रद्द कर दिया गया। 2005 में एनडब्ल्यूडीए ने व्यवहार्यता रिपोर्र्ट जारी की थी परन्तु लगातार विरोध के कारण यह विषय ठंडे बस्ते में चला गया।

अब फिर क्यों चर्चा में है?

वर्तमान में उत्तर कर्नाटक के जनप्रतिनिधि इस योजना को लागू करने को लेकर उत्साहित हैं। हावेरी जिले के प्रभारी मंत्री शिवानंद पाटील ने हाल ही में कहा कि इस परियोजना की नई डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार कर ली गई है।

10 अगस्त से जनजागृति अभियान

पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद बसवराज बोम्मई ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान ही डीपीआर तैयारकर भेजी गई थी। फिलहाल एनडब्ल्यूडीए की रिपोर्ट बेंगलूरु कार्यालय से दिल्ली कार्यालय को भेजी गई है, और एनडब्ल्यूडीए की सिफारिश पर नई डीपीआर तैयार की जाएगी। इस परियोजना को लेकर 10 अगस्त से जनजागृति अभियान चलाया जाएगा। यह सब देखकर उत्तर कन्नड़ जिले के लोग हैरान और चिंतित हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चिंता

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि वन क्षेत्र में बनने वाली इस परियोजना से वन्य क्षेत्र को कोई नुकसान नहीं होगा—यह दावा सरासर हास्यास्पद है। नदियां केवल जल स्रोत नहीं होतीं, बल्कि वे जीवमंडल की धमनियों के समान होती हैं। उनके प्राकृतिक प्रवाह में परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी असर पड़ता है। इस पर जन आंदोलन और कानूनी लड़ाई बहुत जरूरी है।

स्थानीय जनता की आशंका

स्थानीय लोग कहते हैं कि गर्मियों में तटीय क्षेत्रों के कुएं, नदियां और नहरें समुद्र के खारे पानी से भर जाती हैं, जिससे पीने के पानी की कमी हो जाती है। येल्लापुर क्षेत्र में बेड्ती जलाशय से पानी की आपूर्ति के लिए 23 करोड़ रुपए की योजना बनी थी, जो असफल रही। बेड्ती नदी बारिश में बाढ़ लाती है और गर्मियों में पूरी तरह सूख जाती है। मार्च के बाद कई गांवों में एक बूंद पानी के लिए संघर्ष होता है। जिले में कोई स्थायी सिंचाई परियोजना नहीं है, किसान पंपसेट से नदियों का पानी खेतों तक ले जाते हैं। ऐसे में यदि नदी का पानी दूसरी जगह भेज दिया गया, तो यहां के लोग कहां जाएंगे?

बाढ़ का पानी संग्रह के लिए योजना गठित करें

वरदा नदी में बारिश के मौसम में आने वाले बाढ़ के पानी को हावेरी जिले में बैराज बनाकर संग्रह करना चाहिए। इसके बजाय, एक अवैज्ञानिक, अस्थिर और अत्यधिक खर्चीली योजना लागू करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके पीछे राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थ छिपा हुआ है। बेड्ती-वरदा नदी जोड़ परियोजना न तो तकनीकी रूप से सही है, न वैज्ञानिक रूप से व्यावहारिक है, और यह पर्यावरण कानूनों का भी उल्लंघन करती है।
अनंत हेगड़े अशीसर, पर्यावरण कार्यकर्ता

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